आश्विन शुक्ल दशमी को विजयदशमी का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
यह त्यौहार भारतीय संस्कृति के वीरता का पूजक, शौर्य का उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है।
उन्होंने बतायाकि भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है।
दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की व कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं। पंडित शक्ति मिश्रा ने कहाकि नवरात्री के दसवें दिन माता की विदाई की जाती हैं
उससे पहले माता की गोद भराई की रस्म को निभाया जाता हैं पूजा - अर्चना के बाद जब माता की विदाई होने से पहले सिंदूर माता को अर्पित करने के बाद सिंदूर खेले की रस्म को पूरा किया जाता हैं। सिन्दूर खेले का शाब्दिक अर्थ है सिंदूर खेल। यह एक बंगाली हिंदू परंपरा है जहाँ महिलाएँ दुर्गा पूजा के अंतिम दिन विजयादशमी पर एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। अनुष्ठान पूजा के समापन के बाद विजयादशमी के ही दिन विवाहित बंगाली हिंदू महिलाएं देवी के माथे और पैरों पर सिंदूर लगाती हैं और उन्हें मिठाई भेंट करती हैं। उसके बाद सभी शादी शुदा महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर मिठाई खिलाती हैं। उसके बाद सिंदूर से ही महिलाएं एक दूसरे की पीठ पर लिखती हैं पति का नाम। मान्यता हैकि बढ़ती हैं पति की उम्र।