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हलाला पर वसीम रिजवी का बयान- तलाकशुदा औरतों का हो रहा शारीरिक शोषण

locationलखनऊPublished: Mar 06, 2018 05:41:37 pm

Submitted by:

Prashant Srivastava

अक्सर अपने बयानों को लेकर चर्चित शिया वक्फ बोर्ड के चेयरपर्सन वसीम रिजवी ने निकाह हलाला को लेकर बड़ा बयान दिया है।

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लखनऊ. अक्सर अपने बयानों को लेकर चर्चित शिया वक्फ बोर्ड के चेयरपर्सन वसीम रिजवी ने निकाह हलाला को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि हलाला प्रथा कुरआन मजीद में इसलिए लिखी गई है कि लोग जल्दी तलाक न दें लेकिन इसके नाम पर कई वर्षों से तलाकशुदा औरतों का शारीरिक शोषण किया जा रहा है। उनके मुताबिक निकाह हलाला के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा अपनी जिम्मेदारी न निभाए जाने का ही नतीजा है।
जानें क्या बोले वसीम रिजवी

शिया वक्फ बोर्ड के चेयरपर्सन वसीम रिजवी ने प्रेस नोट जारी करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस्लाम की आड़ पर मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों का संज्ञान लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि हलाला का मतलब यह है कि अगर कोई भी मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को तीसरी बार जायज तरीके से तलाक दे देता है तो वह तलाकशुदा पत्नी उस व्यक्ति पर हराम हो जाती है। अब वह उससे दोबारा निकाह तब तक नहीं कर सकता जब तक कि उस महिला का किसी और से निकाह न हो जाए और उससे उसका तलाक न हो जाए।
‘हलाला के नाम पर शोषण’

रिजवी ने हलाला पर बोलते हुए कहा कि इसका यह मतलब नहीं है कि तलाक देने वाला अपनी तलाकशुदा पत्नी का किसी दूसरे से निकाह खुद करवाए और दूसरे पति से शारीरिक संबंध बनवाने के बाद उससे तलाक दिलवा कर फिर दोबारा स्वयं निकाह कर ले। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि कुछ मुस्लिम मुल्लाओं ने ज्यादा तर अपनी हवस के लिए हलाला को अय्याशी का वैध तरीका बना लिया है। उनका कहना है कि इस्लामिक सिद्धातों के अनुसार वह निकाह वैध निकाह नहीं है जो तलाक की नियत से किया जाए।
बता दें कि सोमवार को निकाह हलाला और बहुविवाह को असंवैधानिक घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) ऐप्लिकेशन ऐक्ट 1937 की धारा-2 को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए जो बहु विवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है। याचिकाकर्ता ने कहा था कि निकाह हलाला और बहुविवाह संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), 15 (कानून के सामने लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं) और अनुच्छेद-21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन करता है।

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