भगवत गीता एक ऐसी पाक किताब जिसे जितनी बार पढ़ा जाए, रूह को सुकून और ताजगी मिलती है। इसके फलसफे का आवाम पर गहरा असर है। दुनिया को हसीन और नेक बनाते हुए आत्मा को परमात्मा से मिलाने की बात करता है। मशहूर शायर अनवर जलालपुरी ने श्रीमद्भगवद्गीता को उर्दू शायरी का लिबास पहना दिया था। गीता के 701 श्लोकों को 1761 उर्दू अशआर में ढाल कर एक नए पाठक वर्ग को गीता की गहराइयों से रूबरू होने का मौका दिया। लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब को दर्शाती ‘उर्दू शायरी में गीता’ नाम की इस किताब, इसके मकसद और प्रयोग के बारे में अनवर जलालपुरी ने अमर उजाला से तफसील से बताया था।
‘मैं जा रहा हूं मेरा इंतजार मत करना, मेरे लिए कभी भी दिल सोगवार मत करना’ लिखने वाले शायर अनवर जलालपुरी अब हम लोगों के बीच नहीं हैं। मुशायरों की दुनिया में अपनी मख़मली आवाज़ से लोगों के दिलों को जीतने वाले नामचीन शायर अनवर जलालपुरी ब्रेन हेमरेज के प्रभाव से हार गए। लगभग 40 साल तक लोगों के दिलों को जोड़ने वाले शायर अनवर का इस तरह छोड़कर चला जाना साहित्य जगत, उर्दू अदब के लिए गहरा धक्का है। अनवर साहब की लिखी शायरी को चार पीढ़ियों ने गुनगनाया है। जिसमें मुन्नवर राणा, बशीर बद्र, वसीम बरेलवी, नवाज देवबंदी तक ने अनवर साहब की शायरी लोगों तक पहुंचाई है।
उर्दू शायरी में किया अनुवाद
भगवत गीता का उर्दू शायरी में अनुवाद करके अनवर साहब ने दोनों मजहबों के बीच एक पुल बनाने का काम किया है। मुशायरों की जान माने जाने वाले जलालपुरी ने ‘राहरौ से रहनुमा तक‘ ‘उर्दू शायरी में गीतांजलि‘ तथा भगवद्गीता के उर्दू संस्करण ‘उर्दू शायरी में गीता’ पुस्तकें लिखीं जिन्हें बेहद सराहा गया था। उन्होंने ‘अकबर द ग्रेट’ धारावाहिक के संवाद भी लिखे थे। उत्तर प्रदेश में आंबेडकर नगर जिले के जलालपुर कस्बे में पैदा होने वाले अनवर की शुरू से ही तुलनात्मक अध्ययन में खासी दिलचस्पी रही है।
अंग्रेजी और उर्दू में अच्छी पकड़ रखने वाले अनवर अहमद का शौक उर्दू में शायरी करने को लेकर जुनून की हद तक रहा है और इसी शौक को पूरा करने के लिए अनवर साहब जब जलालपुर और आसपास के कस्बों में अपने शेरों शायरी को लोगों तक पहुंचाना शुरू किया तो लोगों ने उन्हें एक नया नाम अनवर जलालपुरी का दे दिया और अपने जीवन पर्यंत अनवर शाहब अनवर जलालपुरी के नाम से ही पहचाने जाते रहे।
शेरों शायरी के साथ-साथ अनवर जलालपुरी की पकड़ शब्दों पर ऐसी थी और उनकी प्रस्तुति का अंदाज ऐसा हुआ करता था कि कड़वी से कड़वी बात में भी उनकी जुबान लोगों के दिलों में रस घोलती नजर आती थी। इसी वजह से अनवर जलालपुरी शायरी के साथ मंचों का संचालन भी करने लगे और आखिरी समय में इनके द्वारा संचालन अधिक किया जाने लगा।
अनवर जलालपुरी सरल साहित्य के रूप में जाने जाते रहे और हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार देववाणी के रूप में जानी जाने वाली धार्मिक पुस्तक गीता का उन्होंने उर्दू में अनुवाद किया, जिससे उर्दू भाषा के जानने वाले लोग भी गीत के महात्म्य को समझ सकें। इसके अलावा उन्होंने दर्जनों किताबें भी लिखी हैं, जिसमें प्रमुख रूप से जागती आंखें, खुशबू की रिश्तेदारी, खारे पानियों का सिलसिला, प्यार की सौगात, अपनी धरती अपने लोग आदि काफी मशहूर हुई हैं।
एक साधारण से परिवार और साधारण से कस्बे में जन्मे असाधारण प्रतिभा के धनी अनवर जलालपुरी का नाम उर्दू साहित्य में इतना आगे बढ़ गया कि कुछ साल पहले नसीरुद्दीन शाह की फ़िल्म डेढ़ इश्किया में एक मुशायरे की सीन में नसीरुद्दीन शाह के साथ अनवर जलालपुरी फील में संचालन करते नजर आए थे। इसके अलावा 1996 में टीवी जगत में चर्चित सीरियल अकबर द ग्रेट में एक चर्चित गीत ” हम काशी काबा के राही, हम क्या जाने झगड़ा बाबा अपने दिल मे सबकी उल्फत, अपना सबसे रिश्ता बाबा।। से काफी प्रसिद्धि प्राप्त की थी।
लखनऊ और जलालपुर में लगी चाहने वालों की भीड़
उर्दू शायर अनवर जलालपुरी के निधन की खबर मिलते ही लखनऊ के हुसैनगंज स्थित उनके आवास पर लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। उधर, जलालपुर स्थित उनके पैतृक आवास पर भी लोग शोक जताने पहुंचे।