सितंबर से शुरू हुए आंदोलन के दौरान कई तरह की अनगिनत घटनाएं हुईं। किसानों का दावा है कि दिल्ली कूच करने तक आंदोलन के दौरान करीब 700 किसान शहीद हुए। इन सब में लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा ने सबसे ज्यादा विख्यात रूप ले लिया। लखीमपुर खीरी हिंसा में किसानों को कार से कुचले जाने तक की घटना शामिल है। सरकार की तरफ से किसान आंदोलन को जाट बनाम गुर्जर करार दिये जाने लगा। इस आंदोलन के राजनीतिकरण की भी कोशिशें हुईं। विपक्षी दलों ने किसानों को न्याय का भरोसा देते हुए केंद्र सरकार पर हमला किया। उधर, किसानों ने अपना आंदोलन जारी रखा। किसान आंदोलनकारियों ने अपने क्षेत्रों में भाजपा नेताओं के प्रवेश पर बैन लगाया तो उसको लेकर भी टकराव हुआ। 14 अक्टूबर 2020 से लेकर 22 जनवरी 2021 तक किसानों सरकार के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई।
नेताओं की प्रतिक्रिया केंद्र सरकार द्वारा कृषि कानून वापस लेने पर यूपी के नेताओं ने प्रतिक्रिया दी है। समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने कहा, ”अमीरों की भाजपा ने भूमिअधिग्रहण व काले क़ानूनों से ग़रीबों-किसानों को ठगना चाहा। कील लगाई, बाल खींचते कार्टून बनाए, जीप चढ़ाई लेकिन सपा की पूर्वांचल की विजय यात्रा के जन समर्थन से डरकर काले-क़ानून वापस ले ही लिए। भाजपा बताए सैंकड़ों किसानों की मौत के दोषियों को सज़ा कब मिलेगी।”
किसान की सदैव जय कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कृषि कानून वापस लिए जाने को किसानों की जीत बताया। उन्होंने कहा, ”आपकी नियत और आपके बदलते हुए रुख़ पर विश्वास करना मुश्किल है। किसान की सदैव जय होगी। जय जवान, जय किसान, जय भारत।” एक अन्य ट्वीट में कहा, ”अब चुनाव में हार दिखने लगी तो आपको अचानक इस देश की सच्चाई समझ में आने लगी – कि यह देश किसानों ने बनाया है, यह देश किसानों का है, किसान ही इस देश का सच्चा रखवाला है और कोई सरकार किसानों के हित को कुचलकर इस देश को नहीं चला सकती।”
एमएसपी को लेकर भी करें फैसला कृषि कानून वापसी पर बसपा प्रमुख मायावती ने किसानों को बधाई दी। मायावती ने कहा कि फैसला लेने में देरी कर दी। मायावती ने कहा कि यह फैसला बहुत पहले ले लेना चाहिए था। एमएसपी को लेकर भी सरकार फैसला करे। इस आंदोलन के दौरान किसान शहीद हुए हैं, उन्हें केंद्र सरकार आर्थिक मदद और नौकरी दे।