अभी प्रदेश सरकार के मंत्रियों को यूपी मंत्री (वेतन, भत्ता और प्रकीर्ण उपबन्ध) अधिनियम, 1981 के तहत मंत्री के रूप में प्राप्त होने वाले वेतन पर खुद आयकर जमा करने की छूट मिली हुई है। वित्तमंत्री की जिम्मेदारी संभालने के बाद सुरेश खन्ना ने फिजूलखर्ची रोकने पर विभाग में चर्चा की थी। तब मंत्रियों के वेतन का आयकर सरकार के खजाने से अदा किए जाने की बात सामने आई। तब उन्होंने इस व्यवस्था को खत्म करने के संबंध में पहल करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से चर्चा की। सीएम ने इसकी अनुमति दे दी है। 1981 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने यह व्यवस्था लागू की थी। तब से किसी ने इसकी समीक्षा नहीं की। अब इसे समाप्त करने को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ ने सहमति दे दी है।
3 अक्तूबर, 1981 से सरकार भर रही थी आयकर
प्रदेश सरकार 3 अक्तूबर, 1981 से मंत्रियों के वेतन का आयकर खुद भर रही है। जानकार बताते हैं कि चिकित्सीय भत्ता, सचिवीय भत्ता भी कर योग्य आय माना जाता है। आवासीय सुविधा के एवज में आवास के वार्षिक वैल्यू के आधार पर इनकम टैक्स अदा किया जाता है। निर्वाचन क्षेत्र भत्ता व प्रतिदिन दैनिक भत्ता इनकम टैक्स के दायरे से बाहर है।
कांग्रेस ने लागू की थी व्यवस्था
1981 में जब यह व्यवस्था लागू की गई थी, उस समय कांग्रेस की वीपी सिंह सरकार थी। वीपी सिंह ने विधायकों की गरीबी और मालीहालत का हवाला देते हुए सरकारी खजाने से इनकम टैक्स अदा करने की व्यवस्था की थी। उस जमाने में विधायक सादगी की मिसाल माने जाते थे। तब से विधायकों व मंत्रियों के ठाटबाट में बड़ा बदलाव आ चुका है। आयकर देने में सरकारी खजाने पर बोझ मंत्रियों की संख्या पर निर्भर है। 2018-19 में इस मद में ₹86 लाख भुगतान हुआ। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद 2019-20 में यह बहुत एक करोड़ से अधिक जाने का अनुमान था।