लखनऊ

लखनऊ की पौलोनी पाविनी शुक्ला फोर्ब्स की सूची में शामिल, अनाथ बच्चों पर काम के लिए मिला सम्मान

फोर्ब्स पत्रिका ने वर्ष 2021 की भारत की 30 अंडर-30 सूची में सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला को शामिल किया है

लखनऊFeb 04, 2021 / 02:31 pm

Hariom Dwivedi

पौलोमी पाविनी शुक्ला के माता पिता दोनों आईएएस अफसर हैं और वह सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. Poulomi Pavini Shukla, अनाथ बच्चों के काम काम करने वाली लखनऊ की पौलोमी पाविनी शुक्ला को फोर्ब्स पत्रिका ने वर्ष 2021 की भारत की 30 अंडर-30 सूची में शामिल किया है। पत्रिका प्रतिवर्ष 30 ऐसी शख्सियतों को इस लिस्ट में शामिल करता है, जिनकी उम्र 30 वर्ष से कम है और उन्होंने अपने क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण व सराहनीय काम किया है। पौलोमी सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं। उनकी इस उपलब्धि पर परिवार के अलावा शहर के लोगों ने भी बधाई दी है।
वर्ष 2015 में पौलोमी शुक्ला ने अपने भाई के साथ मिलकर अनाथ बच्चों की दुर्दशा पर ‘वीकेस्ट ऑन अर्थ-ऑरफ्न्स ऑफ इंडिया’ पुस्तक लिखी, जिस ‘ब्लूम्सबरी’ ने प्रकाशित किया था। इसके अलावा पौलोमी ने वर्ष 2018 में अनाथ बच्चों के लिए 19 मांगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की थी। याचिका स्वीकार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार और देश के सभी राज्यों को नोटिस जारी करके एक महीने के अंदर जवाब दाखिल करने को कहा था। अनाथ बच्चों की शिक्षा और समान अवसर के लिए कई राज्यों ने पौलोमी को सम्मानित भी किया है।
पौलोमी के माता पिता दोनों आईएएस अफसर हैं। पिता प्रदीप शुक्ला लखनऊ के जिलाधिकारी रह चुके हैं। मीडिया से बातचीत में पौलोमी ने बताया कि वर्ष 2001 में मैं अपनी मां आराधना शुक्ला (आईएएस) के साथ हरिद्वार में थीं। उसी वर्ष भुज में भूकम्प ने सब तहस-नहस कर दिया था। बड़ी संख्या में बच्चे हरिद्वार के अनाथालय लाये गये थे। उन बच्चों की हालत ने झकझोर कर रख दिया था। पौलोमी ने बताया कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 11 राज्यों के 100 से अधिक अनाथालयों में बच्चों से मिलीं। उनके बारे में जाना और फिर उसी आधार पर भाई अमंद के साथ मिलकर पुस्तक लिखी।
‘अभी बहुत काम करने की जरूरत है’
फोर्ब्स पत्रिका में शामिल पौलोमी का मानना है कि अनाथ बच्चों की शिक्षा और सुविधाओं के लिए जमीनी स्तर पर अभी बहुत काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अभी देश में कई ऐसे राज्य हैं जहां जिलों में एक भी अनाथालय नहीं है।
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