लखनऊ

यूपी निकाय चुनाव- किसी को सिंबल का सम्मान तो किसी को सियासी शान बचाए रखने की चुनौती

निगमों की संख्या 12 से बढकऱ 16 हुई -अयोध्या और मथुरा वृंदावन भाजपा सरकार में बनीं हैं नगर निगम – अब निकायों की संख्या 629 से बढकऱ 645

लखनऊNov 27, 2017 / 11:21 am

Anil Ankur

सीएम योगी आदित्यनाथ

अनिल के. अंकुर
लखनऊ. निकाय चुनाव लोकसभा या विधानसभा के जनमत का आइना नहीं होते। इसलिए निकाय चुनावों के परिणाम के आधार पर यह धारणा बनाना कठिन है कि किस पार्टी का पलड़ा भारी है। लेकिन, यूपी में इस बार निकाय चुनाव भाजपा,बसपा और कांग्रेस के लिए मूंछ का बाल बन गए हैं। योगी के सामने चुनौती है पिछली सीटें बचाने की। जबकि कांग्रेस ने अपने अस्तित्व के लिए इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है। निकाय चुनावों के इतिहास में पहली बार है ऐसा है कि पार्टियां अपने-अपने सिंबल पर लड़ रही हैं। बहरहाल, नतीजे एक दिसंबर को आ जाएंगे। तब पता चलेबा कि शहरों के दंगल में कौन जीता।
शहरों की सरकार चुनने के इस चुनाव से न तो यूपी में सरकार बदलनी है और न ही दिल्ली में। लेकिन, सभी दलों के लिए यह चुनाव खास है। मसलन, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपना सम्मान वापस पाने की ललक है तो तो बसपा के लिए सिंबल के इज्जत का सवाल है। लड़ाई इसलिए भी अहम है कि पहली बार पार्टियां अपने-अपने सिंबल पर चुनाव मैदान में हैं। साइकिल, हाथी और पंजा में होड़ इसलिए है कि जो भी दल बाजी मारेगा लोकसभा चुनाव में अपनी सियासी प्रासंगिकता कायम रखने में सफल होगा।
योगी जुटे प्रचार में
नगर निगम चुनाव में इस बार योगी और उनके दोनों डिप्टी सीएम स्टार प्रचारक हैं। दो दशकों में जितने भी निकाय चुनाव हुए उनमें प्रधानमंत्री तक ने बढ़-चढकऱ रुचि दिखाई। पर इस बार ऐसा नहीं है। भाजपा के बड़े नेता गुजरात की ट्रेन और प्लेन में बैठे दिखाई दिए। सीएम सुबह से शाम तक सात-सात जनसभाएं कर रहे हैं। मेयर और सभासद उम्मीदवारों के लिए वोट मांग रहे हैं। पहले चरण और दूसरे चरण के चुनाव के लिए वोट मांगने के बाद शनिवार को योगी का यान पश्चिम उत्तर प्रदेश तीसरे चरण के चुनाव के लिए रवाना हो गया।
क्यों है योगी के लिए यह चुनाव महत्वपूर्ण
पहले सूबे में 12 नगर निगम थे। उनमें से 10 में नगर निगमों में भाजपा का कब्जा था। अब नगर निगमों की संख्या 16 हो गई है। ऐसे में योगी को पिछली बार की तरह कम से कम 80 प्रतिशत नगर निगमों में भाजपा का कब्जा चाहिए ही। अगर इससे एक सीट भी कम होती है तो विपक्ष और भाजपा में उनके अंदरूनी विरोधी जीत हार के आंशिक अंतर को बतंगड़ बनाकर पेश करेंगे। इसलिए यह चुनाव योगी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पिछली बार सपा के दो मेयर जीते थे। सपा ने चुनावों में अपने स्टार प्रचारक के रूप में सांसद डिंपल यादव को उतारा है। उन्हें भी अपनी सीट बचाने की चुनौती है। बसपा ने किसी बड़े नेता को प्रचार में तो नहीं भेजा। लेकिन उसे भी अपनी इज्जत बचाने की चिंता है।
अपने ही बने योगी के लिए चुनौती

हालांकि इस चुनाव में योगी के लिए एक बड़ी चुनौती सरकार में शामिल भारतीय समाज पार्टी यानी भासपा है। भासपा के चार विधायक हैं। पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। लेकिन निकाय चुनाव में राजभर ने कई जगह बीजेपी के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारें हैं। सरकार में शामिल अपना दल ने तो अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं लेकिन उसका अंतर्विरोध भाजपा को कहीं कहीं झेलना पड़ रहा है। इसलिए पार्टी के सामने बड़ा संकट है।
लड़ाई में लाने की जद्दोजहद
2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों में सपा पहले से कमजोर हुई है। बसपा और कांग्रेस की तो नैया ही डूब गयी। जहां लोकसभा के चुनाव में बसपा का खाता ही नहीं खुला वहीं वह विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर सिमट गई। कमोबेश यही हाल कांग्रेस का भी रहा। लिहाजा विपक्ष के इन दलों के लिए निकाय चुनाव में बड़ी चुनौती है यही है वे अपने को लड़ाई में वापस लाएं।
 

Home / Lucknow / यूपी निकाय चुनाव- किसी को सिंबल का सम्मान तो किसी को सियासी शान बचाए रखने की चुनौती

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.