दरअसल लोहिया संस्थान में लोहिया अस्पताल के विलय का फैसला सपा सरकार ने लिया था। कैबिनेट ने इसे मंजूरी भी दे दी थी। ऐसे में सत्र 2017 के लिए लोहिया संस्थान ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) से एमबीबीएस की मान्यता भी हासिल कर ली है। यहां नीट की शीर्षस्थ रैकिंग में शामिल 150 छात्रों ने संस्थान में दाखिला भी ले लिया, लेकिन अस्पताल का अभी तक विलय न होने से संस्थान में एमबीबीएस की मान्यता का खतरा मंडराने लगा है। ऐसे में दूसरे बैच के दाखिले संबंधी प्रक्रिया को जहां झटका लग सकता है, वहीं पढ़ाई कर रहे छात्रों की डिग्री रिकॉग्नाइज्ड नहीं हो सकेगी।
एमसीआइ टीम ने जताई थी आपत्ति
लोहिया संस्थान में गत महीने एमसीआइ की टीम ने दौरा किया था। ऐसे में दूसरे सत्र के संचालन के लिए पर्याप्त संसाधन न मिलने पर आपत्ति जताई गई थी। हालांकि संस्थान प्रशासन ने जल्द व्यवस्थाएं दुरुस्त करने का आश्वासन देकर मामला संभाला था, लेकिन अब मामला फिर फंसता दिखाई दे रहा है।
सीएम ने भी जताई थी अपनी सहमति
हाल ही में संस्थान में सीएम ने डॉ. एससी राय हॉस्टल का नामकरण किया था। इस दौरान चिकित्सा शिक्षामंत्री आशुतोष टंडन ने उनके समक्ष अस्पताल के विलय का मसला रखा था, तभी सीएम ने अस्पताल के विलय की घोषणा की थी।
डॉक्टरों के हित बने अड़ंगा
संस्थान व अस्पताल के विलय को लेकर कई बार शासन स्तर पर बैठक का प्लान बनाया गया, लेकिन हर बार टाल दिया गया। गुरुवार को भी संबंधित मसले को लेकर बैठक आयोजित की गई थी, लेकिन नहीं हो सकी। अस्पताल में पहुंच वाले कुछ डॉक्टर स्थानांतरण के भय से मसले को उलझाए हुए हैं। वहीं अभी प्रथम बैच के छात्रों को एनॉटमी, फिजियोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री संबंधी नॉन क्लीनिकल विषयों की पढ़ाई करनी पड़ रही है। वहीं सेकेंड ईयर में उन्हें क्लीनिकल व सर्जिकल विषयों पर भी फोकस करना होगा। ऐसे में क्लीनिकल के लिए जनरल मेडिसिन समेत कई विभागों के बेड ही नहीं हैं।
कुछ कारणों से गुरुवार को बैठक नहीं हो सकी। अस्पताल का संस्थान में विलय होना है, इसके लिए फिर जल्द बैठक की तिथि तय की जाएगी।