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यूपी की पुलिस कर रही फर्जी एन्काउंटर, डीजीपी सुलखान सिंह ने किया बड़ा खुलासा

locationलखनऊPublished: Nov 19, 2017 02:59:58 pm

Submitted by:

Abhishek Gupta

डीजीपी ने कहा- उस जमाने में फर्जी एनकाउंटर, फर्जी गवाही और फर्जी केस नहीं होते थे.

Sulkhan Singh

Sulkhan Singh

लखनऊ. प्रदेश में दनादन एनकांटर जारी हैं। आठ महीने की योगी सरकार में खाकी वर्दी ने 4४२ मुठभेड़ में 15 खूंखार बदमाशों को मौत के हवाले कर दिया है। मुठभेड़ों में 68 बदमाश जख्मी हुए हैं। योगी सरकार मुठभेड़ों से प्रसन्न है, लेकिन प्रदेश पुलिस के मुखिया की नजर में तमाम एनकाउंटर फर्जी होते हैं। अपराधियों के परिजनों पर जुल्म के जरिए पुलिस वाले किसी वांछित को पकड़ते हैं। इसके अलावा फर्जी गवाही और फर्जी मामलों की एफआईआर रोजमर्रा का हिस्सा है। यूपी पुलिस से ज्यादा बेहतर तो अंग्रेजों के जमाने में पुलिस थी। सुलखान सिंह को यह कबूल करने में कोई गुरेज नहीं कि ब्रिटिश पुलिस से भारतीय परेशान जरूर थे, लेकिन ब्रितानी पुलिस फर्जी मामलों और फर्जी एनकाउंटर का सहारा नहीं लेती थी।
जानवरों जैसा व्यवहार करती है यूपी पुलिस-

42 दिन बाद सेवानिवृत्त होने वाले डीजीपी सुलखान सिंह ने मीडिया से चर्चा के दौरान बेबाकी से सच को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि यह स्वीकार करना कठिन है, लेकिन सच है। गुलामी के दौर में ब्रिटिश पुलिस का रवैया आज की पुलिस के मुकाबले ज्यादा बेहतर था। डीजीपी ने कहा कि तमाम मनाही और नियम-कायदों के बावजूद यूपी पुलिस अक्सर ही लोगों के साथ जानवरों जैसा बर्ताव करती है। उन्होंने कहा कि यूपी पुलिस का व्यवहार सुधारने के लिए बहुत प्रयास हुए, लेकिन अपेक्षित नतीजे नहीं मिले। सुलखान सिंह ने कहा कि आजादी की लड़ाई में कई उदाहरण होंगे, जब ब्रिटिश पुलिस ने जुल्म की इंतहा को लांघा होगा, लेकिन फर्जी एनकाउंटर, फर्जी मामले की एफआईआर और फर्जी गवाहों के आधार पर किसी को जेल भेजने का एक भी उदाहरण नहीं मिलेगा।
काकोरी कांड और बिस्मिल का उदाहरण दिया-

भारतीय पुलिस और ब्रिटिश पुलिस की कार्यप्रणाली पर राज्य अभिलेख और पुलिस पुस्तकालय के साहित्य पर शोध कर चुके डीजीपी सुलखान सिंह ने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए काकोरी कांड का उदाहरण दिया। उन्होंने कहाकि लंदन को हिला देने वाले काकोरी लूटकांड में पुख्ता सबूत और अंतिम जांच रिपोर्ट नहीं आने तक संिदग्ध होने के बावजूद रामप्रसाद बिस्मिल को हिरासत में लेकर पूछताछ कर नहीं हुई। इसके अलावा इस कांड में फरार लोगों की गिरफ्तारी के लिए ब्रिटिश पुलिस ने किसी वांछित के परिजनों का उत्पीडऩ नहीं किया। डीजीपी ने सवाल किया क्या आज के दौर में किसी हाई-प्रोफाइल मामले में यूपी पुलिस से ऐसी उम्मीद करना संभव है। उन्होंने कहाकि ब्रितानी पुलिस क्रूर और हिंसक थी, लेकिन तयशुदा नियम-कायदों पर अमल करती थी।
अंग्रेज रखते थे कैदियों का ख्याल, अब जेल में सड़न-

डीजीपी ने पुलिस के रवैये के साथ-साथ सिस्टम को भी कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने में जेल में साफ-सफाई का काम करने वाले कैदियों को गले और फेफड़ों की रक्षा के लिए गुड़ मिलता था, इसके साथ ही रस्सी बनाने वाले कैदियों को हाथों की हिफाजत के लिए सरसो का तेल मिलता था। आज के दौर में जेलों में सडऩ जैसा माहौल है। क्षमता से तीन-चार गुना कैदी रहते हैं। कैदियों के रहने-सोने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं हैं। नतीजे में अक्सर ही तमाम कैदी बीमार होकर जेलों के अंदर अपंग हो जाते हैं अथवा दम तोड़ देते हैं।
नेताओं के इशारों पर नाचते हैं बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी-

डीजीपी ने कहाकि आज भी उनकी मां बांदा के पैतृक गांव में साधारण घर में रहती हैं और सुबह-शाम अपने लिए खुद रोटी बनाती हैं। इसके साथ ही गाय के चारे की व्यवस्था खुद करती हैं। इसके उलट अधिकांश पुलिस अधिकारियों को अपने लिए आलीशान घर की चाहत रहती है। ऐसा क्यों? इस सवाल के साथ ही जवाब भी दिया कि कारण यह कि अधिकांश पुलिस अफसर नेताओं के इशारों पर नाचते हैं। डीजीपी ने कहाकि नेताओं के दबाव से डरने वाले पुलिस अफसर आखिरकार नक्सलियों, डकैतों और खूंखार बदमाशों का सामना कैसे करेंगे?
डीजीपी को पांच साल का वक्त मिलना चाहिए-

31 दिसंबर 2017 को सेवानिवृत्त होने वाले डीजीपी सुलखान सिंह ने कहाकि पुलिस व्यवस्था में सुधार के लिए किसी भी डीजीपी को पांच-छह साल का वक्त मिलना चाहिए। एक वर्ष या कुछ अधिक के कार्यकाल में कोई भी डीजीपी अपने आइडिया, योजनाओं और प्रोजेक्ट को परवान नहीं चढ़ा सकता है। उन्होंने कहाकि यूपी पुलिस के हालात बेहद खराब हैं, इन्हें एक साल में सुधारना किसी चमत्कार से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि पुलिस को मानवीय बनाने के लिए उन्होंने तमाम प्रयास किए हैं, लेकिन जैसा चाहा था-वैसा परिणाम देखने को नहीं मिला।
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