सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है, “ऐसा प्रतीत होता है कि जमानत वर्ष 2004 से 2013 तक लंबित रही और अभियोजन पक्ष के लिए इसे निपटा दिया गया। इसके बाद अपील की सुनवाई के लिए कई तारीखें तय की गईं लेकिन आज तक सुनवाई नहीं हो सकी। याचिकाकर्ता के लिए वकील कहते हैं कि याचिकाकर्ता को 21 साल जेल में रहने के बाद जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। हमारा विचार है कि वर्तमान मामले के तथ्यों में, लंबित आपराधिक अपील में उच्च न्यायालय के सामने सजा के निलंबन और जमानत देने के लिए एक नया आवेदन करने के लिए याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता देकर न्याय का सिरा पूरा किया जाना चाहिए।”
याचिकाकर्ता का सुप्रीम कोर्ट से आग्रह :- याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि, उसे समय से पहले रिहाई दे दी जाए क्योंकि उसका मामला कुछ समय के लिए अनसुना रह गया है और उसने पहले से ही अच्छे व्यवहार में सलाखों के पीछे पर्याप्त समय बिताया है। शोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2020 एससीसी ऑनलाइन एससी 626 पर भरोसा रखा गया था, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को समय-पूर्व रिहा कर दिया, क्योंकि वह पहले ही 28 साल जेल में रह चुका था, उसका इतिहास साफ था और जेल में उसका आचरण अच्छा था।
पुनर्विचार याचिका पर अंतिम फैसला नहीं :- याचिकाकर्ता ने कहा कि उसकी अपील, जमानत/निलंबन की अस्वीकृति के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर की गई पुनर्विचार याचिका को फरवरी 2013 से अंतिम रूप से तय नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता सहानुभूति के लायक है क्योंकि उसका परिवार बिखर गया है। याचिकाकर्ता 21 वर्षों से अधिक समय तक जेल (बिना छूट के) में रह रहा है। और वर्ष 2004 में दोष सिद्ध होने के बाद, 16 साल बीत गए लेकिन न तो अपील के लंबित रहने के दौरान जमानत दी गई है, और न ही अपील पर सुनवाई कर माननीय हाईकोर्ट ने फैसला दिया है।
न्यायालय ने हालांकि उच्च न्यायालय में लंबित एक आपराधिक अपील (दोषसिद्धि के खिलाफ) के मद्देनज़र राहत देने से इनकार कर दिया। एडवोकेट ऑन रिकार्ड रोहित अमित स्थालेकर और अधिवक्ता जेड यू खान, सुलेमान मोहम्मद खान, तैयबा खान और आशीष चौधरी याचिकाकर्ता के लिए उपस्थित हुए।