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उपचुनाव: कैराना-नूरपुर में महागठबंधन की राह नहीं आसान!

locationलखनऊPublished: Apr 27, 2018 01:51:41 pm

Submitted by:

Prashant Srivastava

-कांग्रेस आरएलडी उम्मीदवार के पक्ष में, सपा उतारना चाहती है अपने कैंडिडेट -माया नहीं करेंगी किसी का समर्थन

akhilesh
लखनऊ. फूलपुर-गोरखपुर में सपा-बसपा के बीजेपी को धूल चटाने के बाद महागठबंधन को लेकर चर्चाएं तेज हो गई थीं लेकिन कैराना व नूरपुर में होने वाले उपचुनाव में महागठबंधन को लेकर तस्वीर साफ नजर नहीं आ रही है। कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट के लिए 28 मई को मतदान होने हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती पहले ही साफ़ कर चुकी हैं कि वे अब किसी भी उपचुनाव में किसी दल का समर्थन नहीं करेंगी।
माया का नहीं मिलेगा साथ

कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट के लिए सपा, कांग्रेस और रालोद को मिलकर ही अपना सेनापति तय करना है। विपक्षी दलों के बीच गठबंधन की स्थिति में साझा उम्मीदवार उतारने पर सहमती बन सकती है। ऐसे में रालोद के जयंत चौधरी का नाम आगे चल रहा है। दरअसल, बसपा की चुप्पी और कांग्रेस ने रालोद के जयंत चौधरी के नाम की पैरोकारी की है। इसका प्रमुख कारण है कि कैराना जाट बाहुल्य इलाका है जिस पर 2009 से पहले अजीत सिंह की पार्टी का कब्जा था। आरएलडी का भी कोई सांसद पिछले लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज नहीं कर पाया था।
सपा ने की बैठक

सूत्रों के मुताबिक, पिछले दिनों सपा के नरेश उत्तम पटेल ने शामली में पार्टी कार्यकर्ताओं संग बैठक किया और मुस्लिम-जाट-दलित फ़ॉर्मूले को धार देने की कोशिश की। सपा की तरफ से सुधीर पंवार और तबस्सुम हसन का नाम भी चर्चा में है। फिलहाल आने वाले कुछ दिनों में यह तय होगा कि सपा अपना उम्मीदवार मैदान में उतरती है, या फिर गठबंधन की स्थिति में साझा उम्मीदवार का समर्थन करती है।
अखिलेश तय करेंगे प्लान

सूत्रों के मुताबिक दोनों सीटों को लेकर प्लानिंग की जिम्मेदारी अखिलेश यादव पर है। वह जल्द ही इस पर फैसला लेंगे। विपक्ष की तरफ से इस सीट पर रालोद और सपा अपनी दावेदारी जाता रहे हैं। बता दें 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों में इस इलाके के बहुत सारे गांव प्रभावित हुए थे। इसी के बाद ध्रुवीकरण की वजह से बीजेपी को बड़ी कामयाबी मिली थी लेकिन 2017 के चुनाव में माहौल बदला है। विपक्षी दलों द्वारा संयुक्त प्रत्याशी उतारने पर बीजेपी को चुनौती मिल सकती है।
कांग्रेस सपा नहीं आरएलडी के साथ!

कैराना उपचुनाव में कांग्रेस सपा नहीं आरएलडी का साथ देती दिख रही है। कांग्रेस ने गोरखपुर और फूलपुर चुनाव अकेले लड़ा था। कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने सपा की दावेदारी पर निशाना साधा है। उन्होंने इस सीट से रालोद को चुनाव लड़ाने की पैरोकारी की है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हुकुम सिंह यहां से 2.37 लाख वोटों से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। इस सीट पर यूं तो गुर्जर भी चुनाव जीते हैं, लेकिन यह जाटों या मुसलमानों के लिए ज्यादा मुफीद रही है। 2014 में यहां सपा दूसरे, बसपा तीसरे और राष्ट्रीय लोक दल चौथे नंबर रार रही थी।

कैराना सीट का जातीय समीकरण

कैराना लोकसभा सीट पर 16 लाख से ज्यादा वोटरों में सर्वाधिक तादाद मुस्लिम की है। दूसरा नंबर अनुसूचित जाति का है। इन दोनों के वोट मिलाकर करीब 45 फ़ीसदी के आस-पास बैठते हैं। जाट वोट 10 फ़ीसदी है। इसके बाद गुर्जर, कश्यप और सैनी मतदाता हैं। इनकी संख्या एक से सवा लाख के करीब है।
हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह का लड़ना तय

बीजेपी से दिवंगत हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह का चुनाव लड़ना लगभग तय है। वह गुर्जर समाज से हैं. बीजेपी के वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए विपक्षी दल जाट या किसी अन्य पिछड़े वर्ग के नेता को चुनाव लड़ा सकते हैं।
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