2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले उपचुनाव को सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा है। हालांकि, इस चुनाव में हार-जीत का सत्तारूढ़ दल पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन जीतने वाली पार्टियों को मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल का मौका मिल जाएगा। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो विधानसभा चुनाव 2022 से पहले यह चुनाव एक तरह से अपनी ताकत दिखाने का टेस्ट होगा। यही वजह है कि सत्ता पक्ष समेत सभी विपक्षी पार्टियां भी इसे पूरी ताकत से लड़ना चाहती हैं। इससे पता चल जाएगा कौन कितने पानी में है।
उपचुनाव में न सिर्फ बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, बल्कि 8 साल से सत्ता से दूर रही बसपा पहली बार उपचुनाव में उम्मीदवार उतारे हैं। उपचुनाव वाली 7 सीटों में से 6 पर बीजेपी का जबकि एक पर समाजवादी पार्टी का कब्जा था। बसपा और कांग्रेस अगर एक भी सीट पर कब्जा कर पाए तो यह उनके लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होगी। उपचुनाव में सभी दल अलग-अलग ताकत आजमा रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों की तरह उपचुनाव में सपा और रालोद का गठबंधन बरकरार है। समझौते के तहत सपा छह और रालोद एक सीट पर चुनाव लड़ेगी।