विभागीय अधिकारियों का मानना है कि पुनर्विवाह होने पर सरकार की ओर से विधवा पेंशन बंद कर दी जाती है। इस आशंका में ऐसी महिलाएं पुनर्विवाह योजना का लाभ नहीं लेना चाहती। दरअसल में जिले के सामाजिक ताने-बाने में आज भी बदलाव नहीं आ रहा। यही कारण है कि विधवाओं की मांग को सिंदूर व उपहार राशि को आवेदकों का इंतजार है।
प्रोत्साहन के बावजूद उनके हाथ थामने वाले कम ही नजर आ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि विधवाओं के कल्याण एवं विवाह को लेकर सामाजिक न्याय व अधिकारिकता विभाग की ओर से वर्ष 2007-08 में विधवा पुनर्विवाह उपहार योजना शुरू की गई थी, लेकिन प्रचार, शिक्षा की कमी व सामाजिक बंधन के आगे योजना दम तोड़ती नजर आ रही है।
4 साल में मात्र दो लाभार्थी बीते चार वर्षों में विधवा विवाह उपहार योजना का लाभ महज 2 महिलाओं ने ही उठाया है। इसके पीछे कारण कुछ भी रहा हो, लेकिन विभाग की ओर से योजना का प्रचार नहीं करने से आज भी कई लोगों को इसकी जानकारी नहीं है।
यह है योजना सामाजिक न्याय एवं अधिकारिकता विभाग की ओर से विधवा विवाह उपहार योजना नियम 2007 बनाया गया है। इसके तहत ऐसी महिला, जिसके विवाह के बाद पति का देहान्त हो गया हो गया और वह वैधव्य जीवन व्यतीत कर रही हो एवं उसने पुनर्विवाह नहीं किया हो।
उस महिला को लाभान्वित करने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा 18 से 50 वर्ष तक की महिला के फिर से विवाह करने की स्थिति में विभाग की ओर से शादी के मौके पर उपहार स्वरूप पन्द्रह हजार रुपए देने का प्रावधान है। इसके लिए महिला को विवाह पंजीयन प्रमाण-पत्र व पीपीओ (पेंशनर पेमेन्ट ऑर्डर) जमा कराना जरूरी है।
कुरीतियां भी हावी सामाजिक कुरीतियों के साथ अशिक्षा भी योजना में बाधक है। कई मिथ्या मान्यताएं भी हैं। ऐसे में सामाजिक अवधारणा के चलते महिलाएं फिर से शादी नहीं कर पाती। शिक्षा की कमी व ग्रामीण परिवेश में कई बाल विधवा चाहकर भी पुनर्विवाह नहीं कर सकती। ये बात विभागीय आंकड़ों से भी साबित हो रही है।