कार्यशाला की शुरुआत कुलपति प्रोफेसर मदनलाल ब्रह्म भट्ट ने की। केजीएमयू के पैथोलॉजी, क्लीनिकल विभाग, बाल रोग विभाग, साइटोजेनीटिक्स विभाग, सेण्टर फार एडवांस रिसर्च और थैलेसीमिया इण्डिया सोसायटी लखनऊ ने एनुअल थैलेसीमिया अपडेट 2017 का आयोजन किया है।कार्यक्रम में फरीदाबाद के फोर्टिस हॉस्पिटल के कंसल्टेंट डाक्टर वी पी चौधरी ने बताया कि थैलेसीमिया एक आनुवंशिक बीमारी है जो माता-पिता से बच्चों में एक जीन के माध्यम से जाती है। लगभग 5 करोड लोगों में थैलेसिमिया का जीन मौजूद है। चौधरी ने कहा कि भारत में पंजाबी, गुजराती, महाराष्ट्रियन और सिंधियों में प्रत्येक पांच व्यक्तियों में से एक मे यह जीन पाया जाता है।सबसे ज्यादा यह जीन पाकिस्तान से आने वाले व्यक्तियो मे पाया जाता है। जिनके माता-पिता में थैलेसीमिया माइनर रूप में हैं, उनके बच्चों में मेजर थैलेसीमिया होने का खतरा 25 प्रतिशत रहता है।
डॉ चौधरी ने कहा कि थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों का अगर उपचार न किया जाए तो तीन साल की उम्र तक उनकी मृत्यु हो जाती है। मेजर थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चो को दो से तीन सप्ताह में एक बार खून चढाने की आवश्यकता पड़ती है। कार्यशाला में डाक्टर अमिता पाण्डेय और डाक्टर निशांत वर्मा ने थैलेसीमिया के मैनेजमेंट के बारे में बताते हुए कहा कि जो थैलेसीमिया से पीड़ित हैं, उनको बार-बार खून चढ़ाने की वजह से उनमे आयरन की मात्रा अधिक होने लगती है, जिसकी वजह से उनके शरीर के अन्य अंग जैसे हार्ट, लिवर इत्यादि अंगों पर आयरन का दबाव बढ़ने से वो खराब होने लगते हैं, इसलिए थैलेसीमिया से पीड़ित ऐसे बच्चे जिनको बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत होती हो, उन्हें शरीर से आयरन निकालने की दवा भी दी जाती है।