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प्रियंका के चुनाव न लड़ने की खबर से कांग्रेस नहीं भाजपा और सपा-बसपा चिंतित

locationलखनऊPublished: Feb 20, 2019 11:46:32 am

कांग्रेस की नवनियुक्त महासचिव प्रियंका गांधी फिलहाल, रायबरेली से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगीं।

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प्रियंका के चुनाव न लड़ने की खबर से कांग्रेस नहीं भाजपा और सपा-बसपा चिंतित

महेंद्र प्रताप सिंह

एनालिटिकल स्टोरी
लखनऊ. कांग्रेस की नवनियुक्त महासचिव प्रियंका गांधी फिलहाल, रायबरेली से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगीं। एक बार फिर सोनिया गांधी ही यहां से कांग्रेस उम्मीदवार होंगी। इस खबर से कांग्रेसी खुश हैं लेकिन, भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन मायूस हो गए हैं। जी, हां। प्रियंका को लेकर कांग्रेस से ज्यादा विपक्षी पार्टियां चिंतित हैं। क्योंकि, उप्र के शहरों और गांवों में प्रियंका के आने से कांग्रेस मजबूत हो रही है। भाजपा-सपा और बसपा को लग रहा था कि प्रियंका के चुनाव मैदान में उतरने से वह रायबरेली तक ही सीमित हो जाएंगी। और यूपी पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाएंगी। इससे भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन की मुश्किलें कम हो जातीं। लेकिन, कांग्रेस का मानना है कि प्रियंका के चुनाव लडऩे पर पार्टी का प्रदर्शन सुधारने की मुख्य प्राथमिकता पर असर पड़ता। प्रियंका का प्रदर्शन यदि खराब रहता, तो यह परसेप्शन भी खत्म हो जाता कि प्रियंका कांग्रेस के लिए ट्रंप कार्ड हैं। शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने सोनिया गांधी को एक बार फिर रायबरेली से चुनाव लडऩे के लिए मना लिया।


प्रियंका की नजर 22 सीटों पर
बहरहाल, सूबे की कम से कम 26 सीटों पर कांग्रेस और प्रियंका की कड़ी नजर है। इन संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस एक सर्वे करा रही है। सर्वे के प्रारम्भिक आंकड़ों ने ही भाजपा और सपा-बसपा को डरा दिया है। सर्वे के मुताबिक प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में उतरने के बाद मुस्लिम मतदाताओं के बीच यह धारणा और मजबूत हो रही है कि यदि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को कोई टक्कर दे सकती है तो वह कांग्रेस ही है। मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस के प्रति बढ़ता यही झुकाव सपा-बसपा की परेशानी की वजह है।


छोटे-छोटे दलों का टटोल रहीं मन
उप्र कांग्रेस के महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी बड़े आत्मविश्वास से कहते हैं यूपी में कांग्रेस का ग्राफ ऊपर जा रहा है। मुस्लिमों और दलितों-पिछड़ों में भाजपा और सपा-बसपा तीनों दलों के प्रति गुस्सा है। दलित और पिछड़े आरक्षण नीति को लेकर नाराज हैं। कांग्रेस इस बात को जोरदार तरीके से उठा रही है। वह इस मुद्दे पर सपा-बसपा के स्टैंड को भी गांव-शहर में बता रही है। कांग्रेस के लिए अच्छी ख़बर यह है कि उससे कई छोटे-छोटे दल जुडऩे को तैयार हैं। बुंदेलखंड इलाके में मौर्य, शाक्य, कुशवाहा जैसी पिछड़ी जातियों में अच्छी पैठ रखने वाले महान दल ने कांग्रेस से गठबंधन कर लिया है। ज्यादा तो नहीं लेकिन इससे कांग्रेस के मतों में 3 से 5 प्रतिशत तक इज़ाफ़ा हो सकता है। रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की नवगठित जनसत्ता लोकतांत्रिक पार्टी और शिवपाल यादव की पार्टी से भी कांग्रेस से गठबंधन की कोशिश जारी है। कांग्रेस के सम्पर्क में अपना दल की कृष्णा पटेल भी हैं। वह अपनी बेटी और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल से सख़्त नाराज़ हैं। इसलिए वह प्रतापगढ़, मछलीशहर और रोहनियां संसदीय सीट पर दमदारी से लडऩा चाहती हैं। इन सीटों पर कुर्मी, पटेल, निरंजन, कटियार बिरादरी के 5 से 7 प्रतिशत मत हैं। यह मत कांग्रेस गठबंधन को थोक के भाव में शिफ्ट हो गए तो भाजपा अपनी जीती हुई इन सीटों को गंवा सकती है। इसी तरह राजा भैया प्रतापगढ़, कौशाम्बी और बुंदेलखंड क्षेत्र की कुछ सीटों पर दमदारी के साथ मैदान में उतर रहे हैं। इटावा के आसपास की संसदीय सीटों पर शिवपाल यादव को यदि कांग्रेस का साथ मिल जाए तो वह सपा-बसपा गठबंधन को मजबूत टक्कर देने की स्थिति में हो सकते हैं। इन क्षेत्रों में इस बात की चर्चा भी जोरों पर है कि चाचा हाथ का साथ पकड़ सकते हैं। निश्चित तौर पर इससे कांग्रेस को फ़ायदा मिलने जा रहा है। अलग-अलग क्षेत्रों में छोटे दलों से गठबंधन के बाद कांग्रेस के मत प्रतिशत में यदि 5 से 6 प्रतिशत मतों का ही इजाफा होता है तो वह 2009 के आंकड़े को छू सकती है या फिर उसे भी पार कर सकती है। इस स्थिति में भाजपा और अखिलेश, मायावती ही नुकसान में रहेंगे। हालांकि,यह सारे अनुमान हैं।


अपर कास्ट जुड़ सकता है कांग्रेस से
लेकिन,इतना तो तय है कि जैसे जैसे प्रियंका गांधी क्षेत्रों का दौरा करेंगी यूपी में कांग्रेस का पारा चढ़ेगा। प्रियंका के आने से भाजपा से नाराज अपर कास्ट भी कांग्रेस से ही जुड़ेगा। इससे बीजेपी को नुक़सान होगा। कांग्रेस मुस्लिमों, दलितों और ओबीसी तबकों के वोट में ही सेंधमारी करेगी। यही इसके पुराने वोटर रहे हैं। इससे बसपा और सपा को झटका लगेगा। कांग्रेस 7-10 फ़ीसदी वोट से आगे बढकऱ 12-15 फ़ीसदी तक पहुंच सकती है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की तादाद 18-19 फ़ीसदी है। मुस्लिम मतदाताओं का आकर्षण यदि कांग्रेस की तरफ़ बढ़ा तो उसको मिलने वाले मतों का प्रतिशत 22 से 23 फीसद के आंकड़े को छू सकता है या उसके ऊपर जा सकता है। तब कोई ताज्जुब नहीं कि कांग्रेस 20 सीटें आसानी से जीत ले। 10 से 15 ऐसी सीटें भी हो सकती हैं जहां त्रिकोणीय या चार-कोणीय मुक़ाबला हो सकता है। इन सीटों पर भाजपा को सीधा नुकसान हो सकता है। लेकिन यह सब तब होगा जब कांग्रेस छोटे दलों को अपने साथ जोडऩे में कामयाब हो और मुस्लिमों को भरोसा दिला सके कि वह भाजपा को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है।

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