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क्या फिर साथ आएंगे बसपा और भाजपा, राज्यसभा चुनाव से मिले संकेत

locationलखनऊPublished: Oct 29, 2020 01:06:47 pm

2014 से लगातार हर चुनाव में हार के बाद बसपा को सियासत में बने रहने के लिये चाहिये संजीवनी
बीजेपी भी लगातार आगे भी दलित वोटों को अपने साथ बनाए रखने की कवायद में जुटी है
राज्य सभा चुनाव के समीकरणों को राजनीतिक पंडित भविष्य में दोनों के साथ आने का संकेत मान रहे हैं

Mayawati Yogi Adityanath

मायावती योगी आदित्यनाथ

लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजनीति में क्या इतिहास खुद को दोहराएगा और भाजपा-बसपा फिर एक साथ आएंगे? ये वो सवाल है जो इस समय यूपी के सियसी गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है। राज्यसभा चुनाव को लेकर बसपा की रणनीति को भविष्य में भाजपा और बसपा के बीच नजदीकियां बढ़ने का इशारा माना जा रहा है। दलित वोटों को अपने साथ जोड़े रखने की कवायद में जुटी बीजेपी के लिये यह बेहद फायदे का सौदा हो सकता है तो अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही बसपा के लिये शायद संजीवनी। राज्यसभा चुनाव में संख्या बल न होने के बावजूद भी रामजी गौतम को मैदान में उतारने को इसी का हिस्सा माना जा रहा है। ये संकेत आगे जाकर क्या गुल खिलाएंगे ये तो अभी काल के गर्भ में है, लेकिन भाजपा और बसपा की नजदीकियों को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है।

 

राज्यसभा की 10 सीटों पर होने वाले चुनाव में बसपा जीत के आंकड़े से कोसों दूर है, बावजूद इसके सबको चौंकाते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने रामजी गौतम को उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतार दिया। फिर एक और चौंकाने वाली बात हुई कि भाजपा ने नौ की जगह केवल आठ प्रत्याशी ही मैदान में उतारे। समाजवादी पार्टी ने निर्दलीय प्रकाश बजाज को आगे किया और बुधवार को बसपा के पांच विधायकों ने बगावत कर दी। बसपा के विधायकों की संख्या और कम हो गई, बावजूद इसके तर्कों के आधार पर रामजी गौतम का पर्चा वैध ठहरा दिया गया। उधर सपा समर्थित प्रकाश बजाज का पर्चा भी खारिज हो गया। इसके बाद अब आठ बीजेपी, एक सपा व एक बसपा के उम्मीदवारों का चुना तय माना जा रहा है। ये सारी कड़ियां जोड़कर इसके संकेत और मायने तलाशते राजनीतिक पंडित भविष्य में यूपी में नए गठजोड़ की संभावना जता रहे हैं।

 

दसअसल बसपा ने भाजपा के कैंडिडेट ऐलान के पहले ही रामजी गौतम को राज्यसभा के लिये मैदान में उतार दिया। हालांकि बसपा 36 विधायकों के जरूरी आंकड़े से काफी दूर थी। इसी बीच भाजपा ने भी नौ के बजाय आठ प्रत्याशी ही उतारे। गणित कुछ इस तरह लगाई जा रही थी कि बसपा के 17 और भाजपा के बचे हुए 17 विधायकों के साथ अगर 3 निर्दलीयों का सथ मिलने पर रामजी गौतम को किसी तरह जीत हासिल हो सकती थी। हालांकि अभी भाजपा के पास 9 अपना दल के, कांग्रेस के 2 बागी विधायक और सपा से अलग हुए एक विधायक मिलाकर 12 विधायक और भी थे। भाजपा की मदद से बसपा का प्रत्याशी राज्यसभा पहुंच सकता था। इसके बाद सपा ने भी चाल चली और प्रकाश बजाज को आगे किया तो उधर बसपा के 5 विधायकों ने भी बगावत कर दिया। सपा की कोशिश थी कि वोटिंग हो और निर्दलीय व सुभासपा के विधायक उसके पक्ष में आ जाएं। पर इन सबके बावजूद रामजी गौतम का पर्चा खारिज नहीं हुआ। हालांकि प्रकाश बजाज का पर्चा खारिज होने से सपा की रणनीति फेल हो गई।


बसपा को संजीवनी की जरूरत

2014 के लोकसभा चुनावों से मिली हार के बाद हुए हर एक चुनाव में बसपा की लगातार हार के चलते अब उसे सियासत में अपनी मौजूदगी बचाए रखने के लिये संजीवनी की जरूरत है। ऐसे में अब मायावती की नजरें आने वाले 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों पर गड़ी हैं। हालांकि भाजपा अब भी सूबे में सबसे आगे है और सपा खुद को उसका विकल्प साबित करने के लिये अभी से चुनाव की रणनीति में जुट गई है। उधर कांग्रेस खुद को लड़ाई में लाने के लिये प्रियंका गांधी के नेतृत्व में यूपी में काफी पहले से सक्रिय हो चुकी है। हालांकि बसपा की तैयारियां अभी जमीन पर नहीं दिख रही हैं। कैडर वोट वाली बसपा और भाजपा अगर एक बार फिर से साथ आते हैं तो यह मिलन यूपी की राजनीति में नया गुल खिला सकता है।

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