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विधानसभा चुनाव 2022 अकेले लड़ेगी सपा, यूं ही बार-बार यह बयान नहीं दे रहे हैं अखिलेश, यह है बड़ी वजह

locationलखनऊPublished: Feb 11, 2020 02:56:55 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अखिलेश यादव की बार-बार कहने के पीछे उनका अपना राजनीतिक मकसद है

akhilesh yadav

अखिलेश यादव के अकेले चुनाव लड़ने के बार-बार ऐलान के पीछे एक बड़ी वजह उनका अब तक का राजनीतिक अनुभव रहा है

लखनऊ. समाजवादी पार्टी 2022 का विधानसभा चुनाव अकेले दम पर लड़ेगी। बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद से सपा प्रमुख अखिलेश यादव कई बार यह बयान दे चुके हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो ऐसा बार-बार कहने के पीछे उनका अपना राजनीतिक मकसद है। वह नहीं चाहते कि उन मुस्लिम वोटर्स में सेंध लगे, जो एक बार फिर सपा के पक्ष में लामबंद होते दिख रहे हैं। सीएए और एनआरसी के खिलाफ यूपी सहित देश भर में मुस्लिम प्रदर्शन कर रहे हैं। इस मुद्दे पर सपा-बसपा और कांग्रेस भी सरकार की खिलाफत कर रही है। समाजवादी पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि इस बार मुस्लिम वोटर्स सपा का साथ देंगे। साथ ही उन्हें डर है कि बसपा और कांग्रेस इसमें सेंध न लगा दे।
अखिलेश यादव के अकेले चुनाव लड़ने के बार-बार ऐलान के पीछे एक बड़ी वजह उनका अब तक का राजनीतिक अनुभव रहा है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से गठबंधन किया था। चुनाव प्रचार के दौरान अच्छे लड़कों की दोस्ती ने खूब सुर्खियों बटोरी थीं, बावजूद बीजेपी सूबे में अकेले दम पर कमल खिलाने में कामयाब रही। इस चुनाव में बीजेपी को 312 और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) को 09 सीटें मिली थीं। गठबंधन के बावजूद सपा 47 और कांग्रेस 07 सीटों पर सिमट गई थी। बसपा को भी मात्र 19 सीटें मिली थीं।
नहीं मानी थी मुलायम की भी बात
विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस का गठबंधन पूरी तरह फ्लॉप रहा, बावजूद वर्ष 2019 के लोकसभा में अखिलेश ने एक बार फिर चिर-प्रतिद्वंदी मायावती की बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया। मुलायम समेत पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने मना किया, बावजूद अखिलेश नहीं माने। हालांकि, बाद में मुलायम संयुक्त रैली में चुनाव प्रचार करने भी गये और मायावती के लिए वोट भी मांगे। सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार भी नतीजे अपेक्षित नहीं रहे। बीजेपी एक बार फिर बाजी जीतने में सफल रही। इस चुनाव में बसपा ने 10 और सपा 05 सीटें ही जीत पाई। बीजेपी को 62 और सहयोगी पार्टी अपना दल को 02 सीटें मिलीं। कांग्रेस सिर्फ रायबरेली सीट ही बचा सकी।
गठबंधन की राजनीति से दूर रहने की सलाह
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो गठबंधन कांग्रेस से हो या फिर बहुजन समाज पार्टी से नुकसान समाजवादी पार्टी को ही हुआ। चुनाव में हार के बाद अखिलेश ने तमाम रिव्यू बैठकें की, जिसमें यही कहा गया कि पार्टी को गठबंधन का खामियाजा भुगतना पड़ा। आम चुनाव में गठबंधन कर उन्होंने हाशिये पर जा रही बसपा को एक बार फिर संजीवनी दे दी। विश्लेषकों का मानना है कि अगर अखिलेश बसपा से गठबंधन नहीं करते तो शायद लोकसभा चुनाव में पार्टी और बेहतर प्रदर्शन करती। शायद इसीलिए अखिलेश यादव अब गठबंधन की राजनीति से तौबा कर रहे हैं।
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