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आम चुनाव में खास होगी छोटे दलों की भूमिका, इनके तेवरों ने सहयोगियों की बढ़ाई मुसीबत

locationलखनऊPublished: Aug 08, 2018 09:59:18 am

Submitted by:

Hariom Dwivedi

भाजपा भी अपने पुराने सहयोगियों के साथ चुनाव मैदान में होगी लेकिन, इस बार क्षेत्रीय पार्टियों और उनके क्षत्रपों के तेवर काफी तीखे हैं

lok sabha chunav 2019

आम चुनाव में खास होगी छोटे दलों की भूमिका, इनके तेवरों ने सहयोगियों की बढ़ाई मुसीबत

महेंद्र प्रताप सिंह
लखनऊ. आम चुनाव अभी दूर हैं। लेकिन, उप्र में राजनीति माहौल गर्म है। भाजपा ने 2019 की तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। प्रमुख विपक्षी दल भी चुनावी रणनीति मे जुट गए हैं। इस बार के चुनाव में उप्र में गठबंधन राजनीति का नया प्रयोग देखने को मिल सकता है। धुर विरोधी बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी एकजुट हैं। भाजपा भी अपने पुराने सहयोगियों के साथ चुनाव मैदान में होगी। लेकिन, इस बार क्षेत्रीय पार्टियों और उनके क्षत्रपों के तेवर काफी तीखे हैं। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं इतनी बढ़ गयी हैं कि उन्हें साधना राजनीतिक दलों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल एस 80 में 12 सीटों पर चुनाव लडऩा चाहती है। तो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को भी पांच सीटें चाहिए। कमोबेश सीट बंटवारे को लेकिन कम सिरदर्द सपा-बसपा गठबंधन में भी नहीं है। रालोद अभी गठबंधन में औपचारिक रूप से भले शामिल न हो लेकिन उसकी मांग भी कम से कम पांच सीटों की है। निषाद पार्टी का प्रत्यक्ष तौर पर समाजवादी पार्टी में विलय हो चुका है लेकिन इसके नेता सपा से अपनी हिस्सेदारी मांग रहे हैं। ऐसे में क्षत्रपों को मनाना अभी से टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। यदि इन दलों को बड़ी पार्टियां साधने में विफल रहीं तो यह प्रदेश की राजनीतिक दिशा को बदल सकते हैं।
आशीष पटेल: जाति विशेष की ही राजनीति नहीं
अपना दल (एस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं आशीष पटेल। यह केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के पति हैं। पेशे से इंजीनियर रहे पटेल सरकारी नौकरी छोडकऱ राजनीति में आए हैं। एमएलसी आशीष इन दिनों लोकसभा चुनाव की रणनीति को अंतिम रूप दे रहे हैं। ये खुद अकबरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। 2019 के लोकसभा सभा चुनाव में अपना दन की दावेदारी 10 से 12 सीटों की है। जबकि, 2014 में अपना दल ने प्रतापगढ़ और मिर्जापुर में जीत हासिल की थी। इस बार अकबरपुर के अलावा फतेहपुर सीट भी चाहिए। फतेहपुर से केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति और अकबरपुर से देवेन्द्र सिंह भोले सांसद हैं। इन दोनों सीटों पर कुर्मियों की संख्या सबसे ज्यादा है। भाजपा की मुश्किलें आशीष की एक और मांग से भी बढ़ गयी हैं। वे चाहते हैं कि प्रदेश के 50 फीसदी जिलों में दलित अफसरों को तैनाती की जाए। जाहिर हैं उनकी नजर अपना दल के परंपरागत वोटर कुर्मियों के अलावा अब दलितों पर भी है। देखना होगा भाजपा आशीष की मांग कहां तक पूरी कर पाती है।
सुभासपा: योगी से सीधी टक्कर
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में भागीदार है। लेकिन, पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर
