scriptUP assembly elections 2022: उत्तर प्रदेश आने से क्यों घबरा रहे राहुल गाँधी? | UP assembly elections 2022 Why Rahul Gandhi does not come UP Amethi | Patrika News

UP assembly elections 2022: उत्तर प्रदेश आने से क्यों घबरा रहे राहुल गाँधी?

locationलखनऊPublished: Oct 04, 2021 06:49:33 pm

Submitted by:

Vivek Srivastava

राहुल गांधी ने पिछले दो सालों में महज़ एक बार यूपी का दौरा किया है। वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में अमेठी की हार के बाद से राहुल गांधी सिर्फ एक बार अमेठी गये हैं। वो बंगाल जाते हैं जम्मू-कश्मीर जाते हैं मगर उत्तर प्रदेश में आने से कतरा रहे हैं।

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Rahul and Priyanka

लखनऊ. उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव (UP assembly elections 2022) होने में अब छह महीने से कम का समय बचा है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपना एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। आलम ये है कि प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) तक यूपी का कई बार दौरा कर चुके हैं। AIMIM के असदुद्दीन औवैसी तो आये दिन यूपी में ही देखे जा रहे हैं। कांग्रेस से प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) भी गाहे-बगाहे यूपी दौरे पर आ रही हैं। मगर इन सबके बीच राहुल गाँधी कहीं नज़र नहीं आ रहे। सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों? क्या कांग्रेस और राहुल गांधी उत्तर प्रदेश को ज्यादा महत्व नहीं दे रही ? या फिर उन्हें प्रियंका गांधी पर इस कदर भरोसा है कि उन्होंने यूपी की पूरी सियासत को प्रियंका गांधी के भरोसे छोड़ा दिया है ? या फिर ये माना जाय कि पिछले चुनावों में यूपी में मिली करारी हार के सदमें से राहुल अब तक उबर नहीं सके हैं ? दरअसल सवाल तो कई हैं मगर इन सवालों का जवाब न तो राहुल गाँधी के पास है और न ही कांग्रेस के पास।
पिछले दो सालों में महज़ एक बार किया यूपी का दौरा

ठीक एक साल पहले यानि 3 अक्टूबर 2020 को राहुल गाँधी आखिरी बार यूपी के दौरे पर आये थे। उनका ये दौरा भी पार्टी और संगठन को मजबूत करने के इरादे से नहीं था बल्कि वो हाथरस गैंगरेप पीड़िता के परिजनों से मिलने यूपी आये थे वो भी महज़ कुछ देर के लिए।
उत्तर प्रदेश और अमेठी से बेरुख़ी क्यों?

राहुल गाँधी बंगाल जाते हैं, जम्मू-कश्मीर जाते हैं, राजस्थान जाते हैं मगर उत्तर प्रदेश नहीं आते। पिछले तीन सालों में राहुल ने कई बार वायनाड (Wayanad,) का दौरा किया है। इसमें कोई ग़लत भी नहीं क्योंकि आख़िरकार वो उनका संसदीय क्षेत्र है जहाँ से जीतकर वो संसद पहुँचे हैं। मगर उस अमेठी को क्यों भुला दिया, जिस अमेठी ने उनके चाचा संजय गाँधी को, उनके पिता राजीव गाँधी को और फिर ख़ुद उन्हें तीन बार भारत की संसद में पहुँचाया है। आख़िर एक ही हार में राहुल गाँधी उस अमेठी से इतनी बेरुख़ी क्यों दिखा रहे हैं? उस उत्तर प्रदेश से क्यों दूरी बना ली है जिस प्रदेश से उनकी दादी इंदिरा जीत कर देश की प्रधानमंत्री बनीं और जहाँ से खुद उनकी मां सोनिया गाँधी सांसद हैं।
क्या अमेठी की हार नहीं पचा सके हैं राहुल गाँधी ?

ऐसा लगता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी जैसी कांग्रेस की परंपरागत और अपराजेय सीट से बीजेपी की स्मृति ईरानी के हाथों मिली करारी हार को राहुल गाँधी न पचा सके हैं और न ही भुला सके हैं। अब उन्होंने शायद अमेठी से दोबारा लड़ने और जीतने की उम्मीद भी छोड़ दी है। यही वजह है कि पिछले लोकसभा चुनावों के बाद से वो कई बार वायनाड के दौरे पर तो गये मगर अमेठी कभी नहीं आये। अमेठी में उनका आखिरी दौरा 10 जुलाई 2019 को हुआ था, जब वो स्मृति ईरानी से हार के बाद पहली बार अमेठी गये थे।
संजय गाँधी भी हारे थे मगर दोबारा की थी वापसी

1977 के लोकसभा चुनाव में संजय गांधी जैसा दबंग और कद्दावर नेता अमेठी से चुनाव हार गया था। ये वो दौर था जब देश ने आपातकाल का दंश झेला था। संजय गाँधी भी इसी लपेटे में चुनाव हारे थे मगर इस हार ने संजय के मनोबल पर कोई असर नहीं डाला था। वो हार के बाद भी लगातार अमेठी आते रहे जिसके चलते 1980 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने दोबारा जबर्दस्त जीत हासिल की। मगर राहुल गाँधी एक ही हार में निराशा के इस गर्त में चले गये कि वो दोबारा अमेठी से जीत का भरोसा ही छोड़ चुके हैं।
क्यों प्रियंका गांधी के भरोसे छोड़ दिया है उत्तर प्रदेश का चुनावी युद्ध?

खैर माना कि वो अमेठी की जनता से नाराज़ हैं। मगर पूरे उत्तर प्रदेश को क्यों उन्होंने और उनकी पार्टी ने सिर्फ प्रियंका गाँधी के भरोसे छोड़ रखा है। 2017 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले बेहद जोरशोर के साथ प्रियंका गाँधी ने यूपी कांग्रेस की कमान अपने हाथों में ली थी। पार्टी कार्यकर्ताओं में भी बेहद जोश था। ऐसा प्रचारित किया जा रहा था कि बस प्रियंका गाँधी के आने की देर थी जो पूरी हो गयी। अब कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने से कोई रोक नहीं सकता। मगर नतीजा क्या आया ये सभी जानते हैं। जहाँ 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 28 सीट पर जीत मिली थी वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी महज 7 सीटों पर सिमट गयी थी।
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