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तो इसलिए हार गए यूपी के ये बड़े चेहरे कहीं मोदी लहर तो कहीं जनता की नाराजगी

locationलखनऊPublished: May 23, 2019 06:28:49 pm

Submitted by:

Anil Ankur

तो इसलिए हार गए यूपी के ये बड़े चेहरेकहीं मोदी लहर तो कहीं जनता की नाराजगी

Rahul gandhi Priyanka gandhi

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी


अनिल के. अंकुर

लखनऊ। इस मोनामी (मोदी के नाम की सुनामी) के आगे कई बड़े चेहरे जड़ से उखड़ गए। सियासी प्रेक्षक ये कहने लगे हैं कि अब वे अपने मूूल धंधे में जाने के लिए बाध्य हो सकते हैं। मोनामी के चक्रवात में फंसने वाले एक नहीं कई दर्जन नेता हैं। जो चुनाव से पहले बड़े बड़े दावे कर रहे थे अब चुनाव आयोग की आलोचना करने लगे हैं। जो लोग हारे हैं उनकी हार का कारण क्या था। यह पता करने के लिए पत्रिका की टीम ने जायजा लिया तो पता चला केवल मोनामी ही उनकी हार की जिम्मेदार नहीं है बल्कि जनता से उनकी दूरी, जनता की नाराजगी, और दल बदल के खेल से जनता ऊब गई थी। पिछली सरकारों में नौकरियों में हुए भ्रष्टाचार ने भी आग में घी डालने का काम किया है।
राहुल गांधी की हार, जनता से नो रार

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से हार गए। स्मृति इरानी जीत गईं। राहुल गांधी ने घोषणा से पहले ही चुनाव में हार मान ली है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर राहुल क्यों हारे? ये क्या मोदी का जादू था या फिर अमेठी वालों का गांधी परिवार की प्यार की झप्पी भूलना? एक बार रायबरेली ने इंदिरा गांधी को हराया था, लेकिन उसका एहसास उन्हें तुरंत हुआ और बाई इलेक्शन में इंदिरा गांधी जीतीं कि वहंा आज तक कांग्रेस की जीत होती चली आ रही है। अमेठी वह क्षेत्र है जो सबसे पिछड़ा इलाका था। वहां की जमीन बंजर थी और कांग्रेस शासन ने वहां जमकर विकास कराया। ऐसी कोई बड़ी फैक्ट्री नहीं जो अमेठी में न लगी हो। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के शैक्षिक संस्थान वहां खोले गए। फिर भी जनता ने उन्हें हराया, इसको देखकर राजनीतिक प्रेक्षक हैं।

क्यों हारीं डिम्पल यादव
मुलायम परिवार की बहू डिम्पल यादव आखिर कन्नौज सीट से भाजपा के सुब्रत पाठक से चुनाव हा गईं। यह वह सीट है जिसे किसी जमाने में मुलामय सिंह यादव ने अपने लिए विकसित किया था। यहां यादव और मुसलमान वोटों की अच्छी खेप है। गठबंधन के बाद बसपा से भी यहां वोट ट्रांसफर कराने की आस थी। याद दिला दें कि बीते 2014 के चुनाव में सुब्रत पाठक को डिम्पल ने हराया था, लेकिन उनकी वह जीत आसान नहीं थी। सुब्रत पाठक ने उन्हें बहुत छकाया था। इस बार पिछली हार का बदला सुब्रत ने उनसे ले लिया। कहा जाता है कि सुब्रत जनता को सुलभ नेता के रूप में जाने जाते हैं जबकि डिम्पल यादव जनता से मिलती ही नहीं। जो करना होता है वह अखिलेश की टीम करती है।
छोड़ा सपा का द्वार तो हुई शिवपाल की हार
आखिर इस चुनाव ने दिखा दिया कि अगर आप अपना घर छोड़ते हैं तो क्या होगा। शिवपाल सिंह यादव के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। उन्होंने बड़े रौब से पार्टी बनाई। भाजपा ने उन्हें हाथों हाथ लिया। बड़ा बंगला दिया। पीसीएफ की अध्यक्षी नहीं ली। ग्राम्य विकास बैंक के अध्यक्ष पद से नहीं हटाया। फिर उन्होंने फिरोजाबाद से अपने चचेरे भाई राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को हराने का ऐलान किया। लेकिन जनता ने उन्हें कबूल नहीं किया। परिवार की इस लड़ाई में शिवपाल सियासी युद्ध हार गए।
राजबब्बर का नहीं चला फिल्मी ग्लैमर
मूलत: टूंडला के रहने वाले राजबब्बर का प्रारम्भिक जीवन आगरा में बीता। वहीं बगल की फतेहपुर सीकरी सीट से वे चुनाव लड़े और हार गए। इंसाफ के तराजू फिल्म से विलेन बने राजबब्बर ने अबकी बार सीट बदली और वे फिरोजाबाद की जगह फतेहपुर सीकरी पहुंचे और वहां की जनता ने इस जगह बदल को स्वीकार नहीं किया और न ही उनके फिल्मी जादू का माना।
इसी प्रकार पूर्व मंत्री आरपीएन सिंह कुशी नगर से और कानपुर से पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल की हार का कारण सिर्फ मोदी ही हैं। आरपीएन सिंह का कुशी नगर में रजवाड़ा है। वे राजा आरपीएन के नाम से जाने जाते हैं और ऐसे में उनकी हार से लगता है कि राजपाट से ऊबी जनता ने चौकीदार के प्रतिनिधि को चुना है। यही हाल कानपुर का है।
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