रिजवी ने आगे पत्र में लिखा है कि तीन तलाक से पीड़ित महिला जिंदगी भर अपने बचे हुए जीवन में संघर्ष करती है और समाज में भी उसे सम्मान नहीं मिलता। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक बार में तीन तलाक को सही मानते हुए कानून का विरोध कर रहा है, जो कि खेदजनक है। एक बार में तीन बार तलाक कह देना शरई मामला नहीं है। कुरान में इस तरह से तलाक देने का कोई निर्दश या उदाहरण नहीं है। यह महिला के प्रति अत्याचार व शोषण की श्रेणी में आता है जो कि अपराध है। इसे आपराधिक कृत्य मानते हुए भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराध मना जाना चाहिए।
सैयद रिजवी ने कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को यह तय करना होगा कि हिंदुस्तान में मुसलमानों पर शरीयत के कौन से सामाजिक कानून लागू होने चाहिए और कौन से आपराधिक कानून लागू होने चाहिए। अगर अपराध और अपराधियों के सम्बन्ध में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ऐसे ही विचार हैं तो उन्हें इस बात का समर्थन करना चाहिए कि हिन्दुस्तान के मुसलमानों पर शरई आपराधिक कानून लागू हों यानि कि अगर कोई मुस्लमान चोरी करता है तो उसे भारतीय दंड संहिता के प्राविधानों के तहत तीन साल या उससे अधिक की सजा न देकर इस्लामिक कानून के तहत हाथ काट दिए जाये और अगर कोई मुस्लिम बलात्कार करे तो उसे भी शरीयत कानून के मुताबिक दंड दिए जाए।