ये भी पढ़ें- यूपी के इन बड़े पुलिस अधिकारियों को हटाया गया पद से, विवेक तिवारी के हत्यारे सिपाहियों की कर रहे थे बहुत बड़ी मदद, यूपी पुलिस के उड़े होश.. हो गया था विद्रोह-सन् 1973 यूपी में कांग्रेस की सरकार थी व पं. कमलापति त्रिपाठी सीएम थे। उस दौरान घटिया खाना मिलने से पीएसी के जवानों व पुलिसकर्मियों में काफी आक्रोश था। अंदर ही अंदर शिकायती व विरोध के स्वर उठ रहे थे, मगर अफसरों व आलाधिकारियों ने इसे नजरअंदाज किया। वो समय इंटरनेट और सोशल मीडिया का कतई नहीं था जिससे सरकार व जनता तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सके। हां, आज की तरह ही अखबार थे जिनकी विश्वसनीयता उस दौर में आज सभी ज्यादा थी। उन्हीं में से थे नेशनल हेराल्ड व पायनियर जो लखनऊ में व देश में भी काफी असरदार थे। साथ ही हिन्दी में स्वतंत्र भारत और नवजीवन आदि प्रमुख अखबार थे जो जनता की आवाज बनते थे। लेकिन तब के पत्रकार भी यूपी के पीएसी जवानों की पीड़ा को समझ नहीं सके। बताया जाता है कि उस दौरान किसी छोटे अखबार ने इस मामले में एक सिंगल कालम खबर छापी थी, जिसमें जवानों को परोसे जा रहे घटिया भोजन का जिक्र किया गया था, लेकिन छोटा अखबार होने के कारण इस खबर को लेकर आला अफसरों के कानों में जू तक नहीं रेगी।
अंतः मई 1973 में वहीं हुआ जिसका डर था। पीएसी जवानों का गुस्सा फूट पड़ा और विरोध के स्वर तेज होने लगे। यूपी सरकार में हड़कंप मच गया, केंद्र में बैठी सरकार भी हिल गई। आनन-फानन में विरोध को शांत करने के लिए सेना का सहारा लेना पड़ा। राजधानी की सड़कों पर सेना के वाहन दौड़ पड़े। पुलिस लाइन्स को सेना ने चारों तरफ से घेर लिया। सेना और पीएसी जवान आमने-सामने थे। बताया जाता है कि सेना ने विरोध कर रहे जवानों पर गोलीबारी की जिसमें करीब 30 जवान मारे गए। करीब 100 से अधिक जवानों को गिरफ्तार किया गया। और हालातों पर आखिरकार काबू पर लिया गया, लेकिन अंत में कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ और तत्कालीन यूपी सीएम पं. कमलापति त्रिपाठी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। 12 जून 1973 को उन्होंने सीएम पद से अपना इस्तीफा दे दिया जिसके बाद यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। अंत में विद्रोह तो खत्म हुआ, लेकिन इसकी कीमत कांग्रेस को सत्ता गवाकर चुकानी पड़ी।
आज तो सोशल मीडिया भी है और देश के लोग कहीं और से ज्यादा सबसे अधिक इसी पर सक्रिय हैं। पुलिस विभाग के विद्रोह कर रहे सिपाही इसी का इस्तेमाल कर रहे। वर्षों बाद यूपी में पुुलिस द्वारा विरोध के स्वर उठे हैं। मामला भले ही कुछ भी हो, लेकिन विद्रोह की चिंगारी जिस तरह से फूंटी है उसे ज्यादा हवा मिली तो यूपी सरकार के लिए खतरे की घंटी बज सकती है।