बुंदेलखंड और पूर्वांचल में महिलाएं हैं भेदभाव का शिकार उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और पूर्वांचल सहित लगभग सभी हिस्सों में जातीय विभेद कम अथवा अधिक मात्रा में देखा जाता है। जातीय ताने बाने में लिपटे भारतीय समाज के जातिगत बंधन अभी भी ग्रामीण अंचलों में गहरे तक देखने को मिल जाते हैं। बुंदेलखंड के कई जिलों से लगातार दलित महिलाओं से होने वाले भेदभाव की कहानियां सामने आती रही हैं। सिर पर मैला ढोने, मंदिरों में प्रवेश पर रोक जैसे मामले तमाम सरकारी दावों के बावजूद समय-समय पर सामने आते रहे हैं। पूर्वांचल में भी जातिवाद का असर ग्रामीण क्षेत्रों में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है और इस जातीय गुटबाजी का सबसे असर महिलाओं पर पड़ता है जिससे न सिर्फ उनकी सेहत बल्कि औसत उम्र भी प्रभावित होती है। सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के सरकारी दावों के बीच हर रोज सामने आने वाले जातीय संघर्ष इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस तरह के संघर्ष और भेदभाव का शिकार दलित महिलाएं अलग तरह से होती हैं।
दलित महिलाओं को कम सुविधाओं की उपलब्धता दलित महिलाओं की औसत उम्र कम होने के कई कारण बताये गए हैं जो रोजमर्रा की दिनचर्या में देखे और महसूस किये जा सकते हैं। रिपोर्ट में दलित महिलाओं की सेहत ख़राब होने और उनकी उम्र कम होने के पीछे कई तरह के कारण बताये गए हैं। उचित साफ-सफाई न मिलना, पानी की कमी और समुचित स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता दलित महिलाओं की औसत आयु कम होने का कारण साबित होती है। जानकर स्वीकार करते हैं कि अवसरों और सुविधाओं की उपलब्धता में महिला-पुरुष के भेद के साथ ही इस बात का भी असर पड़ता है कि महिला दलित वर्ग से है अथवा सवर्ण वर्ग से। फिलहाल इस रिपोर्ट ने एक गंभीर बहस को जन्म दिया है और सामाजिक भेदभाव व लैंगिक विषमता को हटाने वाले अभियानों पर फिर से विचार करने की जरूरत पैदा कर दी है।