script

लखनऊ के दस ऐतिहासिक स्थल जो हैं यहां की शान-ओ-शौकत

locationलखनऊPublished: Dec 07, 2017 01:57:53 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

नजाकत और शान-ओ-शौकत के शहर लखनऊ में कई ऐतिहासिक स्थल हैं। यहां के मोहल्ले, गलियां, इमारतें, पहनावा भी अपनेआप में कुछ कहता है।

top 10 histiorical places in lucknow
लखनऊ के दस ऐतिहासिक स्थल जो हैं यहां की शान-ओ-शौकत

करिश्मा लालवानी

लखनऊ. लखनऊ शहर है खुशबू, तहजीब, नजाकत, जायके और शान-ओ-शौकत का। यहां के जर्रे-जर्रे में कुछ अलग ही बात है। ये शहर सिर्फ इन बातों के लिए ही फेमस नहीं है। यहां के मोहल्ले, गलियां, इमारतें, पहनावा भी अपनेआप में कुछ कहता है। अपनी नजाकत और अदब के लिए मशहूर लखनऊ शहर के लिए किसी ने क्या खूब लिखा है-

ये रंग रूप का चमन

ये हुस्न-ओ-इश्क का वतन

यही तो वो मकाम है

जहाँ अवध की शाम है

जवां-जवां, हसीं-हसीं

ये लखनऊ की सरज़मीं

सच में इस शहर में कुछ तो बात है।तभी तो जो यहां आता है, वो यहां की आबोहवा और मेहमान नवाजी की तारीफ किए बिना नहीं रह पाता। लेकिन सिर्फ यही बातें लखनऊ को खास नहीं बनातीं। यहां के शाही दरवाजे भी कुछ कहते हैं। इतिहास के पन्नों में न जाने कितने ऐसे दरवाजे बनवाए गए, लेकिन इनमें से कुछ जर्जर हो गए, तो कुछ अभी तक कायम हैं। इतिहास को लेकर हम कितने संजीदा और संवेदनशील हैं। लखनवी शाही दरवाजे चाहे रूमी दरवाजा हो या हुसैनाबाद दरवाजा, ये बेजोड़ नक्काशी का नमूना पेश करते हैं। चलिए आज हम बात करते हैं उन खास शाही जगहों की जिनसे लखनऊ की शान-ओ-शौकत में चार चाँद लग गए।

इतिहासकार रौशन तकी बताते हैं कि लखनऊ में दो तरह के दरवाजे हैं। एक वो जो शाही दरवाजेे हैं। इन्हें नवाबों ने बनवाया है। ये दरवाजे किसी न किसी ऐतिहासिक वजह से बनाए गए हैं। इनके अलावा दूसरे दरवाजे वो हैं, जे शहर की नामचीन हस्तियों ने बनवाए हैं। इन दरवाजों में तीन दर होते हैं। बीच का दर बड़ा होता है और ये सिर्फ शाही मेहमानों के लिए ही खुलता है। बाकी के जो दो छोटे दर होते हैं, वो आम लोगों के लिए हैं। यहां हम बात करेंगे लखनऊ की शाही जगहों और उनके इतिहास की।
हुसैनाबाद दरवाजा

इमामबाड़ा में बने इस गेट को मोहम्मद अली शाह ने बनवाया था। इसका निर्माण १९३७ में किया गया था। इसे छोटा इमामबाड़ा भी कहा जाता है। इस जगह को पहले जमुनियाबाग भी कहा जाता था क्योंकि यहां नवाब की शहजादी का मकबरा था। माना जाता है कि मोहम्मद अली शाह को यहीं दफनाया गया था। मुख्य इमामबाड़े की चोटी पर सुनहरा गुम्बद है, जिसे अली शाह और उसकी मां का मकबरा समझा जाता है। मकबरे के विपरीत दिशा में सतखंड नाम का अधूरा घंटाघर है। १९४० में अली शाह की मृत्यु के बाद इसका निर्माण रोक दिया गया था। मोहर्रम के अवसर पर इस इमामबाड़े की सजावट देखने लायक होती है।
रूमी दरवाजा

बड़ा इमामबाड़ा की तर्ज पर ही रूमी दरवाजा का निर्माण अकाल राहत प्रोजेक्ट पर किया गया। इसे नवाब आसफउद्दौला ने १७८३ में बनवाया था। इसे बनवाने में सवा दो साल का वक्त लगा था। ऐसा माना जाता है कि रूमी दरवाजे और बड़ा इमामबाड़ा बनवाते वक्त लखनऊ में उस वक्त अकाल पड़ गया था। रूमी दरवाजे को नवाब आसिफुद्दौला के उस दौरान पड़े अकाल में रोजगार देने के प्रॉजेक्ट के तौर पर देखा जा सकता है। इस दरवाजे की बनावट तुर्की के सुल्तान के दरबार से काफी मिलती है। यही वजह है कि रूमी दरवाजे को तुर्किश गेट के नाम से भी जाना जाता है। इसे लखनऊ का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। इन इमारतों के निर्माण में लखौरी ईटों और बादामी चूने का खूब इस्तेमाल किया गया है।
रूमी दरवाजे के दोनों तरफ तीन मंजिला हवादार परकोटाबन है, जिसके सिरों पर आठ पहलू वाले बुर्ज बने हुए हैं। इस दरवाजे की सजावट में हिंदु मुस्लिम वास्तुकला की सजावट देखने को मिलती है।
सतखंडा

