दो साल में 363 ने किया प्रयास- यूपी पुलिस विभाग के आंकड़े बताते हैं 2019 से अब तक कुल 363 लोग आत्मदाह का प्रयास कर चुके हैं। इनमें से 251 ऐसे थे जो घोषणा करके आत्मदाह करने निर्धारित स्थान पर पहुंचे। बाकायदा लोग फेसबुक पर पोस्ट डालकर आत्मदाह करने पहुंचते हैं। बावजूद इसके उनकी समस्याओं का समय रहते पुलिस निराकरण नहीं करती। शायद पुलिस व प्रशासन अनहोनी के इंतजार में ही रहते हैं।
कई हैं आत्मदाह की वजहें- उन्नाव रेपकांड को लोग अभी नहीं भूले हैं। उन्नाव की रेप पीडि़ता को तब तक न्याय की किरण नहीं दिखी, जब तक उसने लखनऊ में आकर आत्मदाह की कोशिश नहीं की। इसके अलावा कई अन्य ऐसे मामले हैं, जहां पीड़ित प्रशासनिक व पुलिस के रवैये से परेशान होकर आत्मघाती कदम उठाने को मजबूर हुए हैं। नौकरी न मिलना, छोटे-छोटे कामों के लिए लंबे वक्त तक सरकारी विभागों के चक्कर काटना, जमीन हड़प लेना, फर्जी मुकदमेबाजी में फंसाना, ये कुछ ऐसे मामले हैं जो आत्मदाह का कारण बनते हैं।
ये भी पढ़ें- UP Prasangvash: कोरोना संक्रमण के प्रति यह बेफिक्री ठीक नहीं पुलिस व प्रशासन को संवेदनशील होने की जरूरत- मनोवैज्ञानिकों की मानें, तो आत्मदाह ऐसा अंतिम कदम है जो तभी उठाया जाता है, जब व्यक्ति के विरोध की चीख को पूरी तरह से अनसुना कर दिया जाता है। जब वह असहाय महसूस करता है। जब न्याय के सारे दरवाजे पूर्ण रूप से बंद हो जाते हैं। हालांकि यह समस्या का अंतिम हल नहीं है। जीवन अनमोल है। उसे यूं गंवाना उचित नहीं। जाहिर है इसके लिए प्रशासन को संवेदनशील होने की भी जरूरत है। सरकार को अपनी व्यवस्थाएं दुरुस्त करनी होंगी। जनता की सुनवाई के लिए जिलों में तहसील दिवस, थाना दिवस को सिर्फ कागजी आंकड़ों में दिखाने से काम नहीं बनेगा। यदि मूल स्थान पर ही समस्याओं को खत्म कर दिया जाए तो बात आगे नहीं बढ़ेगी। सांसद-विधायक व अन्य जन प्रतिनिधि भी एक तय स्थान व समय पर आम लोगों से मिलकर उनकी समस्याएं सुनें। ऑनलाइन शिकायत के लिए शुरू की गईं सीएम जनसुनवाई पोर्टल पर समस्याएं सुनने के साथ उनका त्वरित निस्तारण भी हो। पुलिस किसी के दबाव में न आकर बिना पक्षपात के पीड़ितों के साथ न्याय करें। लेकिन यह सभी काम सकारात्मक सोच से ही संभव है। जिस दिन जनता की पीड़ा पुलिस-प्रशासन समझने लगेगा समस्या का निदान हो जाएगा।
(अभिषेक गुप्ता)