दरअसल लखनऊ में एनजीओ चलाने वाले आरिफ (47) धारा 377 के तहत जुलाई 2001 में गिरफ्तार किए गए थे। उन्हें 47 दिन की जेल भी हुई थी। इसके बाद से वह लगातार इस एक्ट के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। वह इस केस में याचिकाकर्ता भी थे। उन्होंने बताया कि कई साल के संघर्ष के बाद ये इंसाफ मिला है।
साल 2001 में आरिफ को डालीबाग स्थित अपने ऑफिस से गिरफ्तार कर लिया गया था। आरिफ के मुताबिक, उन्हें और उनके साथियों को जीप में लादकर थाने ले जाया गया लॉकअप में बंदकर पीटने के बाद जेल में भी बेरहमी से पीटा गया।
दस दिनों तक पानी तक नहीं दिया गया। जेल में एक भला कैदी पानी पिला देता था। जेल में लगातार धमकी मिलती रही। समलैंगिक होने के जुर्म में जेल में बिताए 47 दिनों का दर्द कभी भूल ही नहीं सकता।
फैसले के वक्त दिल्ली में मौजूद केस के मुख्य याचिकाकर्ता आरिफ जाफर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि यह एक लम्बी लड़ाई थी। इसमें बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। आज संतोष है कि समलैंगिक पर फैसला करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह कोई गुनाह नहीं है। समलैंगिकों को भी सम्मान के साथ जीने का पूरा हक है।