पार्टी को बचाने के बजाय ट्वीटर गेम में उलझे नेता अमेठी के कांग्रेस के गढ़ को तोडऩे के बाद रायबरेली के लिए भाजपा की कवायद इस सत्र में काफी कामयाब दिखी। यूं तो गैर भाजपाई हर पार्टी से एक-एक बगावती है। पर नतीजा यह है कि दूसरे दल अपने विधायकों और नेताओं को बचाने के बजाय आरोप-प्रत्यारोप का ट्वीटर गेम खेलने में लगे हैं। कार्यकर्ताओं से इन लोगों ने फिलहाल दूरी बना रखी है। बीते कुछ सालों का सियासी रिकार्ड देखें तो पता चलता है कि बसपा, सपा और कांग्रेस के भीतर इसी प्रकार तीन साल के भीतर बड़े स्तर पर तोड़ फोड़ हुई। इसका पूरा लाभ भाजपा को मिला। मौजूदा समय में भाजपा की प्रदेश सरकार में कई ऐसे मंत्री हैं जो दूसरे दलों से भाग कर भाजपा में आए थे। लोकसभा चुनाव में भी कमोवेश यही हाल था।
सपा-बसपा में कम नहीं हुई फूट अगर बात करें समाजवादी पार्टी में बगावत होने की, तो एक बहुत बड़ा कारण पार्टी की अंदूरूनी लड़ाई इसके हृास का एक बड़ा कारण रहा है। मुलायम परिवार के टूटते ही पार्टी में भी दरार पड़ गई। नतीजा यह हुआ के सपा के बड़े स्तर पर पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक व पूर्व सांसदों ने भाजपा की झोली में जाना ज्यादा बेहतर समझा। अखिलेश यादव किसी तरह पार्टी पटरी में ला रहे थे पर विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान परिवार से अलग थलग पड़े सपा विधायक शिवपाल भी सदन पहुंच गए। विद्रोही शिवपाल ने योगी और मोदी की जमकर तारीफ की। इसी प्रकार बसपा में नेता सदन रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू सिंह कुशवाहा, जैसे नेताओं ने भी भाजपा का दामन थामा था। मायावती के राइट हैंड कहे जाने वाले नसीमुद्दीन सिददीकी पहले भाजपा में जाने की जुगत में थे पर बाद में कांग्रेस में ठहर गए। किसी तरह मायावती अपने सिपाहियों को बचाने की कोशिश कर रही थीं कि विधानसभा के विशेष सत्र में बसपा विधायक असलम राइन ने पार्टी के आदेश के विपरीत सदन में पहुंचकर न केवल सबको चौकाया, बल्कि योगी सरकार की जमकर तारीफ की। भाजपा के यूपी प्रभारी बंसल की भी तारीफ करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस की रायबरेली की विधायक अदिति सिंह ने इससे पहले ही सबको चौका दिया था। उनकी नाराजगी का कारण भी समझ में आता है। सोनिया गांधी के चुनाव में उनके बाहुबलि पिता अखिलेश सिंह ने जमकर मदद की थी। पर उनकी मृत्यु के बाद भाजपा के दर्जनों शीर्ष नेता अदिति के घर संात्वना देने पहुंचे, लेकिन उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस की प्रियंका गांधी गई तो पर उन्होंने जाने में विलम्ब कर दिया। बाकी नेता पहुंचे भी नहीं।
सदन में बापू की राम धुन गाते तो बीजेपी पारस्त होती झटके पर झटके खा रही प्रदेश कांग्रेस संभलने का नाम नहीं ले रही है। गांधी जयंती पर राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की लखनऊ में मौजूदगी और सरकारी की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन में उनके नेतृत्व के बाद भी पार्टी के विधानमंडल के विशेष सत्र का बहिष्कार सफल नहीं हो सका। विधायकों को बहिष्कार की जानकारी कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू की प्रेस वार्ता के बाद मिली। यह सच है कि इसके पहले तो वे सदन में जाने की तैयारी किए बैठे थे। राजनीतिक प्रेक्षकों की माने इस खास सदन को कांग्रेस लीड कर सकती थी क्योंकि बापू पर लम्बे समय से उनका एकाधिकार था। अगर कांग्रेस सदन में आती और बापू के ऊपर बहस करने की मांग करती और न मानने पर राम धुन- राघुपति राघव राजा राजा राम गाती तो भाजपा की चाल उन्हें उल्टी पड़ जाती। पर नीति निर्धारकों की कमी के चलते यह न हो सका।
एक बड़े चेनल के राजनीतिक संवाददाता का मानना है कि अब कांग्रेस का उद्धार आसान नहीं दिख रहा है। प्रदेश कांग्रेस नेतृतव विहीन है। कार्यकर्ता दिशाहीन हैं। किसी की समझ में नहीं आ रहा है क्या करें और क्या नहीं। सोनिया, राहुल और प्रियंका के पास केवल यूपी नहीं है। पूरा देश है। वहां के चुनाव हैं। ऐसे में यूपी कांग्रेस का कोई ओवर हालिंग होते नहीं दिख रही।