scriptगोबर के कंडे पर खाना बना रही है गुड्डी, धुएं ने किया उज्ज्वला को धुंधला | pradhan mantri ujjwala yojana in uttar pradesh | Patrika News

गोबर के कंडे पर खाना बना रही है गुड्डी, धुएं ने किया उज्ज्वला को धुंधला

locationलखनऊPublished: May 13, 2019 11:45:05 am

Submitted by:

Hariom Dwivedi

– उप्र में उज्जवला योजना का लाभ कितने को- तीन साल बाद कितनी सफल उज्ज्वला योजना- 2016 में यूपी के बलिया से शुरू हुई थी उज्ज्वला योजना

pradhan mantri ujjwala yojana

गोबर के कंडे पर खाना बना रही है गुड्डी, धुएं ने किया उज्ज्वला को धुधंला

ग्राउंड रिपोर्ट
महेंद्र प्रताप सिंह
लखनऊ. बलिया की गुड्डी तीन साल बाद भी गोबर के कंडे पर खाना बना रही हैं। गैस चूल्हा और सिलेंडर रसोई के एक कोने पर पड़ा है। उस पर धुएं का कालिख की परत जम चुकी है। सीतापुर की रेशमा की रसोई का भी यही हाल है। कन्नौज की फातिमा बी का गैस सिलेंडर तो बैठने के काम आ रहा है। बरामदे में उसका इस्तेमाल स्टूल के रूप में हो रहा है। 1 मई 2016 को बलिया में प्रधानमंत्री ने गुड्डी को उज्ज्वला योजना के तहत पहला गैस सिलेंडर दिया था। तीन साल बाद पत्रिका ने मोदी सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना की जमीनी हकीकत का जायजा लिया तो पता चला कि गैस-चूल्हे गरीबों के घर में तो रखे हैं लेकिन इनका हाल, गुड्डी,रेशमा और फातिमा बी जैसा ही है। महिलाएं आज भी चूल्हे पर खाना बना रही हैं। उन्हें हर रोज लकड़ी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है।
उज्ज्वला योजना को मोदी सरकार लोकसभा चुनाव में बड़ी सफलता के रूप में भुनाना चाहती थी। लेकिन उप्र में छह चरणों का चुनाव बीतने के बाद भी कहीं गैस चूल्हे और उज्ज्वला स्कीम की चर्चा तक नहीं है। ग्रामीण इलाकों में खाना पकाने का पारंपरिक तौर-तरीका अब भी जारी है। घर की महिलाओं की सुबह गोबर पाथने यानी गोबर से उपले बनाने से ही शुरु होती है। गुड्डी देवी जो कि एक ईंट भ_ा मज़दूर की पत्नी हैं। उनके पास मजदूरी के लिए समय पर निकलना मजबूरी है। लेकिन घर से निकलने के पहले शाम और सुबह का खाना पकाने के लिए लकड़ी, कंडे-उपले का इंतजाम करती हैं। कमोबेश यही कहानी अन्य ग्रामीण महिलाओं की है। लंबा परिवार होने की वजह से एक माह में दो सिलेंडर की खपत है। और यह गरीब परिवार हर महीने सिलिंडर भराने का ख़र्च नहीं उठा सकते। इसलिए चूल्हा फूंकना उन्हें सस्ता पड़ता है।
देखें वीडियो…

90 फीसद परिवार पुराने ढर्रे पर
पत्रिका ने उप्र के करीब 27 जिलों का जमीनी डाटा इकट्ठा किया। जिन घरों को उज्ज्वला योजना का लाभ मिला है, उनकी पड़ताल की गयी तो पता चलाा कि एलजीपी कनेक्शन का इस्तेमाल न करने की वजह इसका महंगा होना है। हालत यह है उज्ज्वला योजना का लाभ लेने वाले 90 फ़ीसदी परिवार अब भी खाना पकाने के लिए लकड़ी और गोबर के उपलों जैसे परंपरागत साधनों का हीइ उपयोग कर रहे हैं।
क्या है उज्जवला योजना
1 मई 2016 को बलिया में उज्ज्वला योजना की शुरुआत की गयी थी। 2011 की जनगणना के हिसाब से जो परिवार बीपीएल श्रेणी में आते हैं, उन्हें उज्ज्वला योजना का लाभ मिल सकता है। पहले 5 हज़ार परिवारों को इससे लाभान्वित किया गया था अब तक 7 करोड़ लोग इसमें शामिल हो चुके हैं। 2021 तक 8 करोड़ बीपीएल परिवारों को इस योजना में शामिल करने का लक्ष्य है। योजना में सरकार की तरफ से एक एलपीजी यानी गैस सिलेंडर और चूल्हा मुफ्त दिया गया था।
pradhan mantri ujjwala yojana
यह है योजना की हकीकत
जिन जिलों में पड़ताल की गयी वहां पता चला कि पिछले एक साल में तकरीबन 18 प्रतिशत परिवारों ने ही गैस रिफिल करवाया। कुछ परिवार तो ऐसे भी मिले जिन्होंने मुफ्त में मिले सिलेंडर के बाद कभी गैस भरायी ही नहीं। कुछ परिवारों ने तो शादी-ब्याह जैसे विशेष मौक़ों पर ही गैस सिलेंडर भराया। कुछ घरों में सिलेंडर का इस्तेमाल सिर्फ चाय बनाने के लिए हो रहा है।
चूल्हे की दाल और रोटी का नहीं मिलता स्वाद
चौकाने वाला तथ्य यह है कि यह है ग्रामीणों को कुकर और स्टीम से पकी दालें और सब्जियां अच्छी नहीं लगतीं। उन्हें वह स्वाद ही नहीं मिल पाता। इसके अलावा महिलाओं की शिकायत है कि गैस चूल्हे पर बाजरा, रागी, मड़ुआ और मोटे अनाजों की रोटी सिंक ही नहीं पाती इसलिए वे गैस चूल्हे पर खाना ही नहीं बनातीं।
सब्सिडी का भी बवाल
ग्रामीण महिलाएं गैस सब्सिडी को जी का जंजाल बताती हैं। इनका कहना है कि हर महीने 760 रुपये एडवांस में कहां से लाएं। सब्सिडी बाद में आती है। वह राशि प्राय: अन्य कार्यों में खर्च हो जाती है। आर्थिक रूप से मजबूर ग्रामीणों के लिए हर माह इतने रूपए का इंतजाम करना मुश्किल होता है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो