आखिर लखीमपुर में बाघों को कौन मार रहा?
लखीमपुर बाघों की कब्रगाह बन रहा है। रविवार को लखीमपुर के भीरा रेंज में एक बाघिन की सड़ी गली लाश मिलने से हड़कम्प मची हुई थी। सोमवार की सुबह किशनपुर सेंचुरी में एक टाइगर के बच्चे का आधा धड़ मिला। माना जा रहा है की यह बच्चा मेल है। दो दिन में सामने आई इन घटनाओं को टाइगर विशेषज्ञ सामान्य घटना नहीं मान रहे
लखनऊ. लखीमपुर बाघों की कब्रगाह बन रहा है। रविवार को लखीमपुर के भीरा रेंज में एक बाघिन की सड़ी गली लाश मिलने से हड़कम्प मची हुई थी। सोमवार की सुबह किशनपुर सेंचुरी में एक टाइगर के बच्चे का आधा धड़ मिला। माना जा रहा है की यह बच्चा मेल है। दो दिन में सामने आई इन घटनाओं को टाइगर विशेषज्ञ सामान्य घटना नहीं मान रहे। आरोप लग रहे हैं की बाघ के तश्करों की नज़र लखीमपुर के बाघों पर है। हालांकि किशनपुर सेंचुरी और भीरा रेंज में मिले बाघों के शव को देख दुधवा नेशनल पार्क के निदेशक संजय सिंह ने इसमें किसी तस्कर का हाथ होने से इंकार किया है।
संजय सिंह ने बताया की किशनपुर सेंचुरी में मारे गए टाइगर कब की हत्या मेल टाइगर ने की है। अक्सर मेल टाइगर फीमेल की तरफ आकर्षित होता है तो उसके बीच जो भी आता है उसको अपने रास्ते से हटाने की कोशिश करता है। ऐसा ही हुआ होगा फीमेल के लिए किसी बाघ ने बच्चे पर हमला बोल दिया। हमले में बच्चे का पिछला हिस्सा धड़ से अलग हो गया। संजय सिंह का मानना है की यह घटना रविवार देर रात को हुई है ऐसा लग रहा है। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
दुधवा नेशनल पार्क और पीलीभीत शिकारियों का बना गढ़
पूरी दुनिया में सेव टाइगर की मुहिम चल रही है। अपने उत्तर प्रदेश में टाइगर को बचाने वाला वन विभाग महकमा हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है। वन विभाग की लापरवाही का नतीजा यह है कि यूपी के जंगलों से एक दशक में बाघों की संख्या 278 से घटकर 118 रह गई। जंगलों पर कमजोर निगरानी तंत्र का खामियाजा बेजुबान बाघों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है। प्रदेश के जंगल में सबसे ज्यादा बाघों पर मुसीबत दुधवा नेशनल पार्क और पीलीभीत टाइगर रिजर्व पर मंडरा रही है। यहां के जंगल नेपाली शिकारियों के लिए सैरगाह बन चुके हैं। पीलीभीत के जंगल में शारदा नहर में कई बाघों के शव बीते साल मिले मिले जो इशारा कर रहे हैं यहां जंगल में जंगलराज चरम पर है।
पीलीभीत में 23 अप्रैल 2015 को शारदा नहर में बाघ का शव बहता हुआ मिला। यह नहर पीलीभीत टाइगर रिजर्व के दक्षिणी-पूर्वी छोर के पास बहती है। इस घटना से जंगल में हड़कम्प मचा। अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे। इस घटना पर वन विभाग के अफसरों ने बाघ की मौत का कारण उसके फेफड़े में पानी भर जाना बताया। इसके बाद मामले को रफा दफा करने की कोशिश की गई। दुधवा नेशनल पार्क में मई के महीने में शिकारियों द्वारा बाघ को पकड़ने वाला तार का जाल मिला। जिस पर वहां के अधिकारियों ने छिपाने की कोशिश की। मामला यह कहकर दबाने की कोशिश की गई कि वहां कर्मचारी काम कर रहे थे जो अपना तार भूल गए। यह चंद मामले हैं जो दुधवा और पीलीभीत के जंगल में बाघों के शिकार की ओर इशारा करते हुए मिले।
पिछले चार साल में पूरे देश में बाघों की संख्या में तकरीबन 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ। यूपी के जंगल को यह खुशी नसीब नहीं हुई। पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 2010 में 38 बाघ थे जो वर्ष 2014 की गणना में 28 ही पाए गए। इसी तरह दुधवा नेशनल पार्क में 2010 की गणना में 30 के करीब थे जहां पर 20 की संख्या में ही बाघ रह गए हैं।
नदियों का कटान दुधवा और पीलीभीत के लिए मुसीबत
दुधवा नेशनल पार्क में नेपाल से आने वाली मोहना नदी के कटान और पीलीभीत में शारदा नहर के कटान से यहां के जंगल का एक बड़ा हिस्सा बड़े भूभाग में तब्दील हो चुका है। इस भूभाग में वन कर्मियों का जाना मुश्किल हो चुका है। इसी क्षेत्र में शिकारियों ने अपना ठिकाना बनाया है जहां से वह जंगल में घुसकर बाघों और अन्य वन्यजीवों के शिकार को अंजाम देते हैं। दुधवा में बाघ के अलावा गैंडे, हिरन, तमाम पक्षीयों की तस्करी हो रही है। वहीं पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघ, तेंदुए, जंगली बिल्ली के साथ यहां की 325 प्रजातियों पर संकट मंडरा रहा है। बीते दिनों पीलीभीत के थाना क्षेत्र हजारा से कई बार शिकारियों और तस्करों को दबोचा जा चुका है।
ऐसे काम करते हैं शिकारी
पीलीभीत के शारदा नदी के दक्षिणी हिस्से में जंगल है। इस जंगल के उत्तर में नेपाल है। नेपाल के रास्ते चीन के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बाघ की तस्करी होती है। पीलीभीत के जंगल में बसने वाले गद्दी जाति के लोग बाघ के शिकार में निपुण होते हैं। वह बाघ के शिकार के लिए जहर का उपयोग करते हैं। यह जहर बाघ के पेट में जलन पैदा करता है और वह पानी की ओर भागता है। अगर बाघ मैदान में मरा तो उसे शिकारी उठा ले जतो हैं और अगर वह शारदा नहर में मरता है तो उसका शव लेना शिकारियों के लिए मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि पीलीभीत में बीते एक वर्ष में चार मामले ऐसे पाए गए हैं जहां बाघ का शव शारदा नहर के किनारे मिला है। दुधवा नेशनल पार्क के आस पास रहने वाले थारू जनजाति शिकार करन में लिप्त पाए गए हैं। इनके रिश्तेदार नेपाल में बसे हैं जिनकी मदद से वह शिकार को अंजाम देते हैं।
वन कर्मियों की मिलीभीगत
2011 और 2013 में बिजनौर के जंगल में तस्करों के गैंग से बाघ की आधा दर्जन खाल बरामद हुई थी। पकड़े गए लोगों ने दुधवा नेशनल पार्क के अंदर शिकारियों के गिरोह के सक्रिय होने की बात कही थी। मगर जब एसटीएफ ने पार्क में खोज बीन की तो वहां पर उन्हें ऐसी कुछ नहीं मिला। वर्ष 2015 फरवरी में नेपाल पुलिस ने दो भारतीयों को पकड़ा जिनके पास बाघ की खाल बरामद हुई थी। इन मामलों में वन विभाग के कर्मचरियों के नाम सामने आए मगर उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया।
लखनऊ के वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट और टाइगर के संरक्षण के लिए काम कर रहे कौशलेंद सिंह ने बताया कि बाघ को बचाने के लिए टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स बनना था। मगर सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाए गया। अगर इस ओर वर्ष 2009 में ही ध्यान दे दिया गया होता तो बाघों के शिकार और तस्करी में कमी आती। बाघों की संख्या घटती नहीं। उन्होंने बताया कि प्रदेश में कई बार वन विभाग के अफसरों ने यह दावा कि पीलीभीत और दुधवा ने टाइगर के बच्चे देखे गए। आखिर जब टाइगर के बच्चे हुए तो इनकी संख्या में इजाफा क्यों नही हुआ।