शहर के एक वकील की अनोखी समाजसेवा, अब तक सैकड़ों मानसिक विकलांगों को संवार चुके हैं जीवन
नीरज सोनी छतरपुर। गढ़ीमलहरा क्षेत्र के ग्राम बारी निवासी नाथूराम विश्वकर्मा के दो जवान बेटे मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए थे। बेटों के पागल होते ही इस परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। रोजी-रोटी का संकट भी बढ़ गया। घर में खाने के लाले पडऩे लगे। उधर दोनेां विक्षिप्त युवकों की पत्नियां भी अपने बच्चे लेकर पति को छोड़कर मायके चली गईं। बूढ़े माता-पिता अपने जवान पागल बेटों को बचाने के लिए यहां-वहां भटक रहे थे। इसी दौरान उन्हें छतरपुर में समाजसेवी एवं पागलों की सेवा करने एडवोकेट संजय शर्मा मिल गए। संजय की मदद से नाथूराम के दोनों बेटे अब स्वस्थ्य होकर लौट आए हैं। बहुएं भी मायके से वापस आ गईं और उजड़ चुका यह परिवार फिर से आबाद हो गया।
ग्राम बारी निवासी नाथूराम विश्वकर्मा की चार संतानें थीं। इनमें से दो बेटियों की पहले ही शादी हो गई थी। दो बेटे जगदीश(३५) और ओमी विश्वकर्मा (३०) शादीशुदा हैं और ट्रक-बस की बॉडी बनाने के लिए बढ़ई गिरी का
काम करते थे। चार साल पहले अचानक एक साथ इन दोनों युवकों की मानसिक हालत खराब हो गई। पागलपन के दौरे पडऩे लगे। काम-धंधा छोड़कर जब घर में पड़े रहने लगे। सितंबर २०१७ में इस बारे में जब एडवोकेट संजय शर्मा को पता चला तो उन्होंने इस परिवार से संपर्क किया। परिवार की हालत देखी तो उनके यहां खाने को भी नहीं था। स्थिति यह थी कि ओमी विश्वकर्मा रोटियां तक छिपाकर रखता था। इस पर संजय शर्मा ने सबसे पहले दोनों युवकों को नियमानुसार कानूनी प्रक्रिया पूरी करके इलाज के लिए ग्वालियर भिजवाया और फिर नाथूराम को लेकर तहसीलदार के पास पहुंचे। यहां पर अपनी गरीबी की हालत बताते-बताते नाथूराम रोने लगा तो संजय शर्मा की आंखों में भी आंसू आ गए। उन्होंने नाथूराम का गरीबी रेखा का परमिट बनवाया और शासन से मिलने वाले राशन को दिलाने की व्यवस्था कराई। उधर जगदीश और ओमी का इलाज डॉ. कुलदीप सिंह से कराया। कुछ दिनों पहले ही दोनों युवक ठीक होकर अपने घर लौट आए हैं। उन्होंने काम-धंधा भी शुरू कर दिया है। जो पत्नियां अपने पतियों को छोड़कर मायके चली गईं थीं वे भी बच्चों को लेकर वापस लौट आई हैं।
अब तक चार सौ से ज्यादा मरीजों का करा चुके हैं इलाज :
एडवोकेट संजय शर्मा पूरे बुंदेलखंड में विक्षिप्तों की अनोखी समाजसेवा के लिए पहचाने जाते हैं। उन्होंने करीब 23 साल पहले विक्षिप्तों को खाना खिलाकर और कंबल व कपड़े बांटकर यह सेवा शुरू की थी। इसके बाद उनके इजाल की प्रक्रिया समझी और फिर विक्षिप्तों को खोज-खेोजकर इलाज के लिए ग्वालियर भेजने लगे। जब कई मरीज ठीक होकर लौटे तो उनका मनोबल बढ़ गया। अब संजय अपनी जीवन का लक्ष्य ही इस सेवा को बना चुके हैं। छतरपुर जिले के अलावा पन्ना, टीकमगढ़, सागर, दमोह सहित कई जगह के विक्षिप्तों को उन्होंने इलाज के लिए भेजा है। अब तक चार सौ से ज्यादा मरीजों को वे ठीक करा चुके हैं। मनोरोगियों के उद्वार के लिए निशुक्ल शिविर लगाने से लेकर जागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन करने के कारण उन्हें देश भर में कई पुरस्कार और अवार्ड मिले हैं। जिला प्रशासन की तरफ से पद्मश्री के लिए भी उनका नाम प्रस्तावित कर केंद्र सरकार को भेजा गया था। संजय वर्तमान में जिला उपभोक्ता फोरम के वरिष्ठ सदस्य भी हैं।
जंजीरों में जकड़ा था, अब जीवन खुशहाल : जिले के ग्राम भिंयाताल निवासी बबलू रैकवार करीब 8 साल पहले वन विभाग में चौकीदार था। अचानक मानसिक सदमा लगने से वह विक्षिप्त हो गया था। बबलू इस कदर हिंसक हो गया था कि उसे परिवार के लोग बेडिय़ों में जकड़कर रखते थे। बबलू इस कदर हिंसक था कि उसने एक बार अपनी बेटी की एक ऊंगली तक चबा डाली थी। ९ अप्रैल २०१५ संजय शर्मा ने बबलू को सीजेएम कोर्ट में पेश कर नियमानुसार ग्वालियर भिजवाया था। पांच महीने बाद ५ अक्टूबर १५ को से बबलू स्वस्थ होकर लौट आया था। इसके बाद से वह समाज की मुख्य धारा में अपना जीवन यापन कर रहा है और ऑटो चलाकर परिवार-पत्नी-बच्चे पाल रहा है।
ठीक होकर लौटी जयंती तो शादी के प्रस्ताव आने लगे : बिजावर क्षेत्र के ग्राम पनागर निवासी जयंती चौरसिया मानसिक रूप से पूरी तरह विक्षिप्त थी। जयंती की हालत बहुत ही अधिक खराब थी। उसके माता-पिता भी नहीं थे। वह अपने वयोवृद्ध दादाजी के साथ रहती थी। जयंती के बारे में जैसे ही संजय शर्मा को पता चला तो उन्होंने उसे मानसिक चिकित्सालय भेजा और वहां उसका इलाज कराया। इलाज के बाद जब जयंती ठीक होकर लौटी तो उसकी खूबसूरती और चंचलता देखकर कई विवाह के प्रस्ताव आए। बाद में उसके दादाजी ने जयंती की शादी की दी। अब वह खुशहाल जीवन जी रही है।
मनोज भी ठीक होकर लौटा : हरपालपुर के ग्राम सरसेड़ निवासी मनोज सोनी भी मानसिक रूप से विक्षिप्त था, लेकिन संजय शर्मा के संपर्क में आने के बाद उन्होंने इसका इलाज कराया और बाद में वह ठीक होकर आ गया। मनोज अब हाथठेला चलाकर अपने परिवार का जीवन यापान करता है।