scriptखतरनाक सिन्थेटिक रंगों से मिलेगा मुक्ति, जल्द ले सकेंगे हर्बल मिठाई और केक का स्वाद | synthetic colour is harmful for health | Patrika News

खतरनाक सिन्थेटिक रंगों से मिलेगा मुक्ति, जल्द ले सकेंगे हर्बल मिठाई और केक का स्वाद

locationलखनऊPublished: May 12, 2019 03:35:54 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

– जानलेवा है सिन्थेटिक रंगों का अधिक इस्तेमाल- फलों व सब्जियों से वैज्ञानिकों ने तैयार किये रंग- सेहत को नुकसान पहुंचाने वालों सिन्थेटिक रंगों से मिलेगा छुटकारा

synthetic colour is harmful

खतरनाक सिन्थेटिक रंगों से मिलेगा मुक्ति, जल्द ले सकेंगे हर्बल मिठाई और केक का स्वाद

लखनऊ. अब जल्द ही हर्बल मिठाई और केक भी खाने को मिलेगा। सेहत के लिए खतरनाक सिन्थेटिक रंगों में रंगी मिठाइंयों से छुटकारा दिलाने के ‍लिए वैज्ञानिकों ने काफी हद तक सफलता पा ली है। फल, फूल व सब्जियों से बैंगनी चाकलेटी, नीला और हरा रंग तैयार किया जा चुका है। प्राकृतिक तरीके से तैयार रंगों की स्टैबिलिटी एक साल तक रहे इस पर शोध अंतिम चरण में चल रहा है।
सिन्थेटिक रंगों से तैयार मिठाइंयां लोगों की सेहत बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड रही हैं। इससे निजात दिलाने के लिए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिक शोध कार्य को अंतिम रूप दे रहे हैं। ग्राहकों को लुभाने के लिए मिठाई, केक, पेस्ट्री व टाफियों से लेकर दालमोठ तक का रंग रोगन किया जा रहा है। यह मिठाइंयां व केक गुलाबी, पीले, हरे, आसमानी व गहरे नीले आदि खतरनाग सिन्थेटिक रंगों में रंगे होते हैं। हालांकि, छोटे से लेकर बड़े दुकानदार प्राकृतिक रंगों के इस्तेमाल की बात कहते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि अभी तक ऐसा कोई रंग नहीं आया है, जिसमें स्टैबिलिटी (स्थायित्व) हो। यह प्राकृतिक रंग तुरंत बनाकर तो इस्तेमाल किये जा सकते हैं लेकिन कुछ घंटे बाद ही उड़ जाते हैं, जबकि सिन्थेटिक रंग काफी दिनों तक नहीं उडते हैं। ऐसे में सिन्थेटिक रंगों का धडल्ले से इस्तेमाल हो रहा है।
इमरती, जलेबी और मोतीचूर के लड्डू को केसरिया रंग देने के ‍लिए एक विशेष मार्का का रंग मिलाया जाता है, लेकिन यह भी सिन्थेटिक होता है। सरकार की गाइड लाइन के मुताबिक विशेष मार्का रंग एक ‍निश्चित मात्रा में ही मिलाया जा सकता है। इसके विपरीत व्यापारी तबका जाने अनजाने काफी अधिक मात्रा में ऐसे खतरनाक रंगों का इस्तेमाल कर रहा है।
nbri lucknow
सिन्थेटिक रंग बनते हैं बीमारियों का कारण
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. महेश पाल ने बताया कि विशेष मार्का रंग की सीमा १० किलोग्राम में केवल दो ग्राम निर्धारित की गयी है। इसके विपरीत व्यापारी वर्ग १० किलोग्राम में २० ग्राम या इससे भी अधिक मिला देते हैं। लम्बे समय तक ऐसी सिन्थेटिक रंगों से तैयार मिठाइयों और केक आदि के सेवन से पेट सम्बंधी बीमारियों के साथ ही कई गम्भीर रोग भी हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि हर्बल कलर में कम से कम एक साल तक की स्टैबिलिटी के लिए अनुसंधान किया जा रहा है। अभी हर्बल कलर में स्टैबिलिटी नहीं है।
कैंसर तक हो सकता है
हरे रंग के लिए मैलाचाइट इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे रंग से तैयार खाद्य पदार्थ के सेवन से आंतों में इन्फेक्शन के साथ ही लीवर व किडनी पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। लम्बे समय तक सेवन से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी होने की भी संभावना होती है। इस सम्बंध में राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के निदेशक प्रो. एसके बारिक ने बताया कि ऐसे प्रयास किये जा रहे हैं कि एक साल के अंदर खाने योग्य हर्बल कलर (इडेबल कलर) बाजार में आ जाए, जिससे मिठाइंयों व अन्य खाद्य पदार्थों में खतरनाक ‍सिन्थेटिक रगों के इस्तेमाल पर अंकुश लग सके।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो