सहकारी ग्रामीण बैंक की स्थानीय प्रबंध समितियों व सामान्य सभा के चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम की 59 में से 55, अवध की 65 में 63, काशी क्षेत्र की 38 में से 33 और गोरखपुर की 34 में 30 स्थानों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया है। ऐसे ही कानपुर क्षेत्र में 45 में से 34 और ब्रज में 82 में से 78 क्षेत्र में बीजेपी को जीत मिली है।
बीजेपी ने सहकारिता के क्षेत्र में बड़ी जीत दर्ज करते हुए समाजवादी पार्टी के तीन दशक पुराने तिलिस्म को तोड़ दिया। वर्ष 1991 से अब तक सहकारिता के क्षेत्र में सपा और खासकर ‘यादव परिवार’ का एकाधिकार रहा है। यहां तक कि मायावती के दौर में भी सहकारी ग्रामीण विकास बैंक पूरी तरीके से यादव परिवार के कंट्रोल में ही रहा। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुख्यिा शिवपाल सिंह यादव यूपी सहकारिता के स्वयंभू माने जाते थे। शिवपाल यादव खुद की और अपनी पत्नी सरला यादव की सीट बचाने में जरूर कामयाब रहे हैं, लेकिन पूर्वांचल से पश्चिमी यूपी तक उनके सभी सिपहसालार मात खा गये हैं। बीजेपी की प्रचंड जीत की वजह सरकार व भाजपा संगठन की व्यूह रचना मानी जा रही है। प्रदेश के सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा ने जीत का श्रेय पार्टी संगठन को देते हुए कहा कि उसने कार्यकर्ताओं को अभियान चलाकर सक्रिय किया। उससे आई जागरूकता ने यह परिवर्तन कराया है। वहीं, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने विपक्ष के आरोपों को निराधार बताते हुए विजयी प्रतिनिधियों को बधाई दी।
वर्ष 1960 में जगन सिंह रावत उत्तर प्रदेश के सहकारी ग्रामीण बैंक के पहले सभापति निर्वाचित हुए थे। रऊफ जाफरी और शिवमंगल सिंह 1971 तक सभापति रहे। इसके बाद बैंक की कमान प्रशासक के तौर पर अधिकारियों के हाथ में आ गई। वर्ष 1991 में सहकारिता के क्षेत्र में मुलायम परिवार की एंट्री हुई। करीब तीन माह के लिए हाकिम सिंह सभापति बने। वर्ष 1994 में शिवपाल यादव सभापति बने। वर्ष 1999 में तत्कालीन सहकारिता मंत्री रामकुमार वर्मा के भाई सुरजनलाल वर्मा सभापति चुने गये।