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लखनऊ

भाजपा छोड़ यह नाराज दिग्गज नेता जा सकता है कांग्रेस में, प्रियंका गांधी ले सकती हैं फैसला

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन में खुद के लिए जगह न तलाश पाने पर कांग्रेस ने आखिरकार प्रियंका गांधी को मैदान में उतारतर मास्टर स्ट्रोक चला है.

लखनऊJan 24, 2019 / 06:01 pm

Abhishek Gupta

Priyanka Gandhi

Priyanka Gandhi

लखनऊ. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन में खुद के लिए जगह न तलाश पाने पर कांग्रेस ने आखिरकार प्रियंका गांधी को मैदान में उतारकर मास्टर स्ट्रोक चला है जिससे यूपी की सियासत में एक नया मोड़ आ गया है। पार्टी को नई ऊर्जा तो मिली ही है, साथ ही अन्य दलों के नाराज दिग्गज भी कहीं न कहीं उनकी ओर देख रहे हैं।फरवरी में प्रियंका पूर्वी यूपी की कमान संभालेंगी और उनका पहला मिशन सपा, बसपा व भाजपा के उन असंतुष्ट नेताओं को कांग्रेस में लाना होगा जो अब पार्टी में नहीं हैं या जिनके टिकट कटने की उम्मीदें हैं। ऐसे नेतओं में बसपा के अंबिका चौधरी, कैसरजहां, जसवीर अंसारी, राकेश सिंह राना, रामहेतु भारती, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामलाल राही, माया के विश्वस्त रहे आरके चौधरी और सपा के असंतुष्ट बेनी प्रसाद वर्मा तो उनके निशाने पर होंगे ही, साथ ही चार दलों से होकर भाजपा में पहुंचे नरेश अग्रवाल भी होंगे जो आजकल भाजपा में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं।
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भाजपा में नहीं मिल रही तवज्जो-

हरदोई में भाजपा सांसद अंशुल वर्मा से उनकी तनातनी इन दिनों चर्चा में है। खासतौर पर उस दिन के बाद जब अंशुल ने एक समारोह में शराब बांटने के आरोप में नरेश अग्रवाल के खिलाफ सीएम योगी को पत्र तक लिख दिया था। तब से यह दोनों एक-दूसरे पर शब्द बाण लगातार चला रहे हैं। वैसे आपसी लड़ाई राजनीति में कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन जिस उम्मीद से नरेश अग्रवाल सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे, वह पूरी नहीं हो पाई है। सपा से राज्यसभा सांसद न बनाए जाने से नाराज नरेश को भाजपा में भी कोई पद नहीं दिया गया है। न ही उन्हें कोई खास तवज्जो दी गई है। चुनाव नजदीक हैं और ऐसे में उन्हें कोई पद या जिम्मेदारी नहीं दी जाती है तो एक बार फिर कांग्रेस का रुख करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि कांग्रेस से भी उनका पुराना नाता रहा है।
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कांग्रेस में रहे हैं लंबे समय तक-

68 वर्षीय नरेश अग्रवाल यूपी के हरदोई के रहने वाले हैं और करीब चार दशक से राजनीति में सक्रिय हैं। सात बार अलग-अलग पार्टियों से वह विधायक रह चुके हैं, जिसमें सबसे ज्यादा बार वह कांग्रेस में टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। सबसे पहले 1980 में वे कांग्रेस के टिकट पर हरदोई से विधायक चुने गए। इसके बाद 1989 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1991 में उन्होंने कांग्रेस में फिर से वापसी की और पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते। 1993 और 1996 में भी उन्होंने कांग्रेस से ही चुनाव लड़ जीत का परचम लहराया।
फिर किया सपा-बसपा-भाजपा का सफर-

1997 में इसी कांग्रेस पार्टी से अलग होकर उन्होंने अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया और 1997 से 2001 तक बीजेपी सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे। 2002 का विधानसभा चुनाव उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की। मुलायम सिंह यादव की सरकार में वो 2003 से 2004 तक पर्यटन मंत्री रहे। 2007 में फिर उन्होंने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत का स्वाद चखा, लेकिन सूबे में बहुजन समाज पार्टी की सरकार आई। सो 2009 में नरेश अग्रवाल ने मायावती का दामन थाम लिया। 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले वे फिर सपा में चले गए। इस कोई दो राय नहीं है कि नरेश अग्रवाल की हर दल में पैठ है। उनके जीत का रिकॉर्ड भी शानदार रहा है। ऐसे में प्रियंका गांधी की शरण में वह जाते हैं तो इससे कांग्रेस को खासा फायदा हो सकता है। हालांकि प्रियंका गांधी फरवरी का रुठे नेताओं को लेकर क्या रणनीति अपनाती है, यह देखने वाली बात होगी।

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