आजादी के बाद से लेकर अब तक खादी की बिक्री पर किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं लगा। खादी के उपयोग के प्रति लोगों के घटते रुझान को देखते हुए वस्त्र मंत्रालय, खादी ग्रामोद्योग संगठनों ने ग्राहकों को 25 फीसदी तक छूट देना शुरू किया। लेकिन एक जुलाई से खादी पर जीसटी लागू कर दिया। एेसे में ग्राहकों को खादी का कपड़ा खरीदने पर 5 फीसदी, 1000 रुपए से अधिक मूल्य वाले खादी के रेडीमेड परिधान खरीदने पर 12 फीसदी व खादी के पोलीवस्त्र खरीदने पर 18 फीसदी टैक्स अदा करना होगा। सरकार ने सिर्फ राष्ट्रीय ध्वज, गांधी टोपी, सूत को जीएसटी से मुक्त रखा है।
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हाड़ौती में 500 से अधिक कतिन बुनकर हाड़ौती में खादी के वस्त्र बनाने वाले करीब 500 से अधिक कतिन बुनकर हैं। ये कोटा, सांगोद, मांगरोल, केशवरायपाटन, कापरेन, रोटेदा, बूंदी, बूंदी का गोठड़ा, दबलाना, रानीपुरा, देई, हिंडोली आदि क्षेत्रों में खादी के कपड़े, दरी, फर्श, दरी पट्टी, कोटा डोरिया साड़ी, पोली वस्त्र, धोती, गमछा आदि बुनते हैं। यह हर साल करीब 90 लाख की लागत मूल्य का कपड़ा तैयार कर लेते हैं। यह कपड़ा विभिन्न राज्यों, शहरों में संचालित खादी भंडारों के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचता है।
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बुनकरों पर रोजगार का हो संकट हाड़ौती खादी ग्रामोद्योग समिति, लाडपुरा के सचिव कमल किशोर शर्मा ने कहा कि आजादी के बाद से अब तक खादी पर किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं लगा। यहां तक कि वस्त्र मंत्रालय, खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा खादी कपड़े खरीदने पर ग्राहको को छूट दी गई। लेकिन एक जुलाई से खादी पर 5 से 18 फीसदी जीएसटी लागू कर दिया। इससे खादी महंगी होने से लोगों का इसके प्रति रुझान कम होगा। इससे खादी के कपड़े बुनकर पेट पाल रहे कतिन-बुनकरों के रोजगार पर संकट के बादल मंडराएंगे।