न अधिकारी समझ पाए हैं न कर्मचारी इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के यूपी चैप्टर के अध्यक्ष अनिल गुप्ता का कहना है कि जीएसटी को सीधे तौर पर देखने में बहुत ही सादापन महसूस होता है। लगता है कि सभी जगह बार-बार टैक्स देने की बजाय एक ही जगह टैक्स दे दिए और सब बवाल खत्म हो गया। पर हकीकत में ऐसा नहीं होता है। सही बात तो यह है कि अब तक जीएसटी के बारे में न तो अधिकारी पूरी तौर से समझ पाए हैं और न ही कर्मचारी। जिसे जो मर्जी आई, उस पर जीएसटी ठोक दिया। बाद में लड़ते रहो केस। कोई सुनने वाला नहीं होता। अब तक यूपी में यह साफ नहीं है कि किस-किस पर जीएसटी लग रही है। कुछ खास वस्तुओं और उत्पाद को छोड़ दिया जाए तो अब तक कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है।
अधिकारी दिखाते हैं जीएसटी का खौफ मर्चेंट चैम्बर ऑफ कॉमर्स के सुशील कनोडिया कहते हैं कि सरकार को चाहिए कि वे जीएसटी के बारे में व्यापारियों और जनता को सही तरीके से जानकारी दें। इसके साथ ही सरकार अधिकारियों को भी जीएसटी के प्रत्यारोपण का प्रशिक्षण दें। अभी अधिकारी इसका खौफ दिखा कर धमका सा रहे हैं। ऐसा लगता है कि अगर जीएसटी में कुछ गड़बड़ कर दिया तो फांसी दे देंगे।कनोडिया कहते हैं कि हम जीएसटी अदा करने को तैयार हैं। पहले भी टैक्स देते थे। हम तो जनता से ही वसूल कर वहां अदा कर देते हैं। पर सबसे ज्यादा कठिनाई तो उस वक्त आती है जब अधिकारी सुनने को तैयार नहीं होते। ऐसी स्थिति में व्यापारी अधिकारियों से बचने के लिए इधर-उधर भटकता है। हालत यह है कि एक तरफ यह कहा जा रहा है कि किसानों को जीएसटी से मुक्त रखा गया है लेकिन हकीकत यह है कि सब्जियों और फलों पर जीएसटी लागू है। अब बताइए कन्फ्यूजन पैदा हो गया है कि नहीं।