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Pragatisheel Samajwadi Party: सपा से अलग होकर शिवपाल ने बनाई थी प्रसपा, 2022 में बदलेगी चुनावी तस्वीर!

locationलखनऊPublished: Jul 25, 2021 05:48:33 pm

Submitted by:

Rahul Chauhan

Pragatisheel Samajwadi Party in 2022 election
150 विधानसभा सीटों पर Pragatisheel Samajwadi Party लड़ सकती है चुनाव। सपा के साथ गठबंधन पर करने पर चाचा-भतीजे में चल रही बात।

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फैक्ट फाइल

दल- प्रगतिशील समाजवादी पार्टी

स्थापना- 29 अगस्त 2018

संस्थापक- शिवपाल सिंह यादव

उद्देश्य- समाजवादी मूल्यों और सिद्धांतों को आगे बढ़ाना

लखनऊ. Pragatisheel Samajwadi Party. समाजवादी पार्टी से अलग होकर 29 अगस्त 2018 को समाजवादी नेता और मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव(Shivpal Singh Yadav) ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) यानी प्रसपा (Pragatisheel Samajwadi Party) का गठन किया था। प्रसपा (PSP) ने लोकसभा चुनावों के बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में अपने प्रत्याशी उतारे थे। अब पार्टी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Vidhan Sabha Election 2022) की तैयारियों में जुटी है। चर्चा है कि विधानसभा चुनावों से पहले चाचा-भतीजे एक साथ हो जाएंगे। यानी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और शिवपाल यादव में सुलह हो जाएगी।
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प्रगतिशील समाजवादी पार्टी 2022 में अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ेगी। शिवपाल यादव की योजना करीब 150 सीटों पर प्रसपा के उम्मीदवार उतारने की है। 2019 लोकसभा चुनाव में शिवपाल यादव ने कई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। वह खुद भाई रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ फिरोजाबाद सीट से चुनाव लड़े। यहां उन्हें करीब एक लाख वोट मिले। यूपी की तीन अन्य लोकसभा सीटों इटावा, बरेली और कानपुर देहात में प्रसपा ने सपा को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला।
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प्रसपा की छोटे दलों पर नजर

शिवपाल यादव सूबे के कई छोटे दलों के नेताओं से संपर्क में हैं। ओम प्रकाश राजभर और एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी से उनकी मुलाकात हो चुकी है। 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए उन्होंने गैर-भाजपावाद का नारा दिया है। उनका कहना है कि भाजपा को हराने के लिए पूरे देश के समाजवादियों को एक होना पड़ेगा। सहकारिता चुनावों की बादशाहत का तिलिस्म टूटा हालांकि, सपा से अलग होने के बाद शिवपाल यादव कोई बड़ा करिश्मा नहीं दिखा सके। 1991 से अब तक सहकारिता के क्षेत्र में सपा और खासकर ‘यादव परिवार’ का ही एकाधिकार रहा है। मायावती के शासनकाल में भी सहकारी ग्रामीण विकास बैंक पूरी तरीके से यादव परिवार के ही कब्जे में रहा है। लेकिन भाजपा ने इस बार शिवपाल यादव के तिलिस्म तोड़कर सहकारिता चुनावों में भी कब्जा जमा लिया है।
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सपा के साथ गठबंधन, नहीं होगा विलय

प्रसपा के वोटर और पार्टी का जनाधार वही है जो सपा का है। प्रसपा ने करीब करीब हर जिले में अपना संगठन खड़ा कर लिया है। लेकिन कुछेक जिलों को छोड़कर पार्टी का कहीं भी मजबूत संगठन नहीं है। यादव और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतों का विभाजन रोकने के लिए सपा ने प्रसपा के साथ गठबंधन का प्रस्ताव दिया है। जिसे शिवपाल ने भी स्वीकार कर लिया है।
https://youtu.be/ISZ5CW7Y_fs
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