पत्रिका ने उप्र के करीब 27 जिलों का जमीनी डाटा इकट्ठा किया। जिन घरों को उज्ज्वला योजना का लाभ मिला है, उनकी पड़ताल की गयी तो पता चलाा कि एलजीपी कनेक्शन का इस्तेमाल न करने की वजह इसका महंगा होना है। हालत यह है उज्ज्वला योजना का लाभ लेने वाले 90 फ़ीसदी परिवार अब भी खाना पकाने के लिए लकड़ी और गोबर के उपलों जैसे परंपरागत साधनों का हीइ उपयोग कर रहे हैं।
1 मई 2016 को बलिया में उज्ज्वला योजना की शुरुआत की गयी थी। 2011 की जनगणना के हिसाब से जो परिवार बीपीएल श्रेणी में आते हैं, उन्हें उज्ज्वला योजना का लाभ मिल सकता है। पहले 5 हज़ार परिवारों को इससे लाभान्वित किया गया था अब तक 7 करोड़ लोग इसमें शामिल हो चुके हैं। 2021 तक 8 करोड़ बीपीएल परिवारों को इस योजना में शामिल करने का लक्ष्य है। योजना में सरकार की तरफ से एक एलपीजी यानी गैस सिलेंडर और चूल्हा मुफ्त दिया गया था।
जिन जिलों में पड़ताल की गयी वहां पता चला कि पिछले एक साल में तकरीबन 18 प्रतिशत परिवारों ने ही गैस रिफिल करवाया। कुछ परिवार तो ऐसे भी मिले जिन्होंने मुफ्त में मिले सिलेंडर के बाद कभी गैस भरायी ही नहीं। कुछ परिवारों ने तो शादी-ब्याह जैसे विशेष मौक़ों पर ही गैस सिलेंडर भराया। कुछ घरों में सिलेंडर का इस्तेमाल सिर्फ चाय बनाने के लिए हो रहा है।
चौकाने वाला तथ्य यह है कि यह है ग्रामीणों को कुकर और स्टीम से पकी दालें और सब्जियां अच्छी नहीं लगतीं। उन्हें वह स्वाद ही नहीं मिल पाता। इसके अलावा महिलाओं की शिकायत है कि गैस चूल्हे पर बाजरा, रागी, मड़ुआ और मोटे अनाजों की रोटी सिंक ही नहीं पाती इसलिए वे गैस चूल्हे पर खाना ही नहीं बनातीं।
ग्रामीण महिलाएं गैस सब्सिडी को जी का जंजाल बताती हैं। इनका कहना है कि हर महीने 760 रुपये एडवांस में कहां से लाएं। सब्सिडी बाद में आती है। वह राशि प्राय: अन्य कार्यों में खर्च हो जाती है। आर्थिक रूप से मजबूर ग्रामीणों के लिए हर माह इतने रूपए का इंतजाम करना मुश्किल होता है।