मनोवैज्ञानिक डॉ नूतन वोहरा का कहना है कि ये तय मान लीजिए कि जो रिजल्ट आ रहा है उसे आप बदल नहीं सकते इसलिए बच्चों के साथ विकल्प पर बात करें। मतलब एक दरवाजा बंद हो गया तो दूसरा रास्ता क्या है। रिजल्ट के तनाव से बच्चों और घर के माहौल से दूर रखने का प्रयास करें।
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बच्चों के साथ ऐसे करें व्यवहार 1. जैसे बच्चों को अन्य परेशानियों में संभालते हैं ठीक वैसे ही रिजल्ट खराब होने पर उसे डांटने की बजाय संभालें। 2. पहले फेल और फिर कामयाब होने वाली महान हस्तियों के उदाहरण बच्चों के सामने रखें।3. रिजल्ट के बाद बच्चे को अकेले न छोड़ें।
4. जैसे ही महसूस हो कि बच्चे का व्यवहार बदल रहा है तो मनोचिकित्सक और काउंसलर्स से संपर्क करें।
5. इंसानी दिमाग कभी भी संतुष्ट नहीं होता। यही वजह है कि कभी-कभी टॉपर भी आत्महत्या कर लेते हैं।
6. अच्छा रिजल्ट आने पर आपने बच्चे को जो देने का वादा किया था उसे तोड़ें नहीं। उससे कम या कुछ समय बाद उसे दें जरूर। रिजल्ट खराब होने के साथ ही बच्चों को ये बातें चुभती हैं।
7. रिजल्ट आने से पहले बच्चे के साथ पहले से तय लक्ष्य पर नहीं, उसके विकल्प पर बात करें।