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राम जन्म भूमि: तो इस तरह मुसलमानों की आवाज बनी बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी

locationलखनऊPublished: Oct 16, 2019 12:29:04 pm

Submitted by:

Anil Ankur

डेढ़ सौ साल पुराना इतिहास है इस विवाद का
 


लखनऊ। अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राम जन्म भूमि विवाद पर बाबरी मस्जिद एकशन कमेटी का एक अहम रोल सामने आता है। मंदिर और मस्जिद के बीच के विवाद में मुसलमानों की आवाज उठाने का काम किया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने। इस कमेटी के गठन की एक रोचक कहानी है, जिसने अल्पसंख्यक मुसलमानों की आवाज को मुखर बुलंदी दी। इस कमेटी में जाने माने धार्मिक गुरू अली मियां से लेकर प्रख्यात वकील जफर याब जिलानी अहम भूमिका में रहे।
डेढ़ सौ साल से चल रही है कश्मकश

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन कैसे यह जानने से पहले यह बताना लाजमी होगा कि इस जमीन विवाद की जड़ें 1857 तक जाती हैं। उस वक्त तत्कालीन बाबरी मस्जिद के मौलवी मुहम्मद असगर ने मजिस्ट्रेट के यहां शिकायत याचिका दी थी कि हनुमानगढ़ी के महंत ने जबरिया मस्जिद के आंगन पर कब्जा कर लिया है। इस याचिका पर 1859 में ब्रिटिश सरकार ने प्रांगण में एक दीवार बनवाई जिससे हिंदू और मुसलमानों के पूजा करने का स्थान अलग-अलग हो गया। इसके बाद 22 दिसम्बर 1949 में राम-सीता की मूर्ति रखे जाने तक यथास्थिति बनी रही।
मूर्ति रखे जाने से शुरू हुआ विवाद

मस्जिद में मूर्तियों के तथाकथित विवाद का जन्म मूर्ति रखे जाने के बाद शुरू हआ। मूर्ति रखे जाने के 6 दिन बाद 29 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को विवादित संपत्ति करार दे दिया गया। आदेश पास किए गए और आस-पास के मुसलमानों के मस्जिद के भीतर प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मेन गेट बंद कर दिया गया और हिंदुओं को बगल के गेट से दर्शन की अनुमति दे दी गई। इसे विवादित संपत्ति घोषित किए जाने के बाद 1949 से लेकर 1975 तक फैजाबाद के सेशन कोर्ट में केस चला। इसके बाद 1975 में रिसीवरशिप के निर्णय के खिलाफ केस दायर किया गया। 1977 में मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट से लखनऊ बेंच में ट्रांसफर हो गया।
जजों ने मामले की सुनवाई से खुद को किया था अलग

बताते हैं कि 1977 के बाद अगले कुछ सालों तक मामले को पेंडिंग रखा गया और इसमें कोई प्रगति नहीं हुई। एक बाद एक कई जजों ने मामले से खुद को अलग कर लिया। मुस्लिम और हिंदू दोनों ही पक्षों की तरफ से बहुत ज्यादा दिलचस्पी भी नहीं दिखाई जा रही थी। इसके कुछ वक्त के बाद हालात बदलने शुरू हुए। हिंदूवादी संगठनों ने राम जन्मभूमि को लेकर आंदोलन करना शुरू किया। वहीं मुस्लिम पक्ष ने भी अपनी कमर कस ली।
अली मियां के एक फोन पर हो गई तैयारी

इस प्रकरण में मुसलमानों की आवाज बनने वाले वकील जफरयाब जिलानी याद करते हैं ने बताया कि 1982 में विश्व हिंदू परिषद की समस्तीपुर रथयात्रा के बाद ये कोई 1983 का समय रहा होगा, जब ख्यातिनाम इस्लामिक विद्वान अली मियां ने मुझे इस मामले पर बातचीत के लिए फोन किया था। अली मियां लखनऊ के मशहूर नदवा कॉलेज के हेड भी थे। जिलानी का दावा है कि वह संयोगवश इस मामले से जुड़ गए थे। उनका कहना है कि तब इस मामले की कमियों और खूबियों के बारे में बेहद कम जानकारी मौजूद थी। इस मामले को लडऩे के लिए पैसे की जरूरत थी। यह बात उन्होंने अली मियां से बताई तो अली मियां ने उन्हें 2000 रुपए दिए और अयोध्या से मामले की फाइल लेने को कहा। अली मियां बोले कि मामले में मस्जिद की ऐतिहासिक पोजीशन पर नोट्स तैयार करो। उन्होंने कहा कि तहरीक की शुरूआत की जाए। बड़े स्तर पर मस्जिद के समर्थन किया जाने वाला आंदोलन तहरीक था।
अली मिया ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी नाम सुझाया

आल इंइिडया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष रहे अली मिया ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी नाम सुझाया और कमेटी के गठन के बाद मामला इतना बढ़ा कि वह खत्म ही नहीं हुआ। जनवरी को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नेताओं की एक बैठक मशहूर वकील अब्दुल मन्नान के घर लखनऊ में हुई। उसमें सपा के सांसद आज़म खान, तत्कालीन कांग्रेस विधायक सैदुल ज़मा समेत करीब 200 लोग शामिल थे। इन सब क मौजूदगी में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन हुआ था। आज़म खान और जफरयाब जिलानी को कन्वेनर चुना गया तो वहीं मौलाना मुजफ़्फर हुसैन को अध्यक्ष बनाया गया था।
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