बेग़म ने रखी थी महिला कुश्ती की नींव
लखनऊ में महिलाओं की कुश्ती की परंपरा बहुत पुरानी है। करीब 200 साल पहले से यह कुश्ती हो रही है। इसे यहां की बोलचाल में हापा कहा जाता है। सावन मास में यह कुश्ती होती है। इसमें आसपास के गांवों की महिलाएं जुटती हैं। ग्रामीण महिलाएं चूल्हा-चौका करने के बाद अखाड़े में उतरती हैं। बताया जाता है कि इस कुश्ती की नींव बेगम नूरजहां व कमर जहां ने रखी थी। ‘हापा’ का आयोजन महिलाएं ही करती हैं। पूरे कार्यक्रम में पुरुषों की कोई सहभागिता नहीं होती। तीन पीढिय़ों से यह परंपरा चली आ रही है। अब इस परंपरा का निर्वहन विनय कुमारी कर रही हैं।
लखनऊ में महिलाओं की कुश्ती की परंपरा बहुत पुरानी है। करीब 200 साल पहले से यह कुश्ती हो रही है। इसे यहां की बोलचाल में हापा कहा जाता है। सावन मास में यह कुश्ती होती है। इसमें आसपास के गांवों की महिलाएं जुटती हैं। ग्रामीण महिलाएं चूल्हा-चौका करने के बाद अखाड़े में उतरती हैं। बताया जाता है कि इस कुश्ती की नींव बेगम नूरजहां व कमर जहां ने रखी थी। ‘हापा’ का आयोजन महिलाएं ही करती हैं। पूरे कार्यक्रम में पुरुषों की कोई सहभागिता नहीं होती। तीन पीढिय़ों से यह परंपरा चली आ रही है। अब इस परंपरा का निर्वहन विनय कुमारी कर रही हैं।
नागपंचमी के दूसरे दिन सजता है अखाड़ा
हर साल नागपंचमी के दूसरे दिन अखाड़े की शुद्धि के साथ पुराने कुंए के पास बैठ कर देवी की पूजा-अर्चना होती है। महिलाएं जुटती हैं। पूजा की टोकरी में फल, बताशे, खिलौने और श्रृंगार का सामान होता है। रीछ देवी, गूंगे देवी और दुर्गा की पूजा के साथ भुईया देवी की जयकारों के साथ कुश्ती की शुरुआत होती है। महिलाएं ढोलक की थाप के साथ गाने गाकर सामने की महिला पहलवानों को चुनौती देती हैं। साथ में मनोरंजन भी करती हैं। कुश्ती देखने और इसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर के गांवों से महिलाएं आती हैं। कुश्ती जीतने वाले को इनाम मिलता है।
हर साल नागपंचमी के दूसरे दिन अखाड़े की शुद्धि के साथ पुराने कुंए के पास बैठ कर देवी की पूजा-अर्चना होती है। महिलाएं जुटती हैं। पूजा की टोकरी में फल, बताशे, खिलौने और श्रृंगार का सामान होता है। रीछ देवी, गूंगे देवी और दुर्गा की पूजा के साथ भुईया देवी की जयकारों के साथ कुश्ती की शुरुआत होती है। महिलाएं ढोलक की थाप के साथ गाने गाकर सामने की महिला पहलवानों को चुनौती देती हैं। साथ में मनोरंजन भी करती हैं। कुश्ती देखने और इसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर के गांवों से महिलाएं आती हैं। कुश्ती जीतने वाले को इनाम मिलता है।
हापा में उम्र कोई बाधा नहीं महिला कुश्ती में 30,45,60,65,70,80 और 90 साल की उम्र दराज़ महिलाओं के ग्रुप बनाए जाते हैं। इनके बीच जमकर कुश्ती के दांव-पेंच चलते हैं। परम्परा को जि़ंदा रखने वाली विनय कुमारी बताती हैं कि पहले पुरुष अपनी महिलाओं को कुश्ती में नहींभेजते थे लेकिन अब उनकी सोच बदली है। पुरुष खुद हर साल अपनी महिलाओं को कुश्ती के लिए भेजते हैं।
महिला पहलवानों से डरते हैं पुरुष
हापा में पुरुषों का आना वर्जित होता है। यदि गलती से किसी पुरुष ने महिला दंगल में घुसने की कोशिश की तो महिलाएं उन पुरुषों को अखाड़़े में ही पटक पटक कर मारती हैं। ऐसे में किसी पुरुष की हिम्मत नहीं होती वह महिलाओं के अखाड़े की तरफ आंख भी घुमा सके।
महिला पहलवानों से डरते हैं पुरुष
हापा में पुरुषों का आना वर्जित होता है। यदि गलती से किसी पुरुष ने महिला दंगल में घुसने की कोशिश की तो महिलाएं उन पुरुषों को अखाड़़े में ही पटक पटक कर मारती हैं। ऐसे में किसी पुरुष की हिम्मत नहीं होती वह महिलाओं के अखाड़े की तरफ आंख भी घुमा सके।