नाम महिमा का गान करते हुए पूज्या लक्ष्मी प्रिया ने कहाकि प्रहलाद बचपन से ही हरि सुमिरन में तल्लीन हो गए। अनेकों बार हिरण्य कश्यप ने प्रहलाद को मारने की चेष्टा की लेकिन स्वयं नारायण जी प्रहलाद की रक्षा करते हैं। उन्होंने कहाकि जिस पर परमात्मा की कृपा हो उस पर सांसारिक जीव का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अनेक कठिनाइयों के बाद भी प्रहलाद ने हरि सुमिरन भगवत् भजन नहीं छोड़ा। लक्ष्मी प्रिया जी ने कथा के माध्यम से समस्त जनमानस को संदेश दिया कि मनुष्य पर कितनी भी विपत्ति क्यों ना आ जाए उसे हरिनाम श्री कृष्णनाम का आश्रय हमेशा रखना चाहिए। उन्होंने “रामनाम जप हरि नाम जप कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
हरि नाम नहीं तो जीना क्या…” जैसे भजन के माध्यम से पूरे प्रसंग को बड़े भाव से गान किया। “जिनके हृदय श्रीराम बसें तिन और को नाम लियो न लियो…” जैसे भजनों के माध्यम से संगीत की स्वर लहरियां बिखेरते हुए भजन गायक रुपराम, सह गायक व आर्गन साधक मुकेश एवं लक्ष्मीनारायण के तबले की थाप से कथा स्थल गुंजायमान हो उठा और भक्त झूमने लगे।