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Ramzan Recipe:व्यंजन जो तोड़ देता है नफरत की दीवार,हिंदू-मुस्लिम चाव से खाते हैं इसे

locationलखनऊPublished: May 17, 2019 07:03:18 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

रात में सजती है दुकानें, नवाबों के शहर की गलियां हो उठती हैं रोशन

ramzan special recipes in hindi

रमजान का महीना और निहारी
व्यंजन जो तोड़ देता है नफरत की दीवार,हिंदू-मुस्लिम चाव से खाते हैं इसे

रितेश सिंह
पत्रिका एक्सक्लूसिव

लखनऊ. नवाबों की नगरी लखनऊ में इन दिनों चौक और यहां के पुराने इलाकोंकी गलियां गुलजार हैं। जैसे-जैसे रात गहराती है यहां चहल-पहल बढ़ जाती है। रमजान के पाक महीने में किसी भी गली में घुस जाइए आपके नथुने में तरह-तरह के मसालों और व्यंजनों महक समा जाएगी। जायका ऐसा कि एक बार चखा तो उसे कभी भुला नहीं पाएंगे। ऐसा ही व्यंजन है निहारी और कुल्चा। रोजा खोलने के बाद इफ्तारी की यह पहली पसंद है।
नए लखनऊ के बाशिंदे जब सो जाते हैं तब पुराने लखनऊ का कोना-कोना रोशन होने उठता है। बाजार सज उठता है और खाने-पीने की दुकानों पर भीड़ बढ़ जाती है। जैसे ही इफ्तारी का समय नज़दीक आता हैं नमाज़ अदा करने के बाद रोजेदार अपना रोजा खोलते हैं। तब खजूर के साथ निहारी कुल्चा की सुगंध सभी को अपनी ओर खींच लेती है।
स्वादिष्ट और पौष्टिक है निहारी कुल्चा

यूं तो बारहो महीने बिकता है निहारी और कुल्चा। लेकिन, रमजान के महीने में निहारी कुल्चा खाने का अपना अलग ही मज़ा है। यह स्वादिष्ट होने के साथ ही बहुत पौष्टिक भी होता है। लखनऊ में कई ऐसी जगह हैं जहां का निहारी कुल्चा बहुत स्वादिस्ट है। इसे बच्चे, युवा और बुजुर्ग बहुत चाव से खाते हैं। तरावी के बाद सहरी करने के वक्त दुकानों पर बिरयानी, निहारी कुल्चे, कोरमा, जर्दा की मांग बढ़ जाती है।
यहां का निहारी कुल्चा सबसे अलग

पुराने लखनऊ में नक्खास,नज़ीराबाद, मौलवीगंज, अकबरीगेट, हुसैनाबाद, घंटाघर, अमीनाबाद,चौक, सहादतगंज,बिल्लौजपुरा, मकबूलगंज में निहारी कुल्चे का असली जायका मिलता हैं। घड़ी वाली मस्जिद के सामने निहारी कुल्चा, शीरमाल और खमीरी रोटी खाने के लिए शाम होते ही मारामारी मच जाती है। यहां गोश्त, गुर्दे, बकरे के पाए की निहारी विशेष तौर पर बनाए जाते है। इसी तरह की भीड़ अकबरी गेट पर भी जुटती है। यहां की स्वादिष्ट निहारी कुल्चा खाने लोग दूर-दूर से आते हैं।
इस तरह से बनती है निहारी

अकबरी गेट के सऊद अहमद बताते हैं कि निहारी कुल्चा ख़ास मसाले से तैयार होती है। सभी मसाले घर पर ही तैयार होते हैं। गोश्त के बड़़े टुकड़ों पर 20 से 25 मसालों के मिश्रण का खास लेप लगाया जाता है। फिर सभी टुकड़ों को एक पोटली में रखकर पतीले में कोयले के ऊपर पकाया जाता है। प्याज, हल्दी, बेसन, कई तरह की दालें मिलाकर इसे देर तक पकने के लिए छोड़ दिया जाता है। बाद में इसे कुल्चे के साथ खाया जाता है।
हिन्दू-मुस्लिम दोनों लेते हैं निहारी का मज़ा

नवाबों के शहर में हिन्दू-मुस्लिम एक साथ नहारी-कुल्चे का स्वाद लेते हैं। इफ्तार के लिए रोजेदार नमाज़ अदा करके जब रोजा खोलते हैं तब गैर-मुस्लिम समुदाय के लोग भी निहारी खरीदने पहुंचते हैं।
क्या कहते हैं रोजेदार

आसिफ बताते हैं कि निहारी का स्वाद लाजवाब होता हैं। खजूर खाकर रोजा खोलने के बाद निहारी खाना अलग ही मजा देता है। इसको खाने के बाद पूरे दिन प्यास नहीं लगती। इसकी वजह से 18 घंटे रोजा रख लेते हैं।
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