चुनाव आयोग के सूत्रों ने अनुसार…
चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी के रजिस्ट्रेशन के लिए 2017 की शुरुआत में ही दावेदारी कर दी थी लेकिन परिवार और पार्टी में चले रहे युद्ध पर विराम लगने की उम्मीद के चलते वह इसे आक्रामकता के साथ इसे आगे नहीं ले गए थे। बता दें कि उन्होंने जनता दल के चुनाव चिन्ह ‘पहिये’ के लिए आवेदन किया था जिसे चुनाव आयोग ने जब्त कर लिया था क्योंकि कई लोग इस चुनाव चिन्ह पर नजर बनाए हुए थे। बता दें की शिवपाल की अलग पार्टी बनने के बाद वे सपा की ही वोट बैंक अपने पक्ष में तब्दील करने की कोशिश करेंगे, जो सपा के लिए नुकसानदायक होना तय है। वहीं शिवपाल सिंह ये भी कह चुके हैं कि उनके पास नेताजी मुलायम सिंह यादव का समर्थन है जो अखिलेश यादव की और ज्यादा टेंशन बढ़ाने वाली बात है।
परिवार में चल रही थी फूट
शिवपाल यादव का मानना था की परिवार में चल रही कलह एक दिन ख़त्म हो जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सूत्रों के कहना है कि शिवपाल ने अपने नए राजनीतिक संगठन को बेहद गोपनीय बनाए रखा था। यहां तक कि उन्होंने समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव से भी इस मामले में कोई चर्चा नहीं की थी। बता दें कि जब समाजवादी पार्टी यूपी में सत्ता में थी तब से यादव परिवार में आपसी फूट जारी है । पार्टी के अंदर अपने भतीजे अखिलेश यादव से उनका विवाद जारी रहा और जनवरी 2017 में अखिलेश पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त कर दिए गए।
शिवपाल ने बनाया अलग मोर्चा
समाजवादी पार्टी में लगातार नजरअंदाज किए जाने के बाद शिवपाल यादव ने 29 अगस्त को समाजवादी सेक्युलर मोर्चे की स्थापना की। जिसमें उन्होंने दावा किया कि मुलायम भी उनके साथ हैं। उनके सूत्रों के मुताबिक, इस पड़ाव पर भी शिवपाल ने इंतजार किया था कि अखिलेश उन्हें दोबारा से अप्रोच करेंगे लेकिन कुछ नहीं हुआ। आपको बता दें कि शिवपाल अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी 80 सीटों पर समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के उम्मीदवार भी उतारेंगे। जो कहीं न कहीं सपा को ही नुकसान पहुंचाने वाले होंगे। क्योंकि शिवपाल के सभी उम्मीदवार सपा के वोटबैंक में ही सेंध लगाएंगे।