यूपी चुनाव में बमुश्किल चार महीने का ही वक्त बचा है और भाजपा पूरी दम से चुनावी तैयारियों में जुटी है। कथित तौर पर ब्राह्मण समुदाय योगी सरकार से नाखुश है, जितिन प्रसाद को कैबिनेट मंत्री बनाना इस वर्ग को खुश करने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। बहेड़ी से विधायक छत्रपाल गंगवार को राज्यमंत्री बनाकर पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार के विकल्प के तौर पर लाया गया है। हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर किये गये संतोष गंगवार की जगह छत्रपाल कुर्मी वोटरों को लाने की जिम्मेदारी रहेगी। इसके अलावा ओबीसी नेता के तौर पर धर्मवीर प्रजापति और गाजीपुर सदर से विधायक डॉ. संगीता बलवंत बिंद को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। दलित नेता के तौर पर बलरामपुर सुरक्षित सीट से विधायक पलटूराम और हस्तिनापुर से विधायक दिनेश खटीक को मंत्री बनाया गया है। वहीं, संजय गोंड को राज्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने अनुसूचित जाति को भी रिझाने का दांव चला है।
क्यों पड़ी मंत्रिमंडल विस्तार की जरूरत?चुनावी आचार संहिता के चलते मंत्रियों को सिर्फ तीन महीने ही काम करने का मौका मिल सकेगा। इस स्थिति में मंत्रियों के पास सिर्फ चुनाव प्रचार की ही जिम्मेवारी होगी। ऐसे में अभी मंत्रिमंडल विस्तार की जरूरत क्यों पड़ी? चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि भले ही मंत्रियों को काम करने का ज्यादा वक्त न मिले, लेकिन चुनाव के वक्त सरकार को इसका लाभ मिल सकता है।
मंत्रिमंडल में एके शर्मा नहीं
मंत्रिमंडल विस्तार में पीएमओ के पूर्व नौकरशाह अरविंद कुमार शर्मा को नहीं शामिल किया है। राजनीति में शामिल होने के लिए इन्होंने इसी साल जनवरी में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। वे लखनऊ आए और उन्हें तुरंत यूपी विधान परिषद का सदस्य बना दिया गया था। योगी मंत्रिमंडल में उन्हें बड़ा पद दिये जाने की चर्चा थी।