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कोविड की तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित करेगी,जानिए आखिर क्या हैं खास

locationलखनऊPublished: Jul 17, 2021 07:31:25 pm

Submitted by:

Ritesh Singh

कोविड के भारत में आने के तुरंत बाद, 95 प्रतिशत लोगों की प्रतिक्रिया मानसिक स्वास्थ्य पर बोझ दिखा रही थी और 5 प्रतिशत जिन्होंने प्रतिक्रिया नहीं दी, उनके पास संचार का कोई स्त्रोत नहीं था।
 

कोविड की तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित करेगी,जानिए आखिर क्या हैं खास

कोविड की तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित करेगी,जानिए आखिर क्या हैं खास

लखनऊ ,कविड-19 महामारी एक महत्वपूर्ण और वैश्विक जन-स्वास्थ्य संकट के रूप में सामने आई है। इसके बीच‘सूचना’ की एक छिपी हुई महामारी रही। जो कोविड-19 को पहले के प्रकोपों के सामने ‘डिजिटल इन्फोडेमिक’ के रूप में खड़ा करती है। गलत सूचना, दुष्प्रचार, भ्रम फैलाने और इंफोडेमिक पैनडेमिक (बहुत सारी गलत व सही जानकारियों की महामारी) तथा कैसे कोविड-19 महामारी के दौरान इंफोडेमिक ने मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया। हील हेल्थ ने हील-थाय संवाद के 19 वें एपिसोड के तहत इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। यह आयोजन 15 जुलाई को हील फाउंडेशन, इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन, डीपीयु और माखनलाल चतुर्वेदी नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ जनर्लिज़्म एंड कम्युनिकेशन (एमसीएनयुजेसी) की नॉलेज पार्टनरशिप में किया गया।

इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन-हील- थाय संवाद के 19 वें एपिसोड के दौरान गलत सूचनाओं, दुष्प्रचार और भ्रम फैलाने पर बोलते हुए, नई दिल्ली स्थित एम्स के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर और आईपीएचए के अध्यक्ष, डॉ. संजय कुमार ने कहा गलत सूचनाओं और दुष्प्रचार का संयोजन जिसे इन्फोडेमिक कहा जाता है, कोविड-19 महामारी के फैलने के बाद से हो रहा है। गलत सूचना का हालिया उदाहरण यह है कि कोविड की तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित करेगी। यह पूरी तरह से गलत सूचना है, क्योंकि इसके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। हम देखते हैं कि लोग हाथ में दस्तानें पहन रहे हैं, यह समझते हुए कि यह उन्हें संक्रमण से बचाएगा, लेकिन यह इसमें सहायता नहीं करता बल्कि वायरस के प्रसार का कारण बन सकता है। जैसे कि जब लोग हाथों में दस्तानें पहनते हैं तो वे हाथ नहीं धोते और अन्य सतहों को छूते हैं। ऐसे में वायरस फैलने की संभावना बनी रहती है। लोगों को इंफोडेमिक से दूर रखने के लिए सामुदायिक शिक्षा की आवश्यकता है।
जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भूमिका महत्वपूर्ण है। कोविड-19 के दौरान इंफोडेमिक ने मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित किया पर इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन-हील- थाय संवाद के 19 वें एपिसोड के दौरान विस्तार से बताते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्युरोसाइंसेस (निमहंस) के सेंटर फॉर साइको-सोशल सपोर्ट इन डिज़ास्टर मैनेजमेंट के अध्यक्ष प्रोफेसर के.सेकर ने कहा कोविड के भारत में आने के तुरंत बाद, 95 प्रतिशत लोगों की प्रतिक्रिया मानसिक स्वास्थ्य पर बोझ दिखा रही थी और 5 प्रतिशत जिन्होंने प्रतिक्रिया नहीं दी, उनके पास संचार का कोई स्त्रोत नहीं था।
हालांकि,मानसिक बोझ धीरे-धीरे कम हुआ, फिर भी कोविड-19 कई लोगों के लिए जटिल बहुआयामी तनाव का स्त्रोत रहा है। कोविड-19 संकट के दौरान, स्वास्थ्य खतरों के विरूद्ध सामुहिक लड़ाई में विश्व भर के लोगों को भय और अनिश्चितता से दूर रखने और एकजुट करने के लिए संचार अपरिहार्य था। संकट के समय अपर्याप्त संचार गंभीर व्यक्तिगत और आर्थिक परिणाम ला सकता है। जहां तक मानसिक स्वास्थ्य के परिणामों का संबंध है, डर और अनिश्चितता कोविड-19 से जुड़ी हुई है। लॉकडाउन तथा सोशल डिस्टेंसिंग के कारण होने वाली उत्तेजना और संत्रास, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच को गलत सूचनाओं और दुष्प्रचार ने गंभीर और व्यापक बना दिया।
इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन-हील- थाय संवाद के 19 वें एपिसोड के दौरान बोलते हुए, नई दिल्ली स्थित जेएनयु के सेंटर ऑफ सोशल मेडिसीन एंड कम्युनिटी हेल्थ के अध्यक्ष, डॉ. राजिब दास गुप्ता ने कहा, “कोविड-19 महामारी के संदर्भ में इंफोडेमिक का वर्णन जानकारी की अधिकता के रूप में किया गया था। लोगों को कुछ सटीक या विश्वसनीय स्त्रोतों से उचित मार्गदर्शन खोजने में मुश्किल होती है। जब उन्हें आवश्यकता होती है। दिलचस्प बात है कि विश्व आर्थिक मंच ने इनके बारे में डिजिटल वाइल्ड फायर (डिजिटल माध्यमों के द्वारा तेजी से फैलने वाली जंगल की आग की तरह) के रूप में पहले ही आगाह किया था। जनवरी के तीसरे सप्ताह में ही कोविड अफवाह की लहरें शुरू हो गईं और दूसरी अफवाह फऱवरी के महीने में सामने आई। चारों ओर भ्रम की स्थिति है, और सभी प्रकार के मीडिया सूचनाओं को पंप कर रहे हैं, लेकिन सभी विश्वसनीय नहीं हैं। एक बहुत ही जटिल स्थिति बन गई है। क्योंकि बहुत सारी गतिविधियां चल रही हैं। खतरों के बारें में उचित सूचनाओं का अभाव है।
इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन हील- थाय संवाद के 19 वें एपिसोड के दौरान गलत सूचनाओं, दुष्प्रचार और भ्रम फैलाने पर विस्तार से बोलते हुए, डॉ. अमिताव बेनर्जी, प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष, सामुदायिक चिकित्सा, डॉ. डी.वाय पाटिल मेडिकल कॉलेज, पुणे ने कहा, “गलत सूचनाएं भूल-चूक के कारण हो सकती है और दुष्प्रचार का कार्य कुछ दुर्भाग्यपूर्ण निहित स्वार्थों द्वारा हो सकता है। हमें इसके बारे में खुली बहस करने की जरूरत है। सरकारी अधिकारियों और वैज्ञानिकों द्वारा भूल-चूक पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। सार्वजनिक,जन स्वास्थ्य पेशेवरों को सबसे निचले स्तर से लेकर शीर्ष तक प्रति-नियुक्ति करने की आवश्यकता है। पारदर्शिता के लिए अच्छी वैज्ञानिक बहस जरूरी है।

इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन में बोलते हुए, वैक्सीन पब्लिक पॉलिसी एंड हेल्थ सिस्टम एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहारिया ने कहा, “जहां तक वैक्सीन के बारे में हिचकिचाहट की बात है, लोग 1798 से ही हिचकिचा रहे हैं। जब से वैक्सीन या टीके अस्तित्व में आए। हालांकि बड़ी संख्या में लोग वैक्सीन लगवाते हैं, फिर भी 30-40 प्रतिशत लोग हिचकिचाते हैं। इंटरनेट से जो जानकारी मिल रही है। हर कोई उसमें गोते लगा रहा है। पोलियो का टीकाकरण शुरू होने के बाद से ही लोगों में आसंजस्य की स्थिति बनी हुई है। कोविड के दौरान हिचकिचाहट का कारण गलत सूचनाएं हैं। हर कोई जानकारी का भूखा है। सरकार को समन्वित व्यवहार परिवर्तन अभियान चलाने के लिए विशेषज्ञ स्वास्थ्य संचार एजेंसियों को शामिल करना चाहिए और एक पेशेवर रूप से तैयार की गई केंद्रीकृत संचार रणनीति लागू करना चाहिए। जिसका सभी हितधारकों द्वारा संयुक्त रूप से पालन किया जाए।
हील-थाय संवाद श्रृंखला की अवधारणा और आयोजन के पीछे जो व्यक्ति हैं। वह हील फाउंडेशन के संस्थापक और सीईओ डॉ. स्वदीप श्रीवास्तव हैं। उन्होंने कहा पिछले साल भारत में कोविड के प्रकोप के बाद शुरू किए गए कोविड फाइटर्स हेल्थ सेफ्टी मूवमेंट ने अपने 400 दिन पूरे कर लिए हैं और यह हील-थाय संवाद का 19 वां एपिसोड या कड़ी चल रही है। 26 वेबिनारों की श्रृंखला के माध्यम से हम भारत में 13.5 करोड़ लोगों तक पहुंचे। जिसमें 260 से अधिक चिकितसा और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों तथा प्रमुख महिला प्रभावकों ने पैनलिस्ट के रूप में संबोधित किया और कोविड से संबंधित 2500 से अधिक प्रश्नों का उत्तर दिया गया।
डॉ. श्रीवास्तव ने आगे कहा इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन (आईपीएचए) के समर्थन से हम देश के सबसे बड़े जन स्वास्थ्य अकादमिक निकायों में से एक, इंडिया हेल्थ इंफोडेमिक फैक्ट चैकिंग नेटवर्क (आईएचआईएफसीएन) शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। जो कि मुख्य रूप से सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी समाचारों/सूचनाओं के लिए भारत का पहला समर्पित तथ्य-जांच मंच होगा। आईएचआईएफसीएन तथ्य-जांच में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध होगा।
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