विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस का गठबंधन पूरी तरह फ्लॉप रहा, बावजूद वर्ष 2019 के लोकसभा में अखिलेश ने एक बार फिर चिर-प्रतिद्वंदी मायावती की बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया। मुलायम समेत पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने मना किया, बावजूद अखिलेश नहीं माने। हालांकि, बाद में मुलायम संयुक्त रैली में चुनाव प्रचार करने भी गये और मायावती के लिए वोट भी मांगे। सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार भी नतीजे अपेक्षित नहीं रहे। बीजेपी एक बार फिर बाजी जीतने में सफल रही। इस चुनाव में बसपा ने 10 और सपा 05 सीटें ही जीत पाई। बीजेपी को 62 और सहयोगी पार्टी अपना दल को 02 सीटें मिलीं। कांग्रेस सिर्फ रायबरेली सीट ही बचा सकी।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो गठबंधन कांग्रेस से हो या फिर बहुजन समाज पार्टी से नुकसान समाजवादी पार्टी को ही हुआ। चुनाव में हार के बाद अखिलेश ने तमाम रिव्यू बैठकें की, जिसमें यही कहा गया कि पार्टी को गठबंधन का खामियाजा भुगतना पड़ा। आम चुनाव में गठबंधन कर उन्होंने हाशिये पर जा रही बसपा को एक बार फिर संजीवनी दे दी। विश्लेषकों का मानना है कि अगर अखिलेश बसपा से गठबंधन नहीं करते तो शायद लोकसभा चुनाव में पार्टी और बेहतर प्रदर्शन करती। शायद इसीलिए अखिलेश यादव अब गठबंधन की राजनीति से तौबा कर रहे हैं।