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गुनाहों से तौबा की रात है शब-ए-बारात, घरों से होगी इबादत, जानिए इस्लाम धर्म में क्या है इसका महत्व

locationलखनऊPublished: Apr 09, 2020 07:46:35 am

शब-ए-बारात मुसलमान समुदाय के लोगों के लिए इबादत और फजीलत की रात होती है। मान्यता है कि इस रात को अल्लाह की रहमतें बरसती हैं…

गुनाहों से तौबा की रात है शब-ए-बारात, घरों से होगी इबादत, जानिए इस्लाम धर्म में क्या है इसका महत्व

गुनाहों से तौबा की रात है शब-ए-बारात, घरों से होगी इबादत, जानिए इस्लाम धर्म में क्या है इसका महत्व

लखनऊ. शब-ए-बारात मुसलमान समुदाय के लोगों के लिए इबादत और फजीलत की रात होती है। मान्यता है कि इस रात को अल्लाह की रहमतें बरसती हैं। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, शब-ए-बारात शाबान महीने की 15वीं तारीख को होती है। शब-ए-बारात की पाक रात को मुसलमान समुदाय के लोग इबादत करते हैं और अपने गुनाहों से तौबा करते हैं। इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, इस रात को अगर सच्चे दिल से इबादत की जाए और गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह हर गुनाह से पाक कर देता है। इसलिए इसे गुनाहों से तौबा की रात भी कहते हैं। लेकिन इस बार शब-ए-बारात आज यानी लॉकडाउन के बीच पड़ी है और कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों ने अपील की है कि देश में फैले संक्रमण के मद्देनजर लोग शब-ए-बारात के मौके पर कब्रिस्तान, दरगाह या मजारों पर जाने से बचें और घर पर ही इबादत करें।
शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखा जाता है। माना जाता है कि शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बारात से इस शब-ए-बारात तक के सभी गुनाह माफ कर दिए गये। हालांकि ये रोजा रखना फर्ज नहीं होता। मतलब अगर रोजा न रखा जाए तो गुनाह भी नहीं मिलता, लेकिन रखने पर तमाम गुनाहों से माफी मिल जाती है। मुस्लिम समुदाय के लोग इस दिन अपने बुजुर्गों की कब्र पर जाते हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते उलेमाओं ने इस बार घर से ही इबादत करने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए बाहर न निकलने की अपील की है। शब-ए-बारात की रात में कब्रिस्तान न जाने की भी सलाह दी गई है। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने भी मुस्लिम समुदाय से आह्वान किया कि शब-ए-बारात के अवसर पर लोग लॉकडाउन एवं सामाजिक दूरी के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अपने घरों पर ही इबादत करें। इसके अलावा ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली, शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद, सुन्नी और अब शिया वक्फ बोर्ड ने भी घरों में रहकर इबादत करने के लिए कहा है।
इस्लाम धर्म में क्या है महत्व

इस्लाम धर्म में ये रात बड़ी अजमत और बरकत वाली होती है। इस रात में अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगी जाती है। मुस्लिम घरों में तमाम तरह के पकवान बनते हैं और इबादत के बाद इसे गरीबों में बांटा जाता है। शब-ए-बारात की रात को इस्लाम की सबसे अहम रातों में शुमार किया जाता है क्योंकि इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, इंसान की मौत और जिंदगी का फैसला इसी रात को किया जाता है। इसलिए इसे फैसले की रात भी कहा जाता है। शब-ए-बारात की पूरी रात मुसलमान समुदाय के पुरुष मस्जिदों में इबादत करते हैं और कब्रिस्तान जाकर अपने से दूर हो चुके लोगों की कब्रों पर फातिहा पढ़कर उनकी मगफिरत के लिए अल्लाह से दुआ करते हैं। वहीं, दूसरी ओर मुसलमान औरतें घरों में नमाज पढ़कर, कुरान की तिलावत करके अल्लाह से दुआएं मांगती हैं और अपने गुनाहों से तौबा करती हैं। लेकिन, इस बार पुरुष भी घरों में रहकर नमाज पढ़ेंगे और इबादत करेंगे।
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