लखनऊ

संस्कृत मात्र एक भाषा नहीं है बल्कि भारतीय संस्कृति का मूल आधार:आनंदीबेन पटेल

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी का दीक्षान्त समारोह सम्पन्न

लखनऊMar 02, 2021 / 09:24 pm

Ritesh Singh

Sampurnanand Sanskrit University convocation concluded

लखनऊः विश्वविद्यालयों का काम मात्र डिग्री प्रदान करना नहीं है, अपितु हमारे युवाओं को देश की एकता, अखण्डता, राष्ट्र निर्माण और विकास का कर्णधार बनाना है। इसके लिए सही रास्ता एवं मार्गदर्शन देने का काम हमारे शिक्षा संस्थानों को करना चाहिए। ये विचार उत्तर प्रदेश की राज्यपाल एवं कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के 38वें दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों को शिक्षण के साथ सामाजिक दायित्व का भी निर्वहन करना चाहिए। ताकि सामाजिक समस्याओं का जल्द ही समाधान हो सके। इस अवसर पर राज्यपाल ने स्नातक के 11,118, स्नातकोत्तर के 4,653 एवं पी0-एच0डी0 के 14 विद्यार्थियों को उपाधियां दी और 57 विद्यार्थियों को पदक देकर सम्मानित किया।
राज्यपाल ने कहा कि शैक्षणिक वातावरण ऐसा हो जो चुनौतियो के समाधान में योगदान के लिए प्रेरित करे। उच्च शिक्षा संस्थानों में अध्ययनरत विद्यार्थियों एवं अध्यापकों को शिक्षा में नवीनता और आधुनिकता के साथ ही अपनी सांस्कृतिक विरासत, समृद्ध परम्पराओं एवं शाश्वत मूल्यों का भी ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्राचीन ज्ञान का सदुपयोग और राष्ट्रीय स्तर पर आधुनिकीकरण दोनों मे समन्वय होना चाहिए। ताकि देश तथा संस्कृति के अनुरूप पूर्ण विकास करने के साथ ही देश-समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में समर्थ नागरिकों का निर्माण भी हो।
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि संस्कृत मात्र एक भाषा नहीं है, यह भारतीय संस्कृति का मूल आधार है, भारतीय सभ्यता की जड़ है, हमारी परम्परा को गतिमान करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसके साथ-साथ समस्त भारतीय भाषाओं की पोषिका है। संस्कृत ज्ञान के बिना किसी भी भारतीय भाषा में पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा एवं सनातन संस्कृति के कारण ही भारतवर्ष एकता के सूत्र में आबद्ध है। क्योंकि संस्कृत शास्त्रों में कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा कामरूप से कच्छ तक के भूभाग को एक मानकर चिन्तन किया गया है।
राज्यपाल ने कहा कि भारती की आत्मा संस्कृत भाषा बहुत वर्षों से उपेक्षित रही। उन्होंने कहा कि वर्तमान भारत सरकार द्वारा घोषित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संस्कृत भाषा में निहित ज्ञान-विज्ञान को भारतीय शिक्षा का मूल आधार बनाने पर जोर दिया गया है। इसके साथ ही चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, शंकराचार्य, चाणक्य आदि का भी इस नीति में सादर स्मरण किया गया है। राज्यपाल ने कहा कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत संस्कृत की प्रासंगिकता को नई दिशा मिल सकती है तथा संस्कृत अध्ययन से असीमित रोजगार की सम्भावनायें बनती है।

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