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करोड़ों खर्च करने के बाद दर-दर भटक रहे लाइसेंसधारक व्यापारी, आमरण अनशन को मजबूर, कुछ करिए योगी जी

locationलखनऊPublished: Dec 07, 2021 11:41:05 am

Submitted by:

Prashant Mishra

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में 1215 आरा मशीन प्लाईवुड, वेनियर एवं चिपर इकाइयों का चयन लाटरी के माध्यम से वर्ष 2018 में किया गया था। इन इकाइयों से 5 वर्ष का लाइसेंस शुल्क जमा कराकर प्रोविजनल लाइसेंस 1 मार्च 2019 को इस शर्त पर दिया गया था कि यदि इकाई 6 माह में स्थापित नहीं की गई तो लाइसेंस शुल्क जप्त कर लिया जाएगा। धारको ने सरकार के नियमों का पालन करते हुए 2019 में इकाई स्थापित कर ली। जिन लोगों का लाइसेंस हुआ था उन्होंने लगभग 3000 करोड़ रुपए इस व्यापार के लिए निवेश किए हैं।

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लखनऊ. उत्तर प्रदेश में व्यापारियों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने व इकाइयों की स्थापना से लिए अच्छा माहोल उपलब्ध कराने के लिए भले ही प्रदेश सरकार तमाम दावे करती हो लेकिन प्रदेश की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बंया कर रही है। आलमय ये है कि प्रदेश सरकार अपने द्वारा जारी किए लाइसेंस पर व्यापारियों की व्यवसाइक इकाई की स्थापना नहीं करा पा रही है।
व्यापारी कर रहे प्रदर्शन

राजधानी लखनऊ स्थित वन मुख्यालय पर आरा मशीन प्लाईवुड विनियर एवं चिपक इकाइयों के लाइसेंस होल्डर व्यापरी इकाइयों पर एनजीटी की रोक के बाद प्रदेश सरकार की लापरवाही को लेकर पदर्शन कर रहे हैं। व्यापारियों का कहना है कि सरकार पर विश्वास कर उन्होंने लॉटरी के माध्यम से लाइसेंस प्राप्त किया था, लेकिन लाइसेंस मिलने के बाद उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। जमीन घर बेच कर व ब्याज पर पैसा उधार लेकर इकाईयों की स्थापनी की थी। लेकिन एनजीटी की रोक के बाद अब व्यापारी रोड पर आगए हैं। व्यापारियों को कमजोर हो रही आर्थिक स्थित व इकाई की स्थापना में खर्च किए गए करोड़ो रुपये को देखते हुए सरकार को व्यापारियों की मदद कर जल्द से जल्द कोर्ट में प्रभावी पैरवी कर रोक को हटाने का कार्य करना चाहिए। व्यापारियों का कहना है कि अगर ऐसा नहीं होता है तो वह आमरण अनशन करने के लिए मजबूर होंगे।
ये है पूरा मामला

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में 1215 आरा मशीन प्लाईवुड, वेनियर एवं चिपर इकाइयों का चयन लाटरी के माध्यम से वर्ष 2018 में किया गया था। इन इकाइयों से 5 वर्ष का लाइसेंस शुल्क जमा कराकर प्रोविजनल लाइसेंस 1 मार्च 2019 को इस शर्त पर दिया गया था कि यदि इकाई 6 माह में स्थापित नहीं की गई तो लाइसेंस शुल्क जप्त कर लिया जाएगा। धारको ने सरकार के नियमों का पालन करते हुए 2019 में इकाई स्थापित कर ली। जिन लोगों का लाइसेंस हुआ था उन्होंने लगभग 3000 करोड़ रुपए इस व्यापार के लिए निवेश किए हैं।
इकाइयों से ये फायदे

व्यापारियों का दावा है कि अगर उत्तर प्रदेश में ये इकाइयां संचालित होती तो दो लाख लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिलता। प्रदेश में किसानों को भी फायदा होता है। पॉपुलर जैसे पेडों की खेती करने वाले किसानों को फसल की अच्छी कीमत मिलेगी। लेकिन इकाइयों के लगने के बाद कुछ एनजीओ के हस्तक्षेप बाद एनजीटी द्वारा रोक लगा दी गई।
कोर्ट में नहीं हो रही प्रभावी पैरवी

एनजीटी द्वारा रोक लगाने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में अपील की परंतु आठ माह बीत जाने के बाद भी सरकार के अधिकारियों की लापरवाही के चलते अभी तक माननीय सुप्रीम कोर्ट से डेट नहीं मिली है। ऐसे में सरकार की मंशा संदेह के घेरे में है। अगर सरकार व्यापारियों का हित चाहती है तो सुप्रीम कोर्ट में मजबूत पैरवी कर इन इकाइयों से होने वाले फायदे के आधार पर एनजीटी की रोक समाप्त करा सकती है।
ये हैं मांगे

वन मुख्यालय के सामने प्रदर्शन कर रहे व्यापारियों का कहना है कि जब तक सरकार व्यापारियों के हितों में उच्चतम न्यायालय में पैरवी का लाइसेंस नहीं दिलाती यह अध्यादेश के माध्यम से लाइसेंस नहीं जारी करती हमारा अनिश्चितकालीन धरना ऐसे ही चलता रहेगा, यदि सरकार समय रहते नहीं जागी तो हम आमरण अनशन करने के लिए मजबूर रहेंगे।
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