योगी से सीधी टक्कर ले रहे हैं। वे आए दिन ऐसे बयान जारी करते हैंं कि जिससे गठबंधन के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हंै। उनका सुर हरदम सरकार के खिलाफ बगावती रहता है। फिर भाजपा नेतृत्व अभी कुछ नहीं बोल रहा। इससे सबको हैरत होती है। राजभर कहते हैं कि 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का विभाजन ही 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत का ब्रह्मास्त्र साबित होगा। बलिया के ओमप्रकाश 1981 से राजनीति में हैं। कभी इनके कांशीराम आदर्श हुआ करते थे। मायावती से अनबन के बाद इन्होंने बसपा से इस्तीफा देकर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बनायी। पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी से गठबंधन के बाद इनकी पार्टी ने चार सीटों पर जीत हासिल की। राजभर जाति की सहारे राजनीति में आगे बढ़े ओमप्रकाश के समुदाय का आबादी उत्तर प्रदेश में 2.60 प्रतिशत है। पूर्वांचल में तो राजभर जाति करीब 18 प्रतिशत है और 125 विधानसभा सीटों पर इनकी दखल है। जाहिर है कि इतने ठोस वोट बैंक को भाजपा नजरअंदाज नहीं कर पा रही। 2014 के लोकसभा चुनावों में ओमप्रकाश बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं कर पाए थे लेकिन इस बार इन्होंने अपनी पार्टी के लिए कम से कम पांच सीटों की मांग कर दी है। भाजपा इनकी मांग को अनदेखी करने की स्थिति में नहीं दिख रही। देखना ऊंट किस करवट बैठता है।
छोटे चौधरी को नजरअंदाज करना मुश्किल
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस बार राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह चुनावी मैदान में नहीं होंगे। क्योंकि उन्होंने अब चुनाव न लडऩे की घोषणा की है। लेकिन उनके बेटे जयंत चौधरी पूरे दमखम के साथ चुनाव तैयारियों में जुटे हैं। रालोद सपा-बसपा के साथ गठबंधन की बात कर रहा है। आरएलडी की मांग पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कम से कम पांच लोकसभा सीटों की है। बसपा और सपा दोनों छोटे चौधरी अजित सिंह की मांग को नजरअंदाज नहीं कर सकते। क्योंकि पश्चिमी उप्र की कई सीटों का समीकरण बिगाडऩे का दमखम रालोद रखती है।
भीम आर्मी: नए दलित संगठन का उभार
देश नौ अगस्त को एक और भारत बंद का गवाह बनने जा रहा है। अपनी पुरानी मांगों को लेकर एक बार फिर दलित और आदिवासी समाज सडक़ पर होगा। इसके बाद 19 अगस्त को भीम आर्मी दिल्ली के संसद भवन मार्ग पर धरना प्रदर्शन करने वाली हैं। दलितों के इस नए संगठनों के उभार से बसपा समेत अन्य दलों के पेशानी पर बल पड़ गया है। भीम आमीं के सदस्य अपने संस्थापक चंद्रशेखर आजाद पर लगे एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) को हटाए जाने और उसे रिहा करने की मांग कर रहे हैं। भीम आर्मी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मंजीत नौटियाल बहुजन समाज के उत्पीडऩ की बात करते हैं। वे कहते हैं कि दलित अब सरकार से आर-पार की लड़ाई लडऩे के मूड में हैं। भीम आर्मी के सदस्य इसके लिए सभी जिलों में बैठक कर रहे हैं। इसके पहले बहुजन समाज ने 2 अप्रैल को संविधान बचाओ को लेकर जिस तरह आंदोलन किया था उसके मद्देनजर अभी तक दलितों की राजनीति करने वाली पार्टियां परेशान हैं। जाहिर है एक नया दलित संगठन समाज में मजबूत हो रहा है।
इसके अलावा गोरखपुर मे निषाद पार्टी जैसे अन्य छोटे छत्रपों की महत्वाकाक्षाएं उभार पर हैं। भले ही निषाद पार्टी का सपा में विलय हो गया है लेकिन इस पार्टी के कर्ताधर्ता अपने लिए लोकसभा की सीटें चाहते हैं। इसी तरह कई पीस पार्टी समेत कई अन्य दल भी बड़े दलों के लिए मुसीबत का सबब बन सकते हैं। ये बड़े दलों को कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे तो वोटकटवा की भूमिका तो बखूबी निभा ही सकते हैं। इसलिए बड़े दलों को क्षेत्रीय क्षत्रपों को साधना एक तरह से मजबूरी होगी।
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