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टीबी के खिलाफ उद्यमियों ने शुरू की जंग, श्रमिकों को बचाने के लिए अपनाया ईएलएम

locationलखनऊPublished: Jul 02, 2019 09:34:32 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

– कानपुर के उद्यमियों ने दिखाई तत्परता, श्रमिकों को बचाएंगे टीबी से – श्रम आयुक्त ने कहा – अगर मजदूर खुश है तो मालिक भी खुश रहेगा- रीच संस्था स्वास्थ्य, श्रम विभाग और उदमियों को लायी एक मंच पर – टीबी की भ्रांतियों को दूर कर जागरुकता लाने के लिए अपनाया ईएलएम

What is EMPLOYEE LED MODEL ELM ki puri jankari

टीबी के खिलाफ उद्यमियों ने शुरू की जंग, श्रमिकों को बचाने के लिए अपनाया ईएलएम

लखनऊ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सन 2025 तक देश से क्षय रोग यानि टीबी के पूरी तरह से खात्मे के संकल्प को साकार करने में जहां तमाम सरकारी विभाग आगे आए हैं वहीं अब उद्योगपतियों ने भी खुले मन से इस बीमारी को खत्म करने में पूर्ण सहयोग देने का निर्णय लिया है। इसकी शुरुआत कानपुर जिले से हो चुकी है। यहां के नौ उद्योगपतियों ने बाकायदा सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करके फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों को टीबी जैसी बीमारी से बचाने के लिए हरसंभव कोशिश करने का आश्वासन दिया है। पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम का लाभ श्रमिकों को पहुंचाने और टीबी से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने के लिए एम्प्लाई एलईडी मॉडल (EMPLOYEE LED MODEL-ईएलएम) के प्रारूप पर यह अनुबंध किया गया है।

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उद्यमियों को इस दिशा में कदम आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करने और देश को टीबी मुक्त करने के क्षेत्र में हर स्तर पर कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करने के लिए रीच (REACH) नामक संस्था आगे आई है। संस्था ने अभी हाल में ही श्रम विभाग, स्वास्थ्य विभाग और इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आईआईए) के साथ कानपुर के प्रमुख उद्यमियों को एक मंच पर लाकर टीबी मरीजों के हित में काम करने को राजी कर लिया है। इसके अलावा पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत क्षय रोग की देखभाल और नियंत्रण को लेकर संवेदीकरण (सेंसिटाइज़) का कार्य भी चल रहा है। इसका असर यह रहा कि कानपुर के उन उद्योगपतियों ने टीबी मरीजों की समुचित देखभाल और जागरूकता का काम करने को राजी हैं जिनकी फैक्ट्रियों में इस बीमारी के चपेट में श्रमिकों के आने की संभावना सबसे अधिक रहती है।

सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में आर॰ एस॰ पी॰ एल॰ ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज़ प्रमुख है, जिसके अंतर्गत घड़ी डिटर्जेंट, नमस्ते इंडिया जैसे प्रमुख ब्रांड आते हैं। इसके अलावा कानपुर फर्टिलाइजर एवं सीमेंट लिमिटेड, प्रभु कृपा, माया पालिमर प्राइवेट लिमिटेड, लेक्सेस टेक्नोग्राफिक्स, स्मार्क फार्मास्यूटिकल्स और मिनिरल ऑयल कार्पोरेशन इस अभियान से जुड़ गयी हैं।

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कानपुर में इसको लेकर आयोजित कार्यशाला में रीच संस्था के सीनियर मैनेजर डॉ॰ पंकज ढींगरा ने टीबी और एम्प्लाई एलईडी मॉडल (EMPLOYEE LED MODEL-ईएलएम) पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होने कहा कि इस मॉडल के तहत सबसे पहले तो फैक्ट्रियों में ऐसा माहौल तैयार करना है ताकि कोई भी टीबी की जद में आने ही न पाये। इसको लेकर खुली चर्चा भी हुई जिसमें आईआईए उपाध्यक्ष आलोक अग्रवाल ने कहा कि उनका संगठन हमेशा उद्योगों एवं मजदूरों के हित में कार्य कर रहा है। पिछले कई वर्षों से हर मंगलवार को आईआईए द्वारा नि:शुल्क हेल्थ कैंप लगाया जाता है।

श्रम आयुक्त अनिल कुमार ने कहा कि टीबी चैंपियन का नाम बदलकर एंड टीबी या एलीमिनेट टीबी चैंपियन कर देना चाहिए। टीबी चैंपियन कमल किशोर ने बहुत ही सहज ढंग से कहा कि -“अगर मजदूर खुश है तो मालिक भी खुश रहेगा” । इस पर श्रम आयुक्त ने कहा कि यह एकदम सही बात है कि मजदूर का स्वास्थ्य खराब होगा तो वह पूरे मनोयोग से काम नहीं कर पाएगा। इसलिए मजदूरों को स्वस्थ रखना किसी भी व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए बहुत ही जरूरी है। टीबी मरीजों को निक्षय पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान 500 रुपए प्रति माह देने की भी व्यवस्था कारगर साबित हुई है। डिप्टी एसटीओ डॉ॰ त्रिशी सक्सेना ने भी उद्यमियों की इस मुहिम की जमकर तारीफ की है और उनको हरसंभव मदद की पेशकश की है। उनका कहना है कि अब सीबीनाट जैसी मशीन आ गयी है जो दो घंटे में जांच रिपोर्ट दे देती है। इसके अलावा मरीजों को इलाज के दौरान हर माह 500 रुपए पोषाहार के लिए मिलते हैं।

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रीच संस्था की स्टेट को-आर्डीनेटर मुक्ता शर्मा ने एम्प्लाई एलईडी मॉडल (EMPLOYEE LED MODEL-ईएलएम) पर अगली कार्ययोजना बनाए जाने में सहयोग का आश्वासन दिया है। कार्यक्रम को सफल बनाने में संस्था के प्रोग्राम आफिसर मो॰ अनस कुरैशी, मेंटर मृदुलिका शर्मा और टीबी चैंपियन कमल किशोर की अहम भूमिका रही।

क्या है ईएलएम

ईएलएम उद्योगों/ कारख़ानों/ चाय बागानों में काम करने वाले लोगों तक पहुँचने और मौजूदा प्रतिष्ठानों में टीबी के प्रति जागरूकता और देखभाल को एकीकृत करने के लिए एक व्यापक रणनीति है। इसके पीछे सोच यह है कि कर्मचारी के बीमार होने से जहां उत्पादन पर असर पड़ता है वहीं उसकी गाढ़ी कमाई भी इलाज पर खर्च होती है। इसलिए ऐसा माहौल तैयार किया जाये ताकि कर्मचारी टीबी की गिरफ्त में आने से बच सकें।

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