अवध के नवाब नसीर-उद-दौला ने नौ मंजिला इमारत बनवाने के बारे में सोचा था, जिसका नाम वो नौखंडा रखना चाहते थे। उनका उद्देश्य था कि ऐसा टॉवर बने जिससे वो पूरा शहर देख सकें। उनकी मृत्यु के बाद ये काम नवाब के बेटे और उत्तराधिकारी नवाब मोहम्मद अली ने संभाला।
लेकिन ये सिर्फ सात मंजिला इमारत ही बन पाई। लेकिन आज भी ये जगह उस समय के राजसी माहौल और ठाट बाट को दर्शाती है। सतखंडा, हुसैनाबाद के पास में ही है, जो फ्रेंच और इटेलियन शैली के मिश्रण से बनी है।
इमामबाड़ा

लखनऊ की खूबसूरत इमारतों में से एक, इमामबाड़ा को आसिफ इमामबाड़ा के नाम से भी जाना जाता है। ये जिस अंदाज में बनाया गया है, वो मुगलों की बादशाहत को बयां करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी बनावट लाहौर की बादशाही मस्जिद से काफी मिलती है। इसे दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी मस्जिद माना जाता है। बिना किसी लोहे के इस्तेमाल से बनी ये इमारत अपने आप में खूबसूरती का भंडार है। यहां तक कि इससे बनवाने में किसी भी प्रकार की यूरोपीयन शैली का इस्तेमाल भी नहीं किया गया है।
इस जगह को भूल भूलैया के लिए भी जाना जाता है। इस इमारत का मुख्य ह़ॉल 50ंं*16*15 मीटर का है, जहां छत पर कोई सपोर्ट नहीं लगाया गया है। बड़ा इमामबाड़ा में कुल 489 दरवाजे हैं।
रेजीडेंसी

इस इमारत का निर्माण नवाब सादत अली खान के कार्यालय में करवाया गया था। इसकी स्थापना 1775 में हुई थी, जब लखनऊ को अवध के नाम से जाना जाता था। गोमती तट पर बने बेलीगीरद यानी कि रेजीडेंसी की खूबसूरत इमारत को देखने के लिए देश-विदेश से कई पर्यटक आते हैं। माना जाता है कि रेजीडेंसी अंग्रेजों के खिलाफ हुई आजादी की कुछ पहली और अाखिरी कुछ लड़ाईयों का अहम प्रतीक है।
वैसे इतिहास के पन्नों को थोड़ा और पड़ने पर पता लगा कि असल में रेजीडेंसी का निर्माण ब्रिटिश अफसरों के रहने के लिए शुरू किया गया था। अगर आप रेजीडेंसी की ऐतिहासिक और खूबसूरत इमारतोंको देखना चाहते हैं, तो 7 से 6 के बीच यहां जा सकते हैं।
सफेद बारादरी

बारादरी का मतलब होता है जो हर तरफ से दीवारों, खिड़कियों और दरवाजों से घिरा हुआ हो। ‘बारा’ मतलब 12 और ‘दरी’ का मतलब है द्वार। मतलब ये बारह द्वार की इमारत है। इसमें 12 आर्च और दरवाजे होते हैं, जो कम से कम 3 दिशाओं में खुलते हैं। इसका निर्माण नवाब सादत अली ने करवाया था।
लक्ष्मण पार्क

लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क के बगल में स्थित लक्ष्मण पार्क कई विशालकाय प्रतिमा इस शहर के इतिहास का बखान करती हैं। ऐसा माना जाता है कि अयोध्या के राजा राम के भाई लक्ष्मण ने इस शहर को बसाया था, जिसके कारण इसका नाम लखनऊ पड़ा।
जनरैल कोठी

गोमती नदी के किनारे छतर मंजिल के पास नवाब सादत अली खान के शासन में मुख्य कमांडर और जनरल के निवास के रूप में इस भवन का निर्माण करवाया था। नवाब सादत अली खान ने इसे अपने मंजले बेटे जनरैल साहब के लिए बनवाया था। कहते हैं 1857 में जनरैल इसी कोठी में बने तहखाने से बच कर निकले थे।
परीखाना

अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह ने इसका निर्माण करवाया था। वर्तमान में इसे भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। 1867 में ज़न लॉरेस ने इसे महलनुमा इमारत में तबदील किया। यहां पर संगीत की शिक्षा लेने के लिए देश के अलग-अलग कोनों से लोग आते हैं।
लाल बारादरी

इसका निर्माण नवाब सादत अली ने करवाया था। ये भवन नवाब के शाही दरबार के रूप में उपयोग किया जाता है। इसका असली नाम कस्त्र उल सुल्तान है। उत्तर की तरफ से इसमें दो रास्ते हैं, जो दरबार हॉल में खुलते हैं। इस इमारत के नीचे तहखाने बने हैं, जिनमें जालियां लगी हुईं हैं। इनकी कारीगारी देखते ही बनती है। यहां, चारों ओर से लंबी-लंबी शाहजहानी मेहराबों का सिलसिला है, जो सामने के रुख से बड़ा खूबसूरत लगता है क्योंकि दोनों सदर मेहराबों की ऊंचाई दोनों मंजिलों की ऊंचाई के बराबर है।

ट्रेंडिंग वीडियो