क्या है मामला वर्तमान में इस कैफे को छांव फाउंडेशन द्वारा संचालित किया जा रहा है। इस संस्था का कहना है कि टेंडर खुलने से पहले ही ‘लोटस’ संस्था के प्रतिनिधि कैफे आकर काम करने वाले सरवाइवर को प्रलोभन दे रहे थे। ऐसे में सवाल उठता है जब टेंडर ही नहीं खुला था तो उन्हें कैसे पता था कि टेंडर उन्हें मिल रहा है। हालांकि इन आरोपों पर देर शाम निगम की ओर से स्पष्ट किया गया कि छांव फाउंडेशन ने अग्रिम धनराशि का ड्राफ्ट नहीं जमा किया था। बाकी तीन ने जमा किया इसलिए उनमें से उपयुक्त को दे आंवटन दिया गया। संचालक आशीष शुक्ला का कहना है कि महिला कल्याण निगम इसे कमर्शियल कैंटीन बनाने जा रहा है जबकि छांव फाउंडेशन के साथ सभी एसिड अटैक सर्वाइवर का लगाव है। हम लोग केवल बिजनेस के उद्देशय से एक-दूसरे से नहीं जुड़े हैं।हैंगआउट की कैंपेनर और एसिड अटैक सरवाइवर अंशू ने कहा कि वह शीरोज हैंगआउट से एसिड अटैक कर्मियों की सेवाएं समाप्त करने का वो हर स्तर पर विरोध करेंगी। अंशु का आरोप है कि महिला कल्याण निगम के अधिकारियों ने अपने करीबियों को फायदा पहुचांने के लिये प्राइवेट फर्म ‘लोटस हास्पिटैलिटी’ को शीरोज कैफे का संचालन सौंप दिया है। इसका वह विरोध करती हैं।
अखिलेश सरकार में खुला था कैफे दरअसल शीरोज कैफे की शुरुआत आगरा में हुई थी। इसके बाद 2016 में तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव की पहल के बाद लखनऊ में भी इस कैफे को खोला गया था। उस समय दो साल का कॉन्ट्रैक्ट छांव फाउंडेशन के साथ हुआ था। इसमें बारह सरवाइवर काम करती हैं, जिनका वेतन महिला कल्याण निगम की ओर से दिया जाता है। छांव फाउंडेशन के निदेशक आशीष शुक्ला का कहना है कि हम नॉन प्रॉफिटेबल संस्था हैं। इसलिए हमने पहले ही कह दिया था यह ड्राफ्ट हम जमा नहीं कर पाएंगे। इस पर वित्तीय पक्ष को बाद में तय करने को कहा गया था। टेंडर के फॉर्म में यह शर्तें थीं कि जिस संस्था ने एसिड अटैक सरवाइवर के साथ काम किया हो और जिसे उनकी सर्जरी आदि की जानकारी हो और उनका इलाज करने वाले हॉस्पिटल आदि से संपर्क हो। उसी संस्था को टेंडर दिया जाए।
निगम का तर्क इस पूरे मामले में महिला कल्याण निगम के परियोजना प्रबंधक राहुल सिन्हा ने कहा कि तकनीकी व वित्तीय प्रस्तावों के परीक्षण में पाया गया कि छांव फाउंडेशन ने अर्नेस्ट मनी की राशि का ड्राफ्ट ही नहीं लगाया था। इस कारण उसका प्रस्ताव खारिज कर दिया गया था। इसमें लोटस हास्पिटैलिटी संस्था का चयन हुआ है। वहीं भविष्य में एसिड अटैक पीड़िताओं का कोआपरेटिव बनाकर यह कैफे संचालित किया जाएगा। इसके बाद यह कैफे पीड़िताएं स्वयं चलाएंगी। छांव फाउंडेशन को भी यह काम करने के लिए कहा गया था लेकिन उसने दो साल में इस दिशा में कुछ नहीं किया।
विपक्ष ने उठाए सवाल कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने कहा कि वे इस कैफे में अक्सर जाते रहे हैं। यहां वर्तमान में जो संस्था इसे चला रही है वोे एसिड अटैक सर्वाइवर के परिवार की तरह है। उन्होंने इनके लिए लड़ाई लड़ी है। वहीं दूसरी ओर जिस संस्था(लोटस) को अब संचालन दिया जा रहा है उसके नाम से अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्या खेल है। लोटस की हिंदी सबको पता है। इस कैफे को प्राइवेट कैंटीन के करिए कमाई का जरिया बनाने की कोशिश की जा रही है।
वहीं सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया का कहना है कि सरकार के अधिकारियों की मदद से ऐसा हो रहा है। इस कैफे को अखिलेश यादव की पहल पर खोला गया था। मौजूदा सरकार अपने महिला विरोधी एजेंडे को पूरा करने के लिए और एक दूसरी संस्था की मदद के लिए वर्तमान संस्था को इस कैफे से दूर कर रही है। उन्हें केवल लोटस यानि कमल की चिंता है, किसी कमला या विमला की नही है।जबकि वहां कार्यत एसिड अटैक सर्वाइवर भी पुरानी संस्था के साथ ही जुड़े रहना चाहती हैं। इसके अलावा सपा प्रवक्ता सुनील सिंह साजन ने भी इस मुद्दे को बड़े स्तर पर उठाने की बात कही है। वहीं इस मामले में पत्रिका द्वारा महिला कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनका फोन नहीं उठा।