पितृपक्ष पर हमारे पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं और पितृविसर्जन यानि की श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को हमारे पूर्वज विदा होकर मुक्तिलोक की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। महालया अमावस्या के दिन भी उसी प्रकार श्राद्ध किया जाता है जिस प्रकार पितृपक्ष के १६ दिनों में किया जाता है। इस दिन भी घरों में खीर, पूरी बनाई जाती है, पंडित को भोजन कराया जाता है और उन्हें दक्षिणा और वस्त्र दिए जाते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि जिन पूर्वजों की श्राद्ध की तिथि याद न हो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है, जिसमें सभी भूले-बिसरे शामिल हो जाते हैं।
हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि पिâतृपक्ष में यमराज हर साल सभी जीवों को मुक्त करते हैं। यमराज ऐसा इसलिए करते हैं ताकी वे जीव अपने लोगों द्वारा किए जा रहे तर्पण को ग्रहण कर सकें। मान्यता के अनुसार पितृ अपने कुल खानदान की रक्षा करते हैं और उन्हें हर संकट से बचाते हैं। ऐसा भी कहा गया है कि श्राद्ध को तीन पीढिय़ों तक निभाया जाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि अगर पूर्वज नाराज हो जाते हैं तो जